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धरती से

धरती के लिए समर्पित हैं अर्चित

जिसे सांस लेना है, उसे पेड़ बचाने होंगे, जिसे पानी पीना है, उसे जल का संरक्षण करना ही होगा। इस साफ़ और सीधे से फ़लसफ़े में यकीन करते हैं अर्चित आनंद। अर्चित एक ऐसे कारोबारी हैं जो ख़ुद से ज़्यादा धरती के बारे में सोचते हैं। जल और ज़मीन को संरक्षित करने के ऐसे उपायों में लगे हैं। वो ना केवल ख़ुद इससे जुड़े हैं बल्कि लोगों को भी इससे जुड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अर्चित जल संभालने में जुटे हैं जिससे आने वाले कल को संवारा जा सके।
आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी अर्चित की।

अर्चित का अभियान

एक तरफ़ हर साल बारिश और बाढ़ का लाखों-करोड़ों लीटर पानी बह कर नदियों में चला जाता है तो दूसरी तरफ देश के कई इलाक़ों में लोग पीने के पानी के लिए जूझ रहे हैं। ये भारत में पानी की दोतरफ़ा समस्या की तस्वीर है। इसी समस्या को दूर करने की लड़ाई लड़ रहे हैं अर्चित।

साल 1999 की बात है जब अर्चित ने पहली बार अपने जीवन में लोगों को पानी के लिए संघर्ष करते देखा था। धनबाद में जब अर्चित ने महिलाओं और बच्चों को चार-चार, पांच-पांच घंटे पानी के लिए लाइन में लगे देखा, लड़ते हुए देखा, तभी उन्होंने ठान लिया कि इसे हर हाल में रोकना है। अपने इस फ़ैसले पर अमल उन्होंने धनबाद के टुंडी ब्लॉक में आयोजित एक छोटे से जागरूकता कार्यक्रम से की। उनका वो छोटा सा प्रयास आज एक मुहीम बन चुका है।

अर्चित मूल रूप से बिहार के सिवान जिले के रहनेवाले हैं। लेकिन, उनका जन्म झारखंड के पलामू ज़िले में हुआ और बचपन भी यहीं बीता। दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़े अर्चित के घर में लगभग सभी प्रशासनिक सेवा में रहे हैं लेकिन अर्चित का मन कभी नौकरी करने के लिए तैयार नहीं हुआ। अर्चित के घरवाले इस बात के लिए राज़ी नहीं थे। उनको मनाने के लिए अर्चित को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। उन्होंने रियल स्टेट का काम शुरू किया लेकिन उनका मन हमेशा पानी और पेड़ पर अटका रहा।

जल संरक्षण के लिए तकनीक का इस्तेमाल

अर्चित ने अपने काम की शुरुआत जल संरक्षण से ही की। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर बारिश के बर्बाद हो जाने वाले पानी को बचाने के लिए अभियान शुरू कर दिया। उन्होंने तकनीकी जानकारों के साथ मिलकर बरसाती नालों में जगह-जगह छोटे-छोटे चेक डैम बनाए। इससे नालों से बहने वाला पानी रुकने लगा।

अर्चित ने किसानों को इस अभियान से जोड़ने की शुरुआत की। उन्होंने किसानों को इस बात के लिए तैयार किया कि वो अपनी ज़मीन का एक हिस्सा तालाब बनाने के लिए उन्हें दें। उस ज़मीन पर अर्चित तालाब बनवाते हैं। तालाब के किनारों पर वो फलदार पेड़ या सब्ज़ियां लगवाते हैं। यहां तक कि तालाब में मछलियां भी डलवाते हैं। इससे एक साथ कई काम हो जाते हैं। किसानों को पेड़ों, सब्ज़ियों और मछलियों से अच्छी खासी आय होने लगती है तो दूसरी तरफ़ तालाब में बारिश का पानी भरने से ग्राउंड वाटर रिचार्ज होने लगता है। किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल जाता है। यहां तक की ज़मीन में नमी बढ़ने पर एक नहीं बल्कि दो से तीन फसलों की पैदावार होने लगती है।

इस अभियान ने जल और पेड़ दोनों के एक साथ संरक्षण के अभियान को नई दिशा दे दी। उन्होंने केवल धनबाद के सूखे इलाक़े में ट्रेंच और सोकपिट के ज़रिए 3 अरब लीटर वर्षा जल का संरक्षण किया।

मुश्किलों को आसान बनाने वाले अर्चित

हालांकि इस अभियान में अर्चित को कई तरह की मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है। सबसे बड़ी चुनौती होती है किसानों को उनकी ज़मीन पर तालाब बनवाने के लिए तैयार करने की।

इसके लिए वो अपनी टीम के साथ संबंधित गांव के प्रतिनिधियों से मिलते हैं। उन्हें अपने काम और इससे होने वाले फ़ायदों के बारे में विस्तार से बताया जाता है। इसके बाद एक ग्रामसभा का आयोजन होता है। इस सभा में ग्रामीणों को बताया जाता है कि पर्यावरण संरक्षण के लाभ क्या-क्या हैं। तालाब और पेड़-पौधे कैसे उनकी आमदनी को दोगुना कर सकते हैं। कैसे एक फसली ज़मीन पर दो या अधिक फसल हो सकती है। कई किसान इनको समझ कर अपनी ज़मीन पर काम करने की मंज़ूरी दे देते हैं लेकिन कई ज़मीन पर क़ब्ज़े के डर से इनकार भी कर देते हैं।

20 सालों में काम का हुआ विस्तार

अर्चित के इस काम में उनके साथ आज कई युवा, इंजीनियर, कृषि विशेषज्ञ और पर्यावरण के जानकार जुड़ चुके हैं। उनकी संस्था रांची, धनबाद, लातेहार, कोडरमा और चतरा ज़िले में काम कर रही है। झारखंड के अलावा बिहार के भी कई इलाक़ों में वो जल संरक्षण के काम में जुटे हैं। कई सरकारी विभागों के साथ मिलकर वो अपने काम को आगे बढ़ा रहे हैं। वो अपनी संस्था के ज़रिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग, पौधारोपण और कौशल विकास जैसे काम कर रहे हैं।

जारी है जागरूकता का अभियान

अर्चित का काम अब विस्तार ले चुका है। अपने काम के साथ-साथ वो जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं। किसानों, युवाओं, छात्रों और आम लोगों के साथ वो अलग-अलग तरह की वर्कशॉप करते हैं। पर्यावरण संरक्षण और किसानी से लेकर करियर तक की जानकारी देते हैं। अर्चित आनंद अपने इन नेक कामों के लिए कई पुरस्कार भी जीत चुके हैं। लेकिन उनके लिए असली पुरस्कार तो जल और जंगल का संरक्षण है। उनके कामों से लोगों को मिलने वाली खुशी ही उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान है।