जब पीतल के बर्तनों पर उनके सधे हुए हाथ कलम चलाते हैं तो देखने वाले बस देखते ही रह जाते हैं। एक से बढ़ कर एक नक्काशियां ऐसे उभरती जाती हैं जो किसी अजूबे से कम नहीं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट जिस महान शख़्सियत की कहानी लेकर आया है उसकी शिल्पकारी की हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया के कई-कई देशों में मुरीद भरे हुए हैं। ये कहानी है पीतलनगरी के नाम से मशहूर यूपी के मुरादाबाद के मशहूर दस्तकार, शिल्पगुरु दिलशाद हुसैन की।
पद्मश्री से होंगे अलंकृत
पीतल नगरी मुरादाबाद के हीरे को देश के प्रतिष्ठित पद्म सम्मानों में से एक पद्मश्री का सम्मान मिलने जा रहा है। शहर के मक़बरा दोयम कैथ वाली मस्जिद गली में रहने वाले दिलशाद हुसैन साल 2023 के लिए पद्मश्री सम्मान के लिए नामित किये गये हैं। 79 साल के दिलशाद नक्काशी के शहंशाह हैं। उन्हें शिल्पगुरु कहा जाता है। लोग उनकी कलाकारी देखकर मोहित हो जाते हैं। देखने वाले बताते हैं कि उनके हाथों में जादू है।
दादा से सीखी नक्काशी
जीवन के 79 बसंत देख चुके दिलशाद ने नक्काशी का ये हुनर अपने दादा अब्दुल अख़लाक़ हमीद से सीखा था। तब वो केवल 10 साल के थे। दिलशाद अपने दादा को पीतल पर नक्काशी करते बड़े गौर से देखा करते थे। वो तब इतनी बारिकियां तो नहीं समझ पाते थे लेकिन नक्काशी से उभरने वाली कृतियां उन्हें बहुत आकर्षित करती थी। वो ख़ुद ये कर के देखना चाहते थे कि आख़िर बर्तनों पर इतने सुंदर चित्र कैसे उभर आते हैं। दादा को भला और क्या चाहिए था। उन्होंने भी अपने पोते को नक्काशी सिखानी शुरू कर दी। लेकिन दादा-पोते के बीच ये उस्ताद और शागिर्द का रिश्ता बहुत दिनों तक नहीं चल सका। दिलशाद के दादा का कुछ ही दिनों बाद निधन हो गया। दादा के निधन ने दिलशाद को दुखी ज़रूर किया लेकिन उनकी कला यात्रा नहीं रुकी। दादा के बाद चाचा कल्लू अंसार ने दिलशाद को नक्काशी के गुर सिखाने शुरू कर दिये।
दुनिया भर में मिली शोहरत
दिलशाद हुसैन की कलाकारी दुनिया भर में पसंद की जाती है। पीतल की प्लेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चित्र उकेरा था। लखनऊ में ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी ने कलश पर दिलशाद की नक्काशी देखकर उनकी प्रशंसा की थी। अगस्त 2022 में प्रधानमंत्री मोदी ने जी-7 सम्मेलन में जर्मनी के चांसलर को दिलशाद हुसैन की नक्काशी से सजे कलश को भेंट किया था। तुर्किए, रूस और साउदी अरब समेत दुनिया के कई मुल्कों में दिलशाद की कलाकृतियों की अच्छी-ख़ासी मांग है। उन्हें नक्काशी सिखाने ईरान से भी बुलावा आया था। साल 2015 में वो ईरान गये थे और वहां 950 से ज़्यादा ईरानी कलाकारों को उन्होंने मुरादाबाद कलम यानी पीतल पर नक्काशी करना सिखाई थी। दिलशाद को राष्ट्रपति पुरस्कार और शिल्पगुरु का सम्मान मिल चुका है तो वहीं उनकी पत्नी, बेटे-बेटियां और बहुएं भी दस्तकारी में माहिर हो चुके हैं। उनकी दोनों बहुओं को राज्यपाल पुरस्कार हासिल है।
आज भी सिखाते हैं नक्काशी
दिलशाद चाहते हैं कि जो भी नक्काशी सीखना चाहे, उसे सीखने का मौक़ा ज़रूर मिले। इस कला को और आगे बढ़ाने के लिए वो अपने घर में ही नक्काशी की पाठशाला चलाते हैं। उनके सिखाये शागिर्द भी अब नक्काशी कर अपना नाम कमा रहे हैं।
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