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बंदे में है दम

भरतनाट्यम से परिवर्तन

कभी-कभी आप अचानक कोई ऐसा फ़ैसला कर लेते हैं जो समाज में बदलाव का बड़ा क़दम साबित हो जाता है। आप अपना अच्चा ख़ास करियर छोड़ कर उस बदलाव की बुनियाद मजबूत करने लग जाते हैं। अच्छी बात ये होती है कि आपकी ज़िंदगी के इस बदलाव के ज़रिए समाज में आ रहे बदलाव आपको पहले से ज़्यादा सुकून पहुंचाते हैं। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज की कहानी भी एक ऐसी ही शख़्सियत की है जो कुछ ऐसे ही बदलाव लाने में जुटी हैं।

कौशल्या ने चुना अलग रास्ता

तमिलनाडु के छोटे से शहर तिंडीवनम के एक स्कूल में बच्चियां भरतनाट्यम सीख रही हैं। ये डांस क्लास ही बदलाव की नींव है। भरतनाट्यम सीख रही इन बच्चियों में ज़्यादातर बच्चियां इरुला जनजाति की हैं और उन्हें भरतनाट्यम सिखा रही ये महिला हैं कौशल्या श्रीनिवासन।

कौशल्या ख़ुद भरतनाट्यम की प्रशिक्षित नृत्यांगना हैं। वो फुलब्राइड स्कॉलर हैं। सालों तक उन्होंने दुनिया के अलग-अलग देशों में लोगों को भारतीय नृत्य की शिक्षा दी है। लेकिन आज वो तमिलनाडु के तिंडीवनम में ग़रीब तबके की बच्चियों को भरतनाट्यम सिखा रही हैं।

कौशल्या ने पद्मश्री सम्मान हासिल कर चुकीं मशहूर भरतनाट्यम डांसर चित्रा विश्वेसरन से भरतनाट्यम सीखा है। कौशल्या 2003 में एक स्कॉलरशिप प्रोग्राम के लिए अमेरिका गई थीं। दुनिया भर में प्रसिद्ध कैनेडी सेंटर में उन्होंने अपना कार्यक्रम पेश किया। इसी दौरान वहां की एक बात कौशल्या को नई दिशा दे गई। दरअसल कैनेडी सेंटर में आर्ट फॉर कॉल नाम से एक कार्यक्रम चलाया जाता था जिसमें कोई भी शख़्स बिना पैसे दिये अपने मनपसंदीदा प्रोग्राम 1 घंटे के लिए देख सकता था। कौशल्या कुछ ऐसा ही अपने देश में करना चाहती थीं। लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इसकी शुरुआत कैसे की जाए।

तिंडीवनम में डांस क्लास की शुरुआत

इसी बीच उनका संपर्क मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चंद्रू से हुआ। कौशल्या ने जस्टिस चंद्रू को बताया कि वो इरुला बच्चियों को भरतनाट्यम सिखाना चाहती हैं। जस्टिस चंद्रू ने ना केवल कौशल्या का हौसला बढ़ाया बल्कि उनकी काफ़ी मदद भी की। जस्टिस चंद्रू ने कौशल्या को थाई तमिल पल्ली की  संस्थापक प्रोफेसर कल्याणी से मिलने की सलाह दी। प्रोफेसर कल्याणी इरुला जनजाति के उद्धार के लिए काम कर रही थीं। कल्याणी से मुलाक़ात ने कौशल्या की योजना को नई दिशा दे दी।

7 बच्चियों से क्लास

प्रोफेसर कल्याणी की मदद से कौशल्या इरुला समुदाय के लोगों से मिली और उन्हें अपनी योजना के बारे में बताया। फिर एक टीन शेड के नीचे शुरू हुई कौशल्या की पहली डांस क्लास। इस क्लास में केवल 7 बच्चियां थीं। आदिवासी समुदाय की इन बच्चियों के लिए भरतनाट्यम आसान नहीं था लेकिन बच्चियों का जज़्बा और कुछ नया सीखने का जोश इस मुश्किल काम को आसान बना रहा था। कौशल्या को भी अपने सपने साकार होते नज़र आ रहे थे। ख़ास बात ये थी कि कौशल्या इसके लिए बच्चों से कोई फीस नहीं ले रही थीं।

स्कूल से जुड़ गईं कौशल्या

कुछ ही दिनों में इरुला समुदाय ही नहीं दूसरे परिवारों को भी कौशल्या के काम की जानकारी मिली। उनके डांस क्लास में बच्चे बढ़ने लगे। फिर उन्होंने एक स्थानीय स्कूल से संपर्क किया और वहां फ्री डांस क्लास की शुरुआत कर दी। स्कूली बच्चियां अब कौशल्या के डांस क्लास का हिस्सा बन गईं। कौशल्या की छोटी की शुरुआत बड़ा आकार लेने लगीं। डांस के साथ-साथ कौशल्या बच्चियों को भरतनाट्यम की पूरी वेशभूषा भी मुहैया करवाती हैं। भारी-भरकम वेशभूषा में नृत्य आसान नहीं हैं लेकिन कौशल्या बच्चियों को ऐसी ट्रेनिंग दे रही हैं कि वो किसी भी मंच पर अपनी कला का प्रदर्शऩ कर सकती हैं।

हाशिये के लोगों को मंच देने की कोशिश

कभी ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को नृत्य सिखाने की सोच रखने वाली कौशल्या अब वंचित समाज की इन बच्चियों को बड़ा मंच देने का काम कर रही हैं। वो अपनी बच्चियों को ख़ुद की तरह फुलब्राइट स्कॉलरशिप के लिए भी भेजना चाहती हैं ताकि वो भी अमेरिका जा सकें।
कौशल्या की ये कोशिश इन बच्चियों को नया आसमान दे रही हैं। उम्मीद है उनका ये अभियान और आगे जाएगा। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट कौशल्या और उनसे जुड़ी बच्चियों को शुभकामनाएं देता है।