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बंदे में है दम

शिक्षा की बुनियाद मजबूत करता इंजीनियर

शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है। शिक्षा ही वो ज़रिया है जिसके माध्यम से समाज और देश को बदला जा सकता है। देश को तरक़्क़ी और बदलाव के रास्ते पर चलाया जा सकता है। लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि जो शिक्षा हर बच्चे को अनिवार्य रूप से मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पाती है। ज़्यादातर बच्चे अपने परिवार की माली हालत की वजह से शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। सरकार की तमाम योजनाएं भी इसे लेकर बहुत असरकारी साबित नहीं हुई हैं। इस हालात में हमारे ही समाज के कई ऐसे लोग हैं जो इस स्थिति को बदलने में जुटे हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसे ही शख़्स की कहानी लेकर आया है जो अपने जज़्बे से शिक्षा की मशाल जला रहे हैं।

वडोदरा में फुटपाथ वाली क्लास

सड़क किनारे का फुटपाथ। स्ट्रीट लाइट की सफ़ेद रोशनी और ज़मीन पर बैठे 90 से अधिक बच्चे। सामने एक शख़्स बोर्ड पर बच्चों को उनकी क्लास के हिसाब से पढ़ा रहा है। ये है गुजरात के वडोदरा में चलने वाली फुटपाथ की क्लास और इस क्लास के गुरुजी हैं एक सिविल इंजीनियर निकुंज त्रिवेदी। निकुंज को वडोदरा में अक्सर सड़क किनारे बच्चों को पढ़ाते हुए देखा जा सकता है। निकुंज की इस फुटपाथ वाली क्लास में KG से लेकर 10वीं तक के बच्चे पढ़ने आते हैं। इसमें सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूल के बच्चे शामिल होते हैं। निकुंज की इस क्लास में वही बच्चे पढ़ने आते हैं जो आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार से हैं और उनके माता-पिता स्कूल के अलावा ट्यूशन फ़ीस नहीं दे सकते।

हर क्लास और हर विषय पर ध्यान

निकुंज की क्लास में क़रीब 100 बच्चे पढ़ते हैं। किंडर गार्डन के बच्चे से लेकर बोर्ड देने वाले बच्चे तक फुटपाथ की पाठशाला में पढ़ने आते हैं। ज़रा सोचिए एक साथ 100 बच्चे और वो भी अलग-अलग क्लास के। एक साथ उनको पढ़ाना कैसे संभव है। लेकिन निकुंज एक साथ इन सारे बच्चों को ना केवल पढ़ाते हैं बल्कि उनके सवालों के जवाब भी देते हैं। निकुंज हर विषय पर भी पूरा ध्यान देते हैं, बच्चों के बेसिक कॉन्सेप्ट को भी समझाते हैं। इतना ही नहीं, वो इस बात का भी ख़ास ख़्याल रखते हैं कि कौन सा बच्चा किस मीडियम से पढ़ रहा है। गुजरात में गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी मीडियम के स्कूल हैं और निकुंज की क्लास में इन तीनों मीडियम के बच्चे पढ़ने आते हैं। ख़ास बात ये है कि निकुंज की इन तीनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ है। वो तीनों माध्यम में बोर्ड पर लिख कर बच्चों को समझाते हैं।

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मंदिर में भी चलाई क्लास

निकुंज ने शिक्षा के इस मिशन की शुरुआत क़रीब 5 साल पहले की थी। तब उनके कुछ दोस्त भी उनके साथ थे। लेकिन बदलते हालातों में दोस्तों का साथ छूट गया लेकिन निकुंज ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपना अभियान जारी रखा। उन्होंने पहले शहर के एक मंदिर में भी क्लास चलाई। कोरोना काल से पहले क़रीब 15-20 बच्चे उनकी क्लास में आते थे। बाद में उनकी संख्या बढ़ने लगी। पहले आकंड़ा 40-50 पहुंचा और अब ये 100 पहुंच चुका है। इतना ही नहीं निकुंज कई ग़रीब बच्चों के स्कूल की फ़ीस भी भरते हैं।

ख़ुद की मुश्किलों से लिया सबक

निकुंज आज एक सिविल इंजीनियर हैं लेकिन उनका बचपन भी मुश्किलों से भरा हुआ था। पिता का निधन उनके कम उम्र में ही हो गया। पढ़ाई तो दूर, परिवार में खाने तक का संकट था। मुश्किल हालातों से लड़ते हुए भी निकुंज ने शिक्षा का दामन नहीं छोड़ा। हर चुनौती को पार करते हुए वो पढ़ते गए और इंजीनियर बन गए। वो ख़ुद शिक्षा के महत्व को अच्छी तरह से जानते-समझते थे। अपने हालातों से सीख लेकर उन्होंने ग़रीब बच्चों को पढ़ाने का फ़ैसला किया और उनके लिए क्लास की शुरुआत की। निकुंज को अब लोग जानने लगे हैं। कई लोग उन्हें आर्थिक रूप से मदद भी पहुंचा रहे हैं ताकि बच्चों की शिक्षा में कोई कमी ना रहे। उम्मीद है कि निकुंज का ये शिक्षा का कारवां आगे भी चला रहेगा।