चुनाव में हार-जीत होती रहती है लेकिन कई बार कुछ जनप्रतिनिधि कुछ ऐसा कर गुजरते हैं जो दूसरों के लिए नज़ीर बन जाता है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसे ही नेता की कहानी लेकर आया है जो बहुत ही कम समय में जननेता बन गया। इस जनप्रतिनिधि ने ये भी दिखाया है कि बदलाव के लिए विधायक-सांसद या मंत्री होने की ज़रूरत नहीं। ये कहानी है उस नारी शक्ति की जिसने अपने गांव को बदलाव की रोशनी से जगमग कर दिया। ये कहानी है भक्ति शर्मा की।
अमेरिका से लौट कर बनी सरपंच
वो साल 2015 था जब अमेरिका में पढ़ाई के बाद अच्छी ख़ासी नौकरी कर रही एक नवयुवती अपने घर लौटती है। भोपाल ज़िला मुख्यालय से क़रीब 20 किलोमीटर दूर अपने पैतृक गांव बरखेड़ी अब्दुल्ला पहुंचती है और अपनी पृष्ठभूमि से बिल्कुल अलग एक ऐसा रास्ता चुनती है जिसने ना केवल उसे बल्कि पूरे गांव को विकास का रास्ता दिखाया।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पली-बढ़ी भक्ति शर्मा ज़िले के ही बरखेड़ी अब्दुल्ला गांव की रहने वाली हैं। स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के बाद भक्ति अमेरिका चली गईं। ये साल 2012 था। अमेरिका में आगे की पढ़ाई के बाद उन्होंने टैक्सस में एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी भी की। लेकिन इस युवा के दिल-ओ-दिमाग में हमेशा अपना गांव बसा रहा। अपने गांव के लिए कुछ अलग, कुछ बेहतर करने का सपना उनके दिल में हमेशा पलता रहा और आख़िरकार उन्होंने घर लौटने का फ़ैसला किया। उन्होंने अपने काम की शुरुआत की एक ऐसी संस्था से जो घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद के लिए। इसी बीच राज्य में सरपंच के चुनाव का एलान हो गया और भक्ति ने चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया। ये फ़ैसला लेने से पहले भक्ति ने ना केवल अपने परिवार से बात की बल्कि एक-एक गांववालों से संपर्क किया, उनकी इच्छा जानी और फ़िर चुनावी मैदान में कूद पड़ीं। चुनाव हुए और भक्ति रिकॉर्ड वोटों से जीत कर सरपंच बन गईं।
बदल डाली गांव की तस्वीर
सरपंच बनने के साथ ही भक्ति जैसे एक मिशन में जुट गईं। ये मिशन था अपने गांव को विकास के फलक पर पहुंचाने का। भक्ति ने एक साथ कई क्षेत्रों में सुधार के लिए काम शुरू किया। तमाम सरकारी योजनाओं को गांव तक पहुंचाने के लिए अधिकारियों से बात की। शुरुआत हुई गांव तक पक्की सड़क पहुंचने की। ऐसा लगा कि इसी सड़क से विकास की बयार गांव पहुंचने लगी। आवास योजना का लाभ उठाते हुए भक्ति ने गांव के अस्सी फ़ीसदी से ज़्यादा कच्चे घरों को पक्का करवा दिया। जल्द ही बिजली, पानी और शौचालय की सुविधा भी गांववालों को मिलने लगी।
शिक्षा की अहमियत समझाई
भोपाल के पास होने के बावजूद शिक्षा के मामले में बरखेड़ी अब्दुल्ला काफ़ी पीछे था। भक्ति ने इस स्थिति बदलने की ठान ली। वो गांव के हर घर में गईं और लोगों को शिक्षा का महत्व समझाया। एक पढ़ी लिखी सरपंच, अमेरिका में नौकरी कर लौटी सरपंच की बात लोगों के समझ में आने लगी। लोग अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे। भक्ति ने लड़कियों की शिक्षा के लिए ख़ासा ज़ोर लगाया। स्कूल जाने के लिए बच्चों को साइकिल मुहैया करवाई। स्कूलों में मिड डे मील की अच्छी व्यवस्था की।
भ्रूण हत्या रोकने के लिए क़दम
भक्ति ने समाज की सोच बदलने के लिए के लिए भी क़दम उठाए। उन्होंने भ्रूण हत्या रोकने के लिए एक मुहिम की शुरुआत की। इसके तहत हर बेटी के जन्म पर गांव में 10 पौधे लगाए जाने लगे। इससे गांव में पौधारोपण के एक अभियान की शुरुआत हो गई जिसने गांव की आब-ओ-हवा बदल दी। इसके साथ ही भक्ति हर बच्ची के जन्म पर अपने दो महीने के वेतन तोहफ़े के तौर पर भी देना शुरू कर दिया।
गांव हुआ ओडीएफ, हर गांववाले का खुला खाता
जब केंद्र सरकार ने देश को खुले में शौच मुक्त करने का संकल्प लिया तो भक्ति ने अपने गांव को भी इससे मुक्त कराने का फ़ैसला लिया। उन्होंने एक तरफ़ तो सरकारी योजना के ज़रिये गांव के हर घर में शौचालय की व्यवस्था की तो दूसरी तरफ़ लोगों को खुले में शौच ना करने के लिए जागरूक किया।
भक्ति ने अपने गांव के लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए कई क़दम उठाए। इसी क्रम में उन्होंने हर गांववाले का बैंक में खाता खुलवाया। इससे कई सारी सरकारी योजनाओं का लाभ गांववालों तक सीधे पहुंचने लगा। गांव में सामुदायिक भवन, स्ट्रीट लाइट जैसी सुविधाओं ने गांव के लोगों का जीवन बदल दिया। अपने गांव में किये जा रहे भक्ति के काम की गूंज बाहर तक पहुंचने लगी। उन्हें कई सम्मान भी मिले। हालांकि भक्ति दूसरे चुनाव में हार गईं लेकिन काम करने का जज़्बा चुनावी जीत हार पर निर्भर नहीं करता। वो आज भी अपने गांव के विकास के लिए जुटी हुई हैं।
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