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Insight बंदे में है दम

भारतीय संस्कृति की वाहक हीरा

वो रोज़ आसमान छूने की कोशिश करती हैं। उनके जीवन का दर्शन अपने देश, अपनी संस्कृति की विरासत को आगे बढ़ाना है। आम तौर पर लोग पूरी ज़िंदगी एक ही काम और एक ही ढर्रे पर चलते हुए बिता देते हैं। अक्सर लोगों को अपने तय कामों के अलावा मिल रहे दूसरे कामों पर समय के अभाव की बात कहते देखा और सुना जा सकता है लेकिन आज हम एक ऐसी शख़्सियत की कहानी लेकर आए हैं जिन्होंने अपने जीवन को अलग-अलग क्षेत्रों से ना केवल जोड़ा बल्कि उसमें महारथ भी हासिल की, मुकाम बनाया। वो एक गृहणी हैं, वो एक संगीतज्ञ हैं, वो कथक नृत्यांगना हैं, वो एक शिक्षिका हैं, वो एक समाजसेविका हैं, वो योगा टीचर हैं। एक साथ ख़ुद में ज़िंदगी के इतने किरदारों को समेटने वाली इस शख़्सियत का नाम है हीरा कोरान्ने कुलकर्णी। हीरा अमेरिका के कैलिफोर्निया में रहती हैं। बचपन से युवावस्था तक दिल्ली में रहीं हीरा शादी के बाद अमेरिका चली गईं। साल 1982 से अमेरिका में रह रहीं हीरा कभी भी अपने देश, अपनी मिट्टी से अलग नहीं हो पाईँ। क़रीब चालीस साल से हीरा, विदेश में भारतीय कला-संस्कृति को एक नया आयाम, नया विस्तार देने में जुटी हैं।

माता-पिता की परवरिश ने तराशा 

स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी पिता विष्णु लक्ष्मण कोरान्ने और संगीतकार मां शशिकला कोरान्ने की परवरिश ने हीरा को सचमुच हीरे की तरह ढाल दिया। उन्होंने अपने माता-पिता को देश और समाज के लिए अपना योगदान देते देखा और समझा। छोटी उम्र से ही हीरा ने कथक और सितार वादन सिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपनी मां से ही शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। भजन, कबीर और रहीम के दोहे, पंचतंत्र की कहानियों और कठपुतली के कार्यक्रमों ने हीरा के व्यक्तित्व पर गहरी छाप छोड़ी। भगवत गीता और वेदांत के अध्ययन से भी उन्हें नई दिशा मिली। बचपन से ही मिल रही कला की शिक्षा की बदौलत हीरा छोटी उम्र से ही कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगी थीं। नेहरू बाल मेले में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन ने उन्हें पुरस्कार दिया था। ऑल इंडिया रेडियो में वो युवा वाणी गायन की कई सालों तक सदस्य रहीं। उन्होंने योगी धीरेंद्र ब्रह्मचारी के विश्वायतन योगाश्रम से योग की शिक्षा भी ली।

 शिक्षा-संगीत और करियर की शुरुआत 

हीरा ने दिल्ली स्कूल ऑफ़ सोशल वर्क (DSSW) से मास्टर्स किया वहीं गंधर्व महाविद्यालय से संगीत विशारद की शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने क़रीब एक साल तक एक ग़ैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फ़ॉर सोशल हेल्थ के साथ काम किया। फ़िर दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग में बाल कल्याण बोर्ड और किशोर न्यायालय में भी अपनी सेवाएं दी।   

अमेरिका में नई शुरुआत 

जब हीरा अमेरिका पहुंची तो वहां उन्होंने समाज कल्याण के क्षेत्र में काम करना चाहा। उन्होंने इसी क्षेत्र में पढ़ाई की थी और दिल्ली में उन्हें इस क्षेत्र में नौकरी का अनुभव भी था। लेकिन ये इतना आसान नहीं था। उस समय अमेरिका बड़ी आर्थिक मंदी से जूझ रहा था। जिसका असर हर क्षेत्र पर पड़ा था। हीरा को नौकरी नहीं मिल रही थी। अपने पति की सलाह पर हीरा ने मजबूर महिलाओं के लिए काम करने वाले एक स्वयंसेवी संस्था के साथ काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद हीरा को एक और संस्था के साथ काम करने का मौक़ा मिल गया। ये एक बाल मार्गदर्शन केंद्र था। यहां वो बच्चों की काउंसिलिंग किया करती थी।

