सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसे जोड़े की कहानी लेकर आया है जिसने ख़्वाज़ा मीर दर्द के इस शेर को अपनी ज़िंदगी का मंत्र बना कर ख़ुद को घुमक्कड़ घोषित कर दिया है। ये जोड़ी ना केवल घूमने की शौकीन है बल्कि ऐसी-ऐसी जगहों की तलाश करने और उन्हें संरक्षित करने की कवायद में भी जुटी है जो उपेक्षा का शिकार हो रही हैं।
गार्गी मनीष की घुमक्कड़ जोड़ी
बचपन में स्कूल के साथी से जीवन साथी बन चुके गार्गी और मनीष एक अलग अंदाज़ के ट्रैवलर हैं। दोनों बिहार के मधुबनी ज़िले के रहने वाले हैं। मनीष ने कोलकाता से तो गार्गी ने चेन्नई से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। दोनों फ़िलहाल देहरादून में रहते हैं। मनीष देहरादून एयरपोर्ट पर एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल में काम करते हैं जबकि गार्गी शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं।
अक्सर लोग तब घूमने जाते हैं जब उन्हें अपने दफ़्तर और घर के कामकाज से समय मिलता है, लेकिन गार्गी और मनीष कुछ अलग हैं। वो आवश्यक रूप से समय निकाल कर घूमने जाते हैं। घूमना, नई जगहों को देखना, समझना और उनके बारे में पड़ताल करना गार्गी और मनीष के जीवन का हिस्सा बन चुका है। गार्गी बताती हैं कि घूमने की शुरुआत कॉलेज के दिनों से ही हो गई थी। तब मनीष कोलकाता से चेन्नई आ जाते थे और फ़िर दोनों दक्षिण भारत के कई इलाक़ों की सैर किया करते थे। पढ़ाई के बाद नौकरी और शादी के बाद भी ये सिलसिला चलता रहा।
जब बदलने लगा नज़रिया
गार्गी और मनीष के घूमने का शौक तब धीरे-धीरे एक नया मोड़ लेने लगा जब उन्होंने चीज़ों को उनके महत्व के साथ देखना शुरू किया। दोनों ने ख़ुद को एक टूरिस्ट से ज़्यादा ट्रैवलर के रूप में विकसित किया। गार्गी और मनीष अब जहां-जहां जाने लगे वहां के पुरातात्विक, ऐतिहासिक, भौगोलिक और सामाजिक परिपेक्ष्य को भी देखने और समझने लगे। जहां जाने का तय करते उस जगह के बारे में, वहां के इतिहास, सभ्यता, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व के बारे में रिसर्च करते। इससे उनके उस जगह को देखने का नज़रिया बदल जाता था।
अब दोनों की कोशिश होने लगी उन जगहों की तलाश करना जो सरकार, पुरातात्विक विभाग और प्रशासन की अनदेखी की वजह से अपना महत्व खोते जा रहे हैं। उन्होंने अपनी इस खोज में उन जगहों को भी शामिल किया जो स्थानीय लोगों की वजह से उपेक्षा का शिकार हो रही थीं। गार्गी और मनीष इसे एक नागरिक की ज़िम्मेदारी के तौर पर देखते हैं।
फोटो और वीडियो से दस्तावेजीकरण
किसी भी जगह के डॉक्यूमेंटेशन का अब सबसे अच्छा ज़रिया कैमरा है। गार्गी और मनीष ने शुरुआत छोटे कैमरे से की थी तो आगे चलकर अच्छी तकनीक वाला कैमरा ले लिया और अब ये ड्रोन कैमरे से भी वीडियोग्राफी कर रहे हैं। उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर गहरा असर छोड़ रही हैं। लोग उनकी तस्वीरों को देख कर पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थानों की जानकारी हासिल कर रहे हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम के साथ-साथ यूट्यूब पर भी उनकी तस्वीरें और वीडियोज़ को ख़ासा पसंद किया जाता है। इन तस्वीरों और वीडियो से गार्गी और मनीष के पास भी एक अच्छा ख़ासा डॉक्यूमेंट बैंक तैयार हो रहा है।
गार्गी और मनीष की घुमक्कड़ी का असर
