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बंदे में है दम

आशा का दीप जलाते अशोक

महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्याएं अनवरत जारी हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 1 से 2 सितंबर के बीच ही 6 से ज़्यादा क़र्ज़ में डूबे किसानों ने अपनी जान दे दी। दशक बीत चुके हैं लेकिन इन इलाक़ों में किसानों की ख़ुदकुशी का सिलसिला नहीं थम रहा। सूखे की वजह से फसल ख़राब होने और सेठ-साहुकारों से लेकर बैंक तक से लिये क़र्ज़ के बोझ तले दबा किसान आख़िरकार अपनी जान ले ले रहा है। किसानों की ख़ुदकुशी पर सियासत तो ख़ूब होती है लेकिन हालात में बदलाव नज़र नहीं आ रहा। किसान की ख़ुदकुशी के बाद उसका पूरा परिवार बिखर जाता है। तंगहाली और बेबसी परिवार को तोड़ देती है। सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसे शख़्स की कहानी लेकर आया है जो पिछले कई सालों से उन बच्चों के लिए काम कर रहे हैं जिनके किसान पिता ने क़र्ज़ के दबाव में आत्महत्या कर ली। हम बात कर रहे हैं अशोक देशमाने की।

अशोक का संकल्प

वो साल 2015 जब पुणे में स्नेहवन नाम के एक संगठन की शुरुआत हुई थी। इस संगठन ने क़र्ज़ के बोझ तले दबे उन किसानों के बच्चों संरक्षण देना शुरू किया। इस संगठन की नींव डाली थी सॉफ़्टवेयर इंजीनियर अशोक देशमाने ने। शुरुआत में उन्होंने अपने एक दोस्त के घर में बच्चों को आश्रय शुरू किया था। तब उनकी माली हालत अच्छी नहीं थी। अपने घर के ख़र्च चलाने के साथ-साथ निराश्रित बच्चों को पालना, उनका खान-पान, शिक्षा, कपड़े मुहैया कराना आसान नहीं था। लेकिन अशोक अडिग थे। उन्होंने डबल शिफ्ट में काम किया ताकि संस्था के लिए पैसे इकट्ठा किये जा सके। उनकी मेहनत रंग लाने लगी। 1 साल के अंदर ही संस्था को लोग जानने लगे। कई लोग भी अशोक की मदद के लिए आगे आए। साल 2016 में अशोक ने नौकरी छोड़ कर पूरा समय संस्था को देने का फ़ैसला किया।

6 ज़िलों के बच्चों तक पहुंचे अशोक

अब अशोक ने पुणे के आसपास के 6 ज़िलों में अपना नेटवर्क बढ़ाया। वो उन बच्चों की जानकारी जुटाने लगे जिनके किसान पिता ने ख़ुदकुशी की हो। वो उन बच्चों को अपने साथ ले आए। 2016 में ही अशोक और अर्चना की शादी हुई। शादी के बाद अर्चना भी अशोक के साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्नेहवन को और घना, और मजबूत करने में जुट गई। वो 25 बच्चों के साथ एक बड़े से हॉल में रहा करते थे। शुरुआत में उन्होंने सोचा था कि सिर्फ़ उन बच्चों को वो अपने पास रखेंगे जिनके किसान पिता ने ख़ुदकुशी की हो, लेकिन बाद में उन्होंने क़र्ज़ में डूबे किसानों के बच्चों को भी अपने पास रखना शुरू कर दिया।

कारवां बनता गया

अशोक और अर्चना जी-जान से स्नेहवन को आगे बढ़ाने में जुटे रहे। साल 2018 में डॉ स्मिता कुलकर्णी और डॉ रविंद्र कुलकर्णी ने संस्था को पुणे के पास 2 एकड़ की ज़मीन दी। अब ये स्नेहवन पुणे के कोयाली में शिफ्ट हो गया और यहां से मिला संस्था को नया आकाश।

शिक्षा के साथ-साथ स्नेह का बंधन

अशोक अपनी संस्था में रह रहे बच्चों को ना केवल मूलभूत शिक्षा मुहैया करवा रहे हैं बल्कि उन्हें कंप्यूटर, वाद्य यंत्रों, संगीत, पेंटिंग और योग जैसी विधाएं भी सिखा रहे हैं। अशोक के साथ 8 स्वंयसेवक और शिक्षक जुड़े हैं। बच्चों के लिए स्वामी विवेकानंद के नाम पर एक अच्छी लाइब्रेरी है। इसके अलावा बच्चों के फ़िजिकल फिटनेस और खेलकूद पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है।

बाबा आम्टे से मुलाक़ात से बदलाव

स्नेहवन की शुरुआत की कहानी भी दिलचस्प है। अशोक देशमाने महाराष्ट्र के परभणी के रहने वाले हैं। ये इलाक़ा मराठवाड़ा का हिस्सा है। अशोक के पिता के पास अच्छी ख़ासी ज़मीन थी। लेकिन सूखे की वजह से उस 5 एकड़ की ज़मीन से भी गुज़ारा चलना मुश्किल था। हालात बिगड़ने लगे तो कई लोगों की तरह अशोक भी गांव छोड़ परभणी में रहने लगे। कंप्यूटर में मास्टर्स तक की पढ़ाई की। एक बार उनके कॉलेज में प्रसिद्ध समाजसेवी बाबा आम्टे आए। उनके वक्तव्य ने अशोक को इतना प्रभावित किया कि वो बिल्कुल बदल गए। अब वो झुग्गी बस्तियों में जाते और वहां के बच्चों के बीच पेंसिल-क़िताबें बांट कर आने लगे। साल 2014 में मराठवाड़ा में एक बार फ़िर बड़ी संख्या में किसानों ने ख़ुदकुशी कर ली। पहले तो अशोक के लिए ये आम बात थी लेकिन अब नहीं। उन्हें ये हालात चुभने लगे। उन्हें इस बात का अहसास था कि इसी विकट स्थिति को झेलने के बाद भी उनके माता-पिता ने उनकी शिक्षा नहीं रुकने दी और तभी वो एक अच्छे मुक़ाम तक पहुंच पाए। इसी सोच के साथ उन्होंने उन किसानों के बच्चों को शिक्षा देने का फ़ैसला किया जिनके पिता ने ख़ुदकुशी कर ली।

परिवार पहले नाराज़, फ़िर आया था

अशोक के माता-पिता ने बहुत संघर्ष कर अपने बच्चे को पढ़ाया था। अशोक भी एक अच्छी सॉफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर बन चुके थे लेकिन उन्होंने इसे छोड़ने का फ़ैसला कर लिया। इससे उनके माता-पिता को गहरा धक्का लगा। वो चाहते थे कि बेटा और तरक्की करे। अशोक के नौकरी छोड़ने पर वो कई दिनों तक नाराज़ भी रहे, लेकिन उन्हें भी समझ आ गया कि अशोक का ये काम सिर्फ़ पैसे कमाने के लिए नहीं है, ये समाज को बदलने के लिए है, हालात को बदलने के लिए है। आज वो भी पुणे के स्नेहवन में अशोक और अर्चना के साथ बच्चों की देखभाल करते हैं। 2015 में शुरू हुआ अशोक का ये अश्वमेध यज्ञ अनवरत जारी है।