संगीत ने दिखाया नया रास्ता 

हीरा ने इस बीच अपने दोनों बच्चों की परवरिश के लिए अपना पूरा समय दिया। उनके लालन-पालन से लेकर उनकी शिक्षा तक में अपनी पूरी भूमिका निभाई। 1990 में उनका परिवार कैलिफ़ोर्निया चला गया। वहां एक बार उनके बेटे के स्कूल में उन्हें म्यूज़िकल वर्कशॉप के लिए आमंत्रित किया गया। बहुत ही झिझक के साथ हीरा वहां गईं लेकिन अपनी संगीत की शिक्षा की बदौलत उन्होंने वहां मौजूद लोगों को अपना मुरीद बना लिया। इस कार्यक्रम के बाद उन्होंने स्टेट यूनिवर्सिटी के टीचिंग क्रेडेंशियल प्रोग्राम में दाख़िला ले लिया और एक पब्लिक स्कूल टीचर बन गईं। उन्होंने हमेशा अपने आप को आगे बढ़ाया। नई चीज़ों को सीखने या आगे की पढ़ाई करने में वो कभी पीछे नहीं रहीं। साल 2000 में उन्होंने अपनी दूसरी मास्टर डिग्री पूरी की। इतना ही नहीं इसी बीच साल 2003 में उन्होंने एक महीने केरल के शिवानंद योग वेदांत केंद्र से योग का प्रशिक्षण हासिल किया। इसके बाद उन्हें योग शिरोमणि-योग प्रशिक्षक का प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ।   

शिक्षा के क्षेत्र में योगदान 

हीरा ने अपने जीवन के बीस से भी ज़्यादा साल शिक्षण को समर्पित कर दिये। इस दौरान उन्होंने ना केवल बच्चों को अच्छी शिक्षा दी बल्कि वो अपने बच्चों के लिए एक रोल मॉडल, एक संरक्षक के तौर पर सामने आईं। उन्होंने तमाम अप्रवासी बच्चों में आत्मविश्वास का संचार करने में बड़ी भूमिका निभाई। पढ़ाई के दौरान भी वो अपने नवाचार से बच्चों को जोड़े रखती थी। गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान हो या फ़िर लिट्रेचर। हीरा का मानना है कि हर पढ़ाई का मक़सद बच्चे को आदमी से इन्सान बनाना होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने कई तरह के प्रयोग भी किये। इनमें एक दिलचस्प प्रयोग था हर दिन की शुरुआत और अंत एक गीत से करना। उनकी क्लास के हर बच्चे के पास गाने का एक फोल्डर होता था। क्लास की शुरुआत एक ख़ूबसूरत गाने से होने पर बच्चों में पढ़ाई के प्रति एक नया जोश पैदा होने लगा। हीरा ने अपने बच्चों को योग और स्वस्थ आहार से जोड़ कर उनके जीवन को एक नई दिशा दी।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सक्रिय योगदान 

ख़ुद गीत-संगीत और नृत्य में महारथ रखने वाली हीरा ने अमेरिका में भी इसे ख़ूब बढ़ावा दिया। इसमें उन्होंने कभी भी भारत के किसी एक प्रांत पर ज़ोर नहीं दिया। साल 2012 में भारत दिवस के मौक़े पर गुजराती, पंजाबी, मराठी और तेलुगु के लोक गीतों की प्रस्तुति की गई। साल 2013 में रॉय हर्बर्गर एलीमेंट्री के बहुसांस्कृतिक कार्यक्रम में पंजाबी नृत्यों की प्रस्तुति हुई। 2013 में ही पैनोरमा इंडिया नाम के कार्यक्रम में भारतीय भाषाओं की लोक कलाओं का प्रदर्शन किया गया। हीरा ने अपने इस अभियान में वहां रह रहे भारतीय समुदाय को भी जोड़ लिया। वो आयोजन के लिए डांडिया नृत्य सिखाती थी। इसके साथ ही भारतीय पोशाकें और कलाकृतियों को भी लोगों तक पहुंचाया करती थी। लंबे समय तक उन्होंने रंगभेद के ख़िलाफ़ भी लोगों को जागरूक किया।   

