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धरती से

एक डॉक्टर जिसे शहर नहीं गांव भाता है

वो जिसे अपनी मिट्टी से प्यार होता है, वो जो अपनी धरती में रचे-बसे लोगों से प्यार करता है, उनके बारे में सोचता है, उनके लिए काम करता है, वही तो होता है धरती का लाल। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज की कहानी के मुख्य किरदार ऐसे ही हैं धरती के लाल

हर अंधेरे के बाद ही उम्मीदों का उजाला होता है। हर काली रात के बाद ही सुनहरा सवेरा होता है। मध्यप्रदेश में गुना के मधुसूदनगढ़ में एक ऐसी शुरुआत हुई जिसने एक नई कहानी की पटकथा तैयार कर दी और इस कहानी के नायक हैं नवदीप सक्सेना।

नवदीप प्राकृतिक चिकित्सा के डॉक्टर हैं। भोपाल से पढ़ाई की और फिर वहीं प्रैक्टिस शुरू कर दी लेकिन मधुसूदनगढ़ की मिट्टी हमेशा उन्हें पुकारती रही और फ़िर कुछ ऐसा हुआ जिससे नवदीप ना केवल घर लौटे बल्कि एक नया प्रारंभ लेकर लौटे।

बंदिशों से निकली उम्मीद की किरण

वो समय था जब देश ही नहीं पूरी दुनिया पर कोरोना वायरस का साया था। देश में लॉकडाउन लगा था। काम-धंधे सब बंद पड़े थे। नवदीप भी इसी लॉकडाउन में अपने घर पहुंचे थे। कामकाज बंद थे तो नवदीप को अपने गांव, अपने घर के बारे में ग़ौर करने का, सोचने का मौक़ा मिला। और यही सोच एक शुरुआत में बदल गई।

मधुसूदनगढ़ के गांववालों के पास रोज़गार के बहुत साधन नहीं थे। जो किसान थे वो भी सिर्फ़ पारंपरिक खेती ही कर रहे थे। आय का ज़रिया कम था तो आय भी बहुत कम थी। नवदीप को लगा कि गांव के लोगों को उनकी ज़रूरत है और यहीं से पड़ी धरती के लाल की नींव।

नवदीप ने अपने साथियों के साथ मिलकर मसालों के काम की शुरुआत कर डाली। उन्होंने गांव की ही कुछ महिलाओं को इसमें जोड़ लिया।

आसान नहीं रहा सफ़र

सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि एक डॉक्टर ने अपने साथियों के साथ मिलकर मसालों का काम शुरू कर दिया लेकिन हक़ीकत इससे बहुत उलट थी। नवदीप और उनके साथियों को इस काम का कोई भी अनुभव नहीं था। थोड़ी बहुत जानकारी के साथ उन्होंने काम की शुरुआत की थी। कच्चे मसालों को बाज़ार से ख़रीद कर गांव की महिलाओं से उनकी सफ़ाई करवाई, उसे अच्छे से पिसवा कर बढ़िया पैकिंग करवा दी, लेकिन दिक्कत तो ये थी कि तैयार मसालों को बेचा कहां जाए ? फ़िर शुरू हुई तलाश बाज़ार की। नवदीप तैयार मसालों को लेकर भोपाल आ गए। मसालों के स्टॉकिस्ट से लेकर दुकानदारों तक के चक्कर लगाते रहे लेकिन कोई भी उनके प्रोडक्ट लेने के लिए तैयार नहीं हुआ। इसमें क़रीब दो महीने बीत गए। समय बीतता जा रहा था और प्रोडक्ट बिक नहीं रहा था। अब नवदीप की हिम्मत जवाब देने लगी थी। बड़ी पूंजी फंसी हुई थी। जिन लोगों को साथ जोड़ कर काम किया उनका मेहनताना रूका हुआ था। सबसे सामने बस यही सवाल था कि अब किया क्या जाए।

सोशल मीडिया ने बनाई पहचान

इसी बीच नवदीप ने अपने कुछ क़रीबियों की मदद से सोशल मीडिया पर अपने प्रोडक्ट का प्रचार शुरू कर दिया। गांव से जुड़ा प्रोडक्ट, देसी प्रोडक्ट जिससे गांव की महिलाएं भी जुड़ी हैं। देखते ही देखते सोशल मीडिया पर धरती के लाल का जादू नज़र आने लगा। नतीजा ये हुआ कि धरती के लाल के प्रोडक्ट पहली बार भोपाल में नहीं बल्कि हरियाणा के पानीपत में बिकने शुरू हुए। वहां के कारोबारियों ने नवदीप और उनके इस वेंचर पर भरोसा जताया और प्रोडक्ट ख़रीद कर बेचना शुरू किया। इसके बाद तो फिर धरती के लाल का सफ़र बस चलता जा रहा है। दिल्ली, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में आज धरती के लाल के प्रोडक्ट पहुंच रहे हैं।

मिट्टी से जुड़े रहने का जज़्बा

नवदीप और उनके साथियों की कड़ी मेहनत का नतीजा ये हुआ कि धरती के लाल मसालों का एक अच्छा ब्रांड बन गया। लेकिन नवदीप का लक्ष्य ये नहीं था। वो तो गांव के लिए कुछ करना चाहते थे। इसी वजह से उन्होंने इसके ज़्यादातर कामों में गांव की महिलाओं को भागीदार बनाया। गांव के पुरुष खेती या दूसरे काम करते थे, ऐसे में महिलाओं के काम करने से उनके घर की आय बढ़ने लगी।

आदिवासी समाज को भी जोड़ा साथ

मधुसूदनगढ़ में बड़ी आबादी भीलों की भी है। नवदीप ने देखा कि भीलों के बच्चे थोड़ी बहुत पढ़ाई के बाद अपने पिता के साथ खेती-बाड़ी में लग जाते हैं। तो उन्होंने भील जनजाति के युवाओं को भी इससे जोड़ने का फ़ैसला किया। मधुसूदनगढ़ और आसपास के इलाक़ों के लिए इन्हीं युवाओं को सेल्समैन के तौर पर रखा गया है।

काम बढ़ने पर मसाले पीसने के लिए मशीनें मंगवाई तो आदिवासियों को इसे ऑपरेट करने, इसकी मरम्मत करने की पूरी ट्रेनिंग दिलवाई। इससे यहां के लोगों को अच्छा रोज़गार मिल रहा है।

वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट में चयन

नवदीप और उनकी पूरी टीम की मेहनत की वजह से धरती के लाल को अच्छी पहचान मिल गई। इसमें गुना के डीएम, कई विभागों के अधिकारियों और PMFME के अफ़सरों ने काफ़ी मदद की। इस सामूहिक कोशिश का नतीजा ये हुआ कि धरती के लाल का चयन गुना ज़िले के लिए वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट योजना में कर लिया गया। इस कामयाबी के बाद भी नवदीप ना संतुष्ट हुए हैं, ना थके हैं। वो अपने गांव के हर शख्स को रोज़गार देने के अभियान में अनवरत काम कर रहे हैं। हमारी शुभकामना है कि नवदीप अपने मिशन में कामयाब हों और अपने संघर्ष से औरों को भी प्रेरित करें।