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खेती जो मोती पैदा करे

कुछ नया, कुछ अलग करने का जज़्बा लोगों को भीड़ से अगल नई पहचान दिलाता है। यही जज़्बा उन्हें आगे बढ़ाता है। वाराणसी के एक युवा की ऐसी ही सोच ने पूरे इलाक़े में एक नई क्रांति को जन्म दिया है। इस युवा का नाम है श्वेतांक पाठक। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी श्वेतांक और उनके इस उद्यम की, जिसके ज़रिये वो मोतियों से अपना भविष्य संवार रहे हैं।

श्वेतांक का मोती उगलने वाला खेत

श्वेतांक वाराणसी के चौबेपुर में नारायणपुर गांव के रहने वाले हैं। समाजशास्त्र में मास्टर्स की पढ़ाई के बाद श्वेतांक स्कूल में शिक्षण कार्य से जुड़ गए, लेकिन उनके दिल में कुछ नया करने की तमन्ना थी। वो अक्सर इसी खोज में जुटे रहते थे कि ऐसा क्या किया जाए जो ना केवल उन्हें अच्छी आय दे बल्कि उनके मन को भी संतोष दे। उनकी तलाश ख़त्म हुई मोतियों की खेती पर। श्वेतांक ने शुरुआत में यूट्यूब पर मोतियों की खेती के बारे में जानकारी हासिल की और काम शुरू किया लेकिन इससे बात नहीं बनी। फ़िर साल 2019 में उन्होंने भुवनेश्वर के ICAR से ट्रेनिंग हासिल की। इस ट्रेनिंग ने उनके काम को नया आयाम दे दिया। क़रीब 60 हज़ार रुपये ख़र्च कर श्वेतांक ने इसकी शुरुआत कर दी। उन्होंने 2000 सीप तालाब में डाले। इसके नतीजों ने श्वेतांक के हौसले बढ़ा दिये।

कैसे होती है मोती की खेती

मोती सीप के अंदर बनता है। जब सीप के अंदर रेत या दूसरा कोई कण चला जाता है तो सीप उसपर एक तरल पदार्थ का लेप लगा देती है। धीरे-धीरे यही लेप मोती में बदल जाता है। प्राकृतिक रूप से एक मोती को तैयार होने में कई साल लग जाते हैं। कृत्रिम रूप से मोती की खेती में सीप के अंदर एक छोटी सी सर्जरी से कण को अंदर डाला जाता है। फ़िर सीपों को नायलॉन के जाल में डाल कर तालाब में डाल दिया जाता है। सीपियों के तालाब में पानी की सप्लाई और उसके PH का ख़ास ध्यान रखना पड़ता है। सीपों का भोजन काई होती है। जिस तालाब में सीपें पाली जाती हैं उनमें काई को डाला जाता है। सीपों को तालाब में डालने से पहले उनमें न्यूक्लियस डाला जाता है। फ़िर उन्हें एंटीबायोटिक घोल में रखा जाता है। तालाब को तेज़ धूप से भी बचाने की ज़रूरत पड़ती है।

कई युवाओं को साथ जोड़ा

श्वेतांक ने ये काम अपने चचेरे भाई रोहित और मोहित पाठक के साथ शुरू किया था। रोहित और मोहित मधुमक्खी पालन और बकरी पालन भी कर रहे हैं। श्वेतांक ने मोतियों के काम के लिए स्थानीय युवाओं को साथ जोड़ा। उन्हें सीप पालने की ट्रेनिंग दी। इससे स्थानीय युवाओं को रोज़गार भी मिला। पिछले 4 सालों से श्वेतांक की ये सीप की खेती कामयाबी की बुलंदी छू रही है।

हैदराबाद के बाज़ार में बिक्री

खेती के लिए सीप को ख़रीदना पड़ता है। आम तौर पर एक सीप की क़ीमत 30 से 40 रुपये तक आती है। कल्चर करने के बाद जब मोती तैयार होता है तो वो 100 रुपये से 1500 रुपये तक में बिकता है। श्वेतांक खेत से निकले मोती को हैदराबाद के बाज़ार में बेचते हैं। उन्हें इसकी अच्छी क़ीमत हासिल हो रही है। कल्चर्ड मोती को मनचाहा आकार भी दिया जा सकता है। इसके लिए सीप के अंदर श्वेतांक गणेश-लक्ष्मी या दूसरी बेहद छोटी प्रतिकृति डालते हैं। जब मोती तैयार होता है तो उसका आकार उसी प्रतिकृति की तरह होता है। मोती का इस्तेमाल सिर्फ़ जेवरात बनाने के लिए नहीं होता। इससे कई तरह की दवाएं भी बनती है।

श्वेतांक के काम को मिल रहा विस्तार

श्वेतांक ने उदेस पर्ल फ़ार्म्स को अब वाराणसी की सीमाओं से आगे बढ़ा दिया है। चंदौली और अयोध्या समेत कई ज़िलों में श्वेतांक ने मोती पालन का काम शुरू किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर श्वेतांक को उनके इस काम के लिए बधाई दी है।