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खेत-खलिहान

किसानों के ‘सूरमा भोपाली’

किसान अन्नदाता होते हैं। अपने ख़ून-पसीने से खेतों को सींचते हैं। उनकी मेहनत से फसलें लहलहाती हैं। किसान मेहनत करते हैं तो हमारी थाली में खाना आता है। ये किसान ना केवल अनाज, फल-फूल और सब्ज़ियां उगाते हैं बल्कि उनकी किस्मों में कई बदलाव भी करते हैं। खेती की पद्धति में सुधार भी करते हैं। ऐसे ही एक किसान की कहानी आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट लेकर आया है। मध्यप्रदेश के भोपाल के रहने वाले ये किसान किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं हैं।

डॉक्टर बनने का सपना टूटा, बने किसान

भोपाल के खजूरी कलां के किसान मिश्री लाल राजपूत ग़ज़ब के किसान हैं। वो अक्सर अपनी खेती के लिए चर्चा में रहते हैं। कभी औषधीय पौधों की खेती के लिए, कभी नीले आलू तो कभी लाल भिंडी की फसल के लिए। नवाचार तो उनके रग-रग में बसता है। यूं तो मिश्री लाल किसान परिवार से ही आते हैं। उनके पिता भी किसान थे लेकिन मिश्री लाल ने डॉक्टर बनने का सपना देखा था। पढ़ाई में वो अच्छे भी थे। लेकिन 12वीं के बाद घर के हालात बदल गए और मिश्री लाल का सपना टूट गया। साल 1989 की बात है, पढ़ाई छूटने के बाद उन्होंने खेती में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। लेकिन उन्हें परंपरागत तरीक़े से की जा रही खेती पर भरोसा नहीं था। अपनी शिक्षा का फ़ायदा उन्होंने खेती में उठाना शुरू किया।

पहली बार गेहूं और टमाटर की नई किस्म

मिश्री लाल ने खेती की नई तक़नीकों और नए बीजों के बारे में जानकारी हासिल करनी शुरू कर दी। उन्होंने इसके लिए कृषि विश्वविद्यालय का रुख़ किया। वहां उन्हें गेहूं और टमाटर की नई किस्मों का पता चला। मिश्री वहां से दोनों के बीज ले आए। फसल की नई किस्म और मिश्री की मेहनत ने कमाल दिखाया। अच्छी फसल हुई और अच्छे दाम पर बिकी। ये बात साल 1990 की है। तब से मिश्री लाल का खेत और फसल से प्रयोग जारी है। मिश्री लाल मध्य प्रदेश के पहले किसान हैं जिन्होंने औषधीय पौधों की खेती की थी। लेमन ग्रास, मेंथा, सफ़ेद मूसली की फसल भी अच्छा फ़ायदा देकर बिकी। कई साल तक मिश्री लाल इनकी खेती करते रहे। बाद में बिक्री कम होने पर उन्होंने इसकी खेती बंद कर दी।

मध्य प्रदेश में उगाया ‘नीलकंठ’

मिश्री लाल के प्रयोग जारी रहे। उन्हें आलू की एक ऐसी किस्म की जानकारी मिली जो सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद बताई जा रही है। इसे नीलकंठ कहते हैं। मिश्री लाल इसकी पूरी जानकारी और बीजों के लिए केंद्रीय आलू संस्थान शिमला पहुंच गए। वहां से नीलकंठ के बीज लेकर आए और अपने खेतों में उसकी रोपाई की। इस बात की ख़बर मिलते ही आसपास के किसान मिश्री लाल के पास पहुंचने लगे। उनसे इस आलू के बारे में जानकारी लेने लगे लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वो भी नीले आलू की खेती कर पाएं। बहरहाल मिश्री लाल ने ना केवल नीलकंठ की पूरी मेहनत के साथ खेती की बल्कि उनकी पैदावार भी काफ़ी अच्छी हुई। मिश्री ने उसे बेचने से पहले उसके बीज तैयार करने शुरू कर दिये। बताया जाता है कि इस नीले आलू में कई ऐसे पोषक तत्व हैं जो सामान्य आलू में नहीं मिलते। इसके साथ ही ये जल्दी पक भी जाता है।

लाल भिंडी से भी सबको चौंकाया

मिश्री लाल बहुत ही खोजी किस्म के इंसान हैं। फसलों में नई किस्म, अनूठापन वो हमेशा ढूंढते रहते हैं। इसी तरह जब वो वाराणसी के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ वेजिटेबल सेंटर गए तो वहां लाल भिंडी की प्रजाति देखकर ठिठक गए। उन्होंने इस प्रजाति की भिंडी की सारी जानकारी हासिल की और बीज ख़रीद कर ले आए। अपने खेतों में उन्होंने लाल भिंडी की खेती की। नीले आलू की ही तरह लाल भिंडी भी बहुत फ़ायदेमंद बताई जाती है। इसके साथ ही रंग की वजह से इस पर कीट-पतंगों का भी प्रभाव बहुत कम होता है। फसल ना केवल अच्छी हुई बल्कि उसकी बिक्री भी ख़ूब हुई। वो नीले आलू के साथ-साथ लाल भिंडी के भी बीज तैयार कर रहे हैं।

खेत में उगाया ‘काला नमक’

मिश्री लाल ने अपने खेतों में ढेर सारे प्रयोग किये। इसमें एक प्रयोग काला नमक की खेती का भी था। काला नमक दरअसल एक उच्च किस्म का चावल है जो मूल रूप से यूपी के सिद्धार्थनगर में उगाया जाता था। नेपाल के तराई वाले इलाक़ों में भी इसकी खेती होती थी। अब ये संत कबीरनगर, गोरखपुर, बहराइच, बस्ती और गोंडा में भी उगाया जा रहा है। मिश्री लाल की दिलचस्पी भी इस चावल की खेती के प्रति जगी। वो इसका बीज ले आए और अपने खेतों में उसे उगाया। मिश्री लाल का कमाल ऐसा है कि वो जो भी फसल लगाते हैं भरपूर उगाते हैं। काला नमक चावल की खेती ने भी उन्हें निराश नहीं किया।

मिश्री लाल ने प्रदेश के कई किसानों को नवाचार की प्रेरणा दी है। उन्होंने कलम लगाकर यानी ग्राफ्टिंग कर एक ही पौधे से टमाटर और बैंगन उगाने का भी चमत्कार कर दिखाया है। मध्य प्रदेश कृषि भूषण सम्मान से सम्मानित मिश्री लाल देश के किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं।