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बंदे में है दम

डॉक्टर एस पी मुखर्जीः कहानी एक डॉक्टर की जो मसीहा बन गया

कहते हैं ज़िंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए।

लेकिन रांची के रहने वाले डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी वो शख़्सियत हैं जिनकी ज़िंदगी ना सिर्फ लंबी है बल्कि आज इतनी बड़ी हो चुकी है कि इनके सम्मान में महान और मसीहा जैसे शब्द भी बौने नज़र आते हैं।

सही मायनों में समाज सेवा क्या होती है, इसकी जीती जागती मिसाल हैं 86 साल के डॉक्टर एस पी मुखर्जी। डॉक्टर मुखर्जी को अगर हम देवदूत कहें तो ग़लत नहीं होगा।

5 रुपये की फीस और हज़ारों का इलाज

कोरोना महामारी का वो दौर शायद ही कोई भूल पाएगा जब लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा था। दवाएं नहीं मिल पा रही थी तो दूसरी तरफ़ कोरोना के इलाज के नाम पर वसूली का धंधा भी चलाया जा रहा था।

ऐसे मुश्किल वक़्त में डॉक्टर मुखर्जी वाकई देवदूत बन गए। उन्होंने केवल 5 रुपये की फीस लेकर हज़ारों लोगों का इलाज किया

सिर्फ़ यही नहीं, जो लोग 5 रुपये तक नहीं दे पाए उनका मुफ़्त में इलाज किया। अपने ख़र्चे पर उनके टेस्ट कराए, उन्हें फ्री में दवाइयां उपलब्ध कराई। सबसे ख़ास बात तो ये है कि डॉक्टर मुखर्जी ऐसा पिछले 55 सालों से कर रहे हैं।

ज़रा सोचिए, आज के समय में 5 रुपये की अहमियत क्या है ? आम घरों के बच्चे भी रोज़ाना इससे ज्यादा तो अपने गुल्लक में डालते हैं। कोरोना महामारी में जब हालात थोड़े ज़्यादा बिगड़ गए तो डॉक्टर मुखर्जी ने अपनी फीस बढ़ाकर 50 रुपये कर दी। लेकिन इसके एवज में वो इलाज और दवा के साथ-साथ लोगों को मास्क और सेनेटाइज़र भी मुहैया कराने लगे।

जो पैसे नहीं दे सकते थे ना तो उन्हें कभी इलाज के लिए मना किया ना दवा के लिए। तभी तो आज भी दूर-दूर से लोग पूरे विश्वास के साथ डॉक्टर मुखर्जी के पास इलाज के लिए पहुंचते हैं।

करियर की शुरुआत में ही सेवा को बनाया पेशा

ऐसा नहीं था कि डॉक्टर मुखर्जी को कभी अच्छा मौक़ा नहीं मिला। उन्हें अमेरिका जाने का ऑफ़र था। बड़े अस्पतालों के ऑफ़र थे, लेकिन अपने करियर की शुरुआत में उन्होंने ख़ुद के लिए एक लकीर खींच ली। उनका हमेशा यही मानना रहा है कि आपके पास जितना है, उतना ही बहुत है। अगर उससे ज़्यादा चाहते हैं तो ग़रीब और लाचार लोगों की मदद करें, क्योंकि ज़रूरतमंदों की मदद करके उन्हें जो ख़ुशी मिलती है, वो ख़ुशी लाखों-करोड़ों ख़र्च करके भी नहीं कमाई जा सकती।

समर्पण और सेवा को मिला सम्मान

डॉक्टर एस पी मुखर्जी को अपनी जिंदगी से कोई गिला-शिकवा नहीं है। उन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी अपने पेशे और ग़रीबों के लिए समर्पित कर दी। 55 साल से लगातार वो अपने इस मिशन में जुटे हुए हैं।

डॉ मुखर्जी के इस समर्पण और सेवा भाव की चर्चा सिर्फ़ रांची में ही नहीं बल्कि पूरे देश में होती है। राज्य सरकारों और अनगिनत संगठनों ने उन्हें कई बार सम्मान से नवाज़ा है। साल 2019 में भारत सरकार ने डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को पद्मश्री से सम्मानित किया।

हम सबने बचपन से ही सुना है कि धरती पर अगर कोई भगवान का रूप है तो वो डॉक्टर्स ही हैं और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पूरी ज़िंदगी इस कहावत को चरितार्थ करती है।

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  • समाज मे धन दौलत की बढ़ती भूख के बीच एस.पी.मुखर्जी जैसे कल्याणकारी और नि: स्वार्थ सेवा भाव वाले डॉ. ही ‘ मसीहा ‘ बन जाते हैं…।__ समाज मे
    उच्च मानवीय मूल्यों के विकास में योगदान देनेवाले कथा प्रसंगों को प्रमुखता से सामने लाने की आज बहुत जरूरत है…