भारतीय संगीत की राग अकादमी 

हीरा ने अपनी संगीत की शिक्षा का भी बख़ूबी इस्तेमाल किया। उन्होंने राग अकादमी की स्थापना कर लोगों को भारतीय संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी। संगीत सीखने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती। हीरा की राग अकादमी में चार साल से अस्सी साल तक के छात्र थे। पिछले 20 साल से वो अमेरिका में भारतीय संगीत की जड़ें मजबूत कर रही हैं। 2017 में उन्होंने संगीत पर एक पुस्तक ‘हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत: एक परिचय’ भी लिखी। इस पुस्तक में उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की बहुमूल्य जानकारियों का संकलन किया है। कोरोना के दौरान उन्होंने अपनी संगीत की क्लास को ऑनलाइन शुरू कर दिया जो अभी भी चल रही है।   

संगीत भारती की स्थापना 

हीरा यहीं नहीं रूकी। उन्होंने साल 2008 में संगीत भारती नाम की एक ग़ैर लाभकारी संस्था का गठन किया। इसके ज़रिये उन्होंने भारतीय कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए वर्कशॉप, संगीत कार्यक्रमों और भारतीय त्योहारों पर आयोजन किये। इससे लोग भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जुड़ने लगे। ये ऐसे कार्यक्रम होते थे जिन्हें भारतीयों के साथ-साथ दूसरे देश के लोग भी ख़ूब पसंद से देखने और सुनने आते थे। हालांकि कुछ अपरिहार्य कारणों की वजह से संगीत भारती को बंद करना पड़ा।     

VI-SH Koranne Foundation की शुरुआत

 हीरा अक्सर भारत आकर स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ काम करती थी। कभी नागपुर के आनंदवन, तो कभी हेमलकासा के आदिवासी स्कूल तो कभी गढ़चिरौली। हीरा हमेशा समाज और देश के लिए काम करने वालों से जुड़ती रहीं, उनके साथ मिलकर काम करती रही। उन्होंने कई NGO को आर्थिक मदद दी, कुछ को लैपटॉप दिये। साल 2016 में उन्होंने अपने माता-पिता की याद में VI-SH Koranne Foundation की स्थापना की। इसके ज़रिये पुणे में अल्प आय वाली महिलाओं के लिए चलाई जा रही स्वयं-सहायता समूहों की योजनाओं को फंड दिया। ब्यूटी पार्लर के कोर्स चला कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया गया। दिल्ली में NDMC के स्कूलों में संगीत की शिक्षा के उनके फाउंडेशन ने अनुदान दिया।  

 हर ज़रूरतमंद की मदद का संकल्प 

हीरा हर ज़रूरतमंद की मदद करना चाहती हैं। इसके लिए वो अलग-अलग कार्यक्रम कर फंड जुटाती हैं। इसमें महफ़िल-ए-ग़ज़ल सबसे ख़ास है। इसके ज़रिये साल 2018 में केरल में आई भयंकर बाढ़ के पीड़ितों के लिए उन्होंने 3100 डॉलर जुटाए। साल 2019 में इसी के माध्यम से अन्नपूर्णा संगठन के लिए 2000 डॉलर की मदद पहुंचाई। उन्होंने अफ़गान शर्णाथियों के लिए खाना और दूसरी ज़रूरत की चीज़ें मुहैया कराने वाले संगठन को भी मदद की। भारत में छत्तीसगढ़ से लेकर नोएडा तक में वो ऐसी संस्थाओं को खोज कर दान देती हैं जो वास्तव में समाज के लिए अच्छा काम कर रहे हैं। 

अनवरत जारी है यात्रा 

हीरा लोगों को नि:शुल्क योग सिखाती हैं। कोरोना के वक़्त से ये ऑनलाइन चल रहा है। वो एक आहार एक्सपर्ट भी हैं। वो लोगों को फूड हैबिट में बदलाव कर डाइबिटिज़ जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ने में मदद कर रही हैं। उन्होंने हील विद हीरा नाम का एक प्रोग्राम भी शुरू किया है। हीरा की यात्रा इतने पर ही ख़त्म नहीं होती। वो इतने क्षेत्रों में काम कर रही हैं जिसे एक बार में समेट पाना नामुमकिन सा है। लेकिन इतना ज़रूर है कि विदेश में अपनी मिट्टी की ख़ूशबू को फैलाने वाली, भारतीय संस्कृति की चमक बिखेरनी वाली हीरा, वाकई हीरा हैं जो सैकड़ों-हज़ारों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।