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खेत-खलिहान

खेती को फ़ायदे का सौदा बनाता किसान

आम तौर पर खेती को लोग घाटे का सौदा मानते हैं। जितनी मेहनत और पैसा वो फसल उगाने में ख़र्च करते हैं उसके हिसाब से ज़्यादातर उनकी आय कम होती है। भारत के कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भी ये स्थिति चौंकाने वाली है। ये स्थिति तब भी है जब देश में एक हरित क्रांति का दौर गुजर चुका है। सवाल उठते हैं कि आख़िर ये स्थिति क्यों है ? ऐसी क्या चूक हो रही है कि देश का पेट भरने वाला किसान ख़ुद भूखा रह जा रहा है ? इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की आज की कहानी इन्हीं सवालों का जवाब है। इस जवाब का नाम है देवेंद्र परमार।

खेती को नई दिशा देने वाले देवेंद्र

मध्यप्रदेश के शुजालपुर के रहने वाले देवेंद्र नई कृषि क्रांति के वाहक हैं। देवेंद्र एक किसान हैं लेकिन वो ऐसे किसान नहीं हैं जो पुराने तरीक़ों से खेती करें। परंपरागत तरीक़ों से फसलें उगाएं और फ़िर नुकसान उठाएं। वो ऐसे किसान हैं जिन्होंने नई सोच और नई तकनीक का इस्तेमाल कर खेती की तस्वीर बदल दी है। पटलावदा के रहने वाले देवेंद्र पुश्तैनी किसान हैं। क़रीब 9 बीघा ज़मीन है जिसपर पहले परंपरागत रूप से खेती की जाती थी। केवल 8वीं तक पढ़े देवेंद्र शुरू से ही अपनी ज़मीन और खेती से जुड़े थे लेकिन वो इसमें बदलाव चाहते थे। उन्होंने ना केवल उस बदलाव को साकार किया बल्कि आज हर महीने 2 से 2.5 लाख रुपये महीने की आमदनी भी कर रहे हैं।

डेयरी से की शुरुआत

देवेंद्र ने अपनी ज़मीन के एक हिस्से में छोटे स्तर पर डेयरी की शुरुआत की। इससे होने वाले दूध को वो आसपास की कॉलोनियों में बेचा करते थे। काम आगे बढ़ा तो देवेंद्र का उत्साह और हौसला भी मजबूत हुआ। उन्होंने धीरे-धीरे कर अपनी पूरी ज़मीन को डेयरी फॉर्म में बदल दिया। आज उनके डेयरी फॉर्म में 100 से ज़्यादा पशु हैं जिनमें 60 से ज़्यादा गायें और 15 से ज़्यादा भैंसें हैं। रोज़ाना डेयरी में क़रीब 300 लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है जिसे देवेंद्र सांची दुग्ध उत्पादक सहकारी संस्था को बेचते हैं। सिर्फ़ दूध से ही देवेंद्र को दो लाख रुपये महीने से ज़्यादा की कमाई हो रही है। इसमें अगर ख़र्च निकाल दें तो महीने की कमाई 1.5 लाख रुपये से ऊपर की होगी।

पारंपरिक खेती बंद, चारे का उत्पादन शुरू

देवेंद्र ने डेयरी की कामयाबी को देखते हुए अपना पूरा ध्यान इसी तरफ़ लगा दिया। उन्होंने सोचा कि पशुओं के लिए चारा ख़रीदने से अच्छा है चारा ख़ुद उगाया जाए। इसी वजह से उन्होंने पारंपरिक खेती को पूरी तरह बंद कर दिया। खेत में सिर्फ़ वो उगाया जिसे पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। पूरी तरह से प्राकृतिक खाद की मदद से उगाये जाने वाला ये चारा उनके पशुओं के लिए बहुत फ़ायदेमंद साबित हुआ।

गोबर से वर्मी कम्पोस्ट

देवेंद्र सिर्फ़ डेयरी तक ही नहीं रूके। उन्होंने डेयरी से मिल रहे गोबर से वर्मी कम्पोस्ट का काम भी शुरू कर दिया। उनकी डेयरी से रोज़ाना क़रीब 25 क्वींटल गोबर जमा होता है। वो इससे वर्मी कम्पोस्ट बना रहे हैं। इस प्राकृतिक खाद की भी अच्छी-ख़ासी बिक्री हो रही है। एक ट्रॉली वर्मी कंपोस्ट क़रीब ढ़ाई हज़ार रुपये में बिकता है। देवेंद्र महीने में क़रीब 25 ट्रॉली खाद बेच लेते हैं तो अनुमान लगाइये कि वो सिर्फ़ खाद से कितने पैसे कमा रहे हैं।

गोबर गैस प्लांट

देवेंद्र की कृषि क्रांति यहीं तक नहीं थमी है। उन्होंने अपनी ज़मीन पर गोबर गैस प्लांट भी लगाया हुआ है। डेयरी से निकलने वाले गोबर को देवेंद्र पहले इसी प्लांट में डालते हैं। इससे इतनी गैस का उत्पादन हो रहा है जिससे पैदा होने वाली बिजली पूरे फॉर्म हाउस की ज़रूरतों को पूरा कर देती है। देवेंद्र इतने इनोवेटिव हैं, नवाचार में इतना भरोसा है कि वो हमेशा कुछ नया करने के लिए तैयार रहते हैं। इसी का नतीजा है कि आज वो गोबर गैस से अपना ट्रैक्टर, कार, पिकअप और बाइक चला रहे हैं। उन्होंने इसके लिए एक इंजीनियर की मदद से पूरा प्रोसेसिंग प्लांट तैयार किया हुआ है। इसके साथ ही वो सोलर पैनल लगाकर भी बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। इस तरह देवेंद्र ने खेती की पुरानी व्यवस्था को छोड़ कर नए तरीक़े से काम शुरू किया और आज वो इससे अच्छी-ख़ासी कमाई कर रहे हैं। देवेंद्र ने अपनी दूरदर्शी सोच और मेहनत के दम पर ना केवल ख़ुद के लिए एक नया रास्ता तैयार किया बल्कि सैकड़ों दूसरे किसानों को भी उस रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया जहां खेती घाटे नहीं मुनाफ़े का सौदा साबित हो सकती है।