मनीष और गार्गी का घूमना सिर्फ़ उनके लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी सार्थक हो रहा है। करीब 7 साल पहले दोनों जब पहली बार बिहार के रोहतास का क़िला देखने गए तो हैरत में रह गए। सोन नदी के किनारे बने इस क़िले में मुग़ल और राजस्थानी रजवाड़ी निर्माण शैली की झलक साफ़ दिखाई देती है। बताया जाता है कि मुग़ल काल में ये क्षेत्र मान सिंह के अधीन था और यहां उन्होंने अपना महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सैन्य केंद्र था। गार्गी और मनीष ने इस क़िले की इतनी शानदार तस्वीरें ली और सोशल मीडिया पर इसे इतनी ख़ूबसूरती के साथ पेश किया कि कई इतिहासकार भी हैरत में पड़ गए। एक इतिहासकार ने तो रोहतास के क़िले के ऐतिहासिक महत्व पर किताब भी लिख डाली। इसके बाद से अब तक रोहतास के क़िले और उसके आसपास के इलाक़े में विकास का अच्छा काम हुआ। गेस्ट हाउस बनाए गए, रोप-वे बनाया गया। पहले की तुलना में यहां सैलानियों की आमद भी काफ़ी बढ़ गई है। इसी तरह रोहतास के ही शेरगढ़ क़िले को भी गार्गी और मनीष की फोटोग्राफी से एक अलग पहचान मिली।
राज्य सरकारों से संपर्क
इन दो घुमक्कड़ों के काम का असर कुछ ऐसा पड़ रहा है कि राज्य सरकारें भी इनके साथ मिलकर काम कर रही हैं। गार्गी और मनीष ने वृंदावन की होली की ऐसी तस्वीरें खींची कि यूपी सरकार ने इनसे संपर्क कर अपने पोस्टर के लिए इनकी खींची तस्वीरों का इस्तेमाल किया। अब अयोध्या और वाराणसी में आयोजित कई कार्यक्रमों के लिए इन्हें ख़ास तौर पर न्योता भेजा जाता है। मध्य प्रदेश का पर्यटन विभाग भी इन दोनों के संपर्क में है।
सांस्कृति धरोहर बचाने की कोशिश
गार्गी और मनीष मिथिलांचल के पर्व-त्योहारों और रिति-रिवाज़ों को भी संजोने-सहेजने की कोशिश कर रहे हैं। सामा चकेवा त्योहार की महत्ता और उसकी कहानी पर उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाई है। मधुबनी के ऐतिहासिक राजनगर और ख़तरे में आ चुकी बिहार के बेगूसराय की मशहूर कावर झील का मुद्दा उन्होंने उठाया। गार्गी कहती हैं कि हम अपनी थातियों को, अपनी धरोहरों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। आगे बढ़ने का ये मतलब नहीं होता कि अपनी समृद्ध परंपराओं को छोड़ दिया जाए। इसी वजह से वो इन छोटे-छोटे त्योहारों के डॉक्यूमेंटेशन को भी अपने काम में शामिल किया है।
जारी है घुमक्कड़ों की घुमक्कड़ी
गार्गी और मनीष की घुमक्कड़ी अब तक देश के कई राज्यों के चक्कर लगा चुके हैं। लगातार 22 दिन में बिहार के कई महत्वपूर्ण इलाक़े, 15 दिन में गुजरात के अहम स्थल दोनों घूम चुके हैं। हालांकि पहले के मुकाबले अब उनकी घूमने की शैली में बदलाव आ गया है। पहले दोनों बाइक पर निकल पड़ते थे। जहां ठौर मिला ठहर गये, जैसी व्यवस्था हो पाई वैसे ही कर लिया लेकिन अब उनके साथ उनकी एक बच्ची भी है इसलिए वो अब कार से सफ़र करते हैं। कहीं जाने से पहले अब वो सोशल मीडिया के कई ट्रैवलर्स ग्रुप से संपर्क साधते हैं। हालांकि अब भी पहले की तरह वो होम स्टे को ही तरजीह देते हैं। इतने सालों में उनके कई दोस्त-जानकार भी बन चुके हैं जो अलग-अलग जगहों पर उनके ठहरने के इंतज़ाम करवा देते हैं।
गार्गी और मनीष ने अपनी यात्राओं को अपनी विरासत, अपनी थातियों-परंपराओं और पौराणिक-ऐतिहासिक धरोहरों से जोड़ कर उन्हें एक विस्तार दिया है, बड़ा आयाम दिया है। उनकी ये यात्राएं हमें घुमक्कड़ होने का सही अर्थ समझाती हैं।
इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट इन दोनों घुमक्कड़ों को उनकी आगे की घुमक्कड़ी के लिए शुभकामनाएं देता है।
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