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बंदे में है दम

कॉन्स्टेबल थान सिंह: मिसाल समाज के लिए

दिल्ली में एक पुलिसवाला एक ऐसी पाठशाला चला रहा है जो ग़रीब-बेसहारा बच्चों को शिक्षा से जोड़ कर समाज की मुख्य धारा में लाने का पावन यज्ञ कर रहा है। वो चाहता है कि कोई भी बच्चा सिर्फ़ इस वजह से शिक्षा से दूर ना रह जाए कि वो एक ग़रीब घर में पैदा हुआ। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट उसी पुलिसवाले की कहानी लेकर आया है जो ना केवल पूरे पुलिस विभाग के लिए बल्कि समाज के हर इंसान के लिए एक मिसाल है। आज की कहानी है दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल थान सिंह की।

लाल क़िले के पास क्लास

दिल्ली में हर कोई जानता है कि लाल क़िला कहा हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि इसी लाल क़िले के पास एक बेहद ख़ास स्कूल है। इस स्कूल में झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले, सड़क के किनारे रहने वाले ग़रीब-बेसहारा, मज़दूरों के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं और उन्हें पढ़ाते हैं दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल थान सिंह। थान सिंह की ये पाठशाला एक मंदिर के प्रांगण में चलती है। रोज़ाना थान सिंह ड्यूटी के बाद यहां आते हैं। बच्चे उनके आने से पहले ही पहुंच जाते हैं और उनके इंतज़ार में टकटकी लगाए रहते थे। थान सिंह के आते ही इन बच्चों के चेहरे पर उत्साह और उमंग दौड़ पड़ता है। इसके बाद शुरू होती है थान सिंह की क्लास। थान सिंह चाहते हैं कि बच्चे शिक्षा से जुड़े ना कि अपराध से। ग़रीबी-बेबसी और हालात कई बच्चों को अपराधी बना देता है। थान सिंह इन बच्चों को इसी से बचाना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि ये बच्चे भी समाज का हिस्सा बनें।

2016 में शुरू हुई थी पाठशाला

थान सिंह ख़ुद एक ग़रीब परिवार से थे। माता-पिता कपड़ों की इस्त्री कर परिवार पालते थे। पूरा परिवार झुग्गी में रहता था। वहां से निकल कर थान सिंह दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल बने, सिर्फ़ शिक्षा के दम पर। यही वजह है कि वो शिक्षा के महत्व को अच्छी तरह जानते हैं। शिक्षा की इसी लौ को और ज़रूरतमंद बच्चों तक पहुंचाने के लिए थान सिंह ने साल 2016 में इस पाठशाला की शुरुआत की। शुरुआत में सिर्फ़ 4 बच्चे थे लेकिन धीरे-धीरे ये संख्या 100 के क़रीब पहुंच गई। थान सिंह अपने ख़र्च पर इन बच्चों को कॉपी, क़िताबें, पेंसिल और दूसरी ज़रूरत की चीज़ें मुहैया कराते हैं। पुलिस विभाग के कई सीनियर और उनके साथी अब थान सिंह की मदद करते हैं। कोरोना के दौरान कई प्रवासी मज़दूर अपने बच्चों के साथ गांव लौट गए। कई वापस आए लेकिन कई नहीं। अब थान सिंह की पाठशाला में क़रीब 50 बच्चे हैं।

चुनौतीपूर्ण नौकरी के साथ समाज का दायित्व

पुलिस की नौकरी आसान नहीं है। काम का दबाव इंसान को कुछ और सोचने-समझने का मौक़ा नहीं देता। लेकिन थान सिंह इस दबाव भरे और बेहद व्यस्त रहने वाले काम के बाद रोज़ाना इन बच्चों के लिए समय निकाल रहे हैं, उन्हें शिक्षा दे रहे हैं, जीवन का सही रास्ता दिखला रहे हैं। थान सिंह के इस जज़्बे को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट सलाम करता है।