प्लास्टिक, जो दुनिया के लिए सबसे क्रांतिकारी खोज था, अब प्रदूषण, बर्बादी और विनाश का कारण बनता जा रहा है। एक तरफ़ हमारे इस्तेमाल की ज़्यादातर चीज़ें अब प्लास्टिक की हो चुकी हैं तो दूसरी तरफ़ अब इससे पीछा छुड़ाने के उपाय ढूंढे जा रहे हैं। सिंगल यूज़ प्लास्टिक को तो भारत समेत कई देशों में बैन भी कर दिया गया है। दरअसल प्लास्टिक को नश्वर माना जाता है। वो ना जलता है, ना गलता है, ना पानी में घुलता है। ऐसे में वो हमारे पर्यावरण को बहुत गंभीर क्षति पहुंचा रहा है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इसे पूरी तरह नष्ट करने के उपाय ढूंढने में लगे हैं लेकिन इस चमत्कार को कर दिखाया है केवल 10वीं पास एक भारतीय महिला ने। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी उसी महिला की।
नासिरा के जज़्बे का कमाल
जम्मू-कश्मीर में कुलगाम के एक छोटे से इलाक़े कनिपोरा की रहने वाली नासिरा अख़्तर वैज्ञानिक नहीं हैं। उन्होंने केवल दसवीं तक की पढ़ाई की है। विज्ञान से भी उनका कोई ख़ास लगाव नहीं रहा लेकिन अगर उन्हें वैज्ञानिक कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा। नासिरा की खोज उन्हें वैज्ञानिक बना रही है। उन्होंने एक ऐसे जैविक फॉर्मूले की खोज की है जो प्लास्टिक को भी ख़त्म कर सकता है, वो भी प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना। उनकी इस खोज पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुहर भी लग चुकी है। और तो और एक कंपनी ने नासिरा से उनके इस फॉर्मूले को ख़रीद भी लिया है।
20 साल की मेहनत रंग लाई
नासिरा बताती हैं कि एक बार एक क़िताब में उन्होंने पढ़ा कि दुनिया के ख़त्म होने के बाद भी प्लास्टिक बचा रहेगा। ये बात उनके दिल-ओ-दिमाग में घर कर गई। उनको प्लास्टिक की वजह से अपने आसपास और कश्मीर की सुंदरता, आब-ओ-हवा पर ख़तरा महसूस होने लगा। उन्हें लगा कि इस बारे में कुछ करना चाहिए। गांव से होने की वजह से नासिरा का जुड़ाव स्थानीय पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों से भी था। नासिरा ने इन जड़ी-बूटियों का प्रयोग प्लास्टिक पर करने लगीं। अलग-अलग जड़ी-बूटियों से प्लास्टिक से क्रियाएं करातीं। धीरे-धीरे उनको इसमें सफलता मिली। उनके इस प्रयोग से प्लास्टिक को जलाने पर वो पूरी तरह से राख में बदल जाता है और जलाने पर पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचता। ये एंटी प्लास्टिक एंजाइम भी नासिरा की क्रांतिकारी खोज है। ख़ास बात ये है कि नासिरा ने इसके लिए कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली।
संघर्ष भरे जीवन से उजाले की ओर
नासिरा कुलगाम के एक पिछड़े इलाक़े की रहने वाली हैं। ये इलाक़ा कई बुनियादी ज़रूरतों के लिए भी तरसता है। शिक्षा के मामले में भी ये पीछे हैं। तभी नासिरा को भी अपनी पढ़ाई दसवीं के बाद छोड़नी पड़ी थी। इलाक़े में काम-धंधे की भी कमी है। नासिरा का घर जैसे-तैसे चलता था लेकिन उनकी लगन और उनके जज़्बे ने सबकुछ बदल दिया। प्लास्टिक के निस्तारण की इस क्रांतिकारी खोज ने ना केवल उन्हें दुनिया भर में मशहूर कर दिया बल्कि मान-सम्मान और पैसे भी दिलाए। नासिरा की इस खोज पर इंडिया बुक आफ रिकार्डस, अनसंग इनोवेटर्स आफ कश्मीर समेत कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल में रिपोर्ट प्रकाशित हो चुकी हैं।
नासिरा को मिले कई सम्मान
नासिरा अख्तर को पॉलीथिन को नष्ट करने वाले एंजाइम की खोज के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2022 के नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया है । नारी शक्ति पुरस्कार से पहले उन्हें लंदन में वर्ल्ड रिकॉर्ड यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी मिली है।
अब्दुल कलाम वर्ल्ड रिकॉर्ड, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने उनके काम को मान्यता दी है।
प्लास्टिक पर जारी है शोध
नासिरा फिलहाल जम्मू-कश्मीर के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में एक अधीनस्थ कर्मचारी के रूप में काम कर रही हैं। अपने इस शोध और उसमें मिली कामयाबी के बाद अब वो पॉलिमर पर शोध ग्रंथ लिख रही हैं। हालांकि केवल दसवीं तक की पढ़ाई और भाषाई ज्ञान की कमी की बाधा उनके लिए परेशानी बनीं लेकिन वो पेशेवर लेखकों की मदद से इसे आगे बढ़ा रही हैं।
जल्द ही उनकी क़िताब भी बाज़ार में उपलब्ध होगी। उन्हें उम्मीद है कि उनकी क़िताब छात्रों के लिए फ़ायदेमंद साबित होगी। इसके साथ ही वो पर्यावरण संरक्षण से जुड़े और भी कई प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। इसके साथ ही वो अपने इलाक़े में शिक्षा की स्थिति में सुधार करना भी चाहती हैं ताकि जैसे उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी, दूसरी बच्चियों को ऐसा ना करना पड़े। एक सुदूर और पिछड़े इलाक़े से निकली उम्मीद की ये रोशनी देश ही नहीं दुनिया को एक नया रास्ता दिखा रही है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट नासिरा अख़्तर के जज़्बे को सलाम करता है।
Add Comment