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बंदे में है दम बदलाव के क़दम

लेडी ज़ाकिर हुसैन अनुराधा

वो वर्जनाएं तोड़ने वाली हैं। उन्होंने दायरों में बंधना स्वीकार नहीं किया। वो ना केवल सामाजिक और मानसिक बेड़ियों को तोड़ने वाली हैं बल्कि एक मक़ाम बना कर नारी शक्ति की नई चेतना का प्रवाह भी कर रही हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसी ही शख़्सियत की कहानी लेकर आया है जिन्हें लोग लेडी ज़ाकिर हुसैन के नाम से जानते हैं। कला जगत की इस मशहूर शख़्सियत का नाम है अनुराधा पाल।

चुनिंदा महिला तबला वादक
आपने पुरुष तबला वादक तो बहुत देखें होंगे लेकिन क्या आपने किसी महिला को तबला बजाते देखा है? अगर देखा भी होगा तो बहुत कम। इन्हीं गिनी-चुनी महिला तबला वादकों में से एक हैं अनुराधा पाल। उनका नाम आज के समय के प्रसिद्ध तबला वादकों में शुमार है। केवल 6 साल की उम्र से तबला वादन की शिक्षा लेने वाली अनुराधा आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी छाप छोड़ चुकी हैं।

6 साल उम्र से प्रशिक्षण
अनुराधा पाल का जन्म किसी संगीत घराने में नहीं हुआ लेकिन उनके माता-पिता कलाप्रेमी थे। इला और देवेंद्र पाल के इसी कला प्रेम का बीज अनुराधा के अंदर भी प्रस्फुटित हुआ। उनकी नानी सरोज बेन भी कला जगत से जुड़ी हुई थीं। उनके ननिहाल में कई संगीतकार और कलाकारों का आना-जाना लगा रहता था। उन्होंने ही अऩुराधा को संगीत के साथ-साथ तबला सीखने की सलाह दी थी। अनुराधा की मां भी गाती थीं। इसके अलावा जो कलाकार उनके घर आते थे उन्हें देखना और सुनना अनुराधा को बहुत अच्छा लगता था। इसी दौरान उनकी रुचि ताल और लय में ज़्यादा दिखाई देने लगी। इसे देखकर कई संगीतकारों ने उन्हें तबला सीखने की सलाह दी। लेकिन ये आसान नहीं था। अनुराधा को कोई भी तबला सिखाने के लिए तैयार नहीं था। यहां तक कि जो गुरु अनुराधा के भाई को तबला सिखा रहे थे उन्होंने भी इसके लिए इनकार कर दिया। वजह एक ही थी-सोच। सबका यही कहना था कि तबला पुरुष ही बजा सकते हैं महिला नहीं। लेकिन अनुराधा का हौसला नहीं डिगा। उन्होंने ख़ुद तबला बजाना शुरू कर दिया। दो-तीन महीने बाद जब उनके भाई के गुरु ने उन्हें तबला बजाते देखा तो वो हैरान रह गए। इसके बाद से उनकी औपचारिक शिक्षा शुरू हुई। तबला वादन की शुरुआती शिक्षा उन्हें बनारस घराने से मिली।

गुरु मिले तो मिला ज्ञान
कला प्रेमी माता पिता और दादी की वजह से अनुराधा की राह तैयार होती गई। तबले पर उनकी उंगलियां जादू बिखेरने लगी। केवल 9 साल की उम्र में उन्होंने दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने लगीं। इसी दौरान उनकी मुलाक़ात महान तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा खां साहब से हुई। यहां उन्होंने उस्ताद अल्ला रक्खा और उस्ताद ज़ाकिर हुसैन से तबला सीखा। केवल 13 साल की उम्र में अनुराधा विदेश में शो करने लगीं। इतनी छोटी सी उम्र से ही अनुराधा ना केवल प्रसिद्ध तबला वादकों में शुमार हो गईं बल्कि पहली महिला पेशेवर तबला वादक भी बन गईं।

मुश्किलों को पार कर बढ़ती गईं
अनुराधा सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गईं और इस पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपना एक अलग मक़ाम हासिल किया लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था। हालांकि अनुराधा का एक जीवन मंत्र है कि वो अपने जीवन की परेशानियों और मुश्किलों की बातें बहुत कम करती हैं। उनका कहना है कि मुश्किलों से ही जीत कर कामयाबी मिलती है। वो बस ये कहती हैं कि अगर आप में क़ाबिलियत है, अगर आपमें प्रतिबद्धता है, अगर आपमें दृढ निश्चय है तो ये मुश्किलें हल होती जाती हैं। इस दृढ निश्चय के लिए वो अपने पिता को श्रेय देती हैं।

ख़ुद को तराशती गईं अनुराधा
अनुराधा ने अपनी संगीत शिक्षा के साथ-साथ स्कूली पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दिया। वो सुबह पांच बजे उठ कर रियाज़ करती थी। इसके बाद वो अपनी पढ़ाई करती थी। दिन भर स्कूल के बाद शाम में वो गुरुजी के पास तबला सीखने जाती थीं। छोटी उम्र से ही उन्होंने पहले तो एकल प्रस्तुति की तैयारी की। इसके बाद उन्होंने संगत का अभ्यास किया। अनुराधा पाल ने किशोरी अमोलकर जी, पंडित जसराज जी, वीणा सहस्त्रबुद्धे जैसे बड़े कलाकारों के साथ संगत की। उनका कहना है कि दूसरे कलाकारों के साथ संगत करने के लिए सबसे पहले उनकी सोच को समझना होता है। वो बताती हैं कि हर रोज़ वो किसी ना किसी कलाकार के साथ संगत करती थीं।

तबला वादन में नवाचार की शुरुआत
अनुराधा बताती हैं कि तबले की अलग भाषा होती है। वो कहती हैं कि जब आप ध्यान से तबला सुनेंगे तो लगेगा कि तबला बोल रहा है। उन्होंने बताया कि तबले में अपनी पहचान बनाने के लिए जब उन्होंने सोचना शुरू किया तो उनका ध्यान तबले की इसी भाषा पर गया। इसके बाद उन्होंने इसी भाषा का इस्तेमाल करते हुए अलग-अलग प्रस्तुतियां तैयार की। इसमें ख़ास तौर पर तबले की थाप पर रामायण की रचना अद्भुत है। इसके अलावा महाभारत और श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के रूपों का वर्णन भी लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है।

कलाकारों को आगे बढ़ा रही हैं अनुराधा
अनुराधा ने न केवल ख़ुद को स्थापित किया बल्कि सैकड़ों महिला कलाकारों को भी आगे बढ़ाने का काम किया। वो कहती हैं कि हमें ये भी देखना है कि कला का ये क्षेत्र कैसे आगे बढ़े। इसी क्रम में उन्होंने 1996 में स्त्री शक्ति नाम के बैंड का गठन किया। ये कर्नाटक संगीत के क्षेत्र में देश का पहला महिला बैंड है। वो बताती हैं कि जब उन्होंने महिला कलाकारों से इस बैंड में जुड़ने की बात कि तो कई तरह की मुश्किलें सामने आई। कई महिलाओं के घरवालों ने इस बात पर आपत्ति जताई कि अगर ये कार्यक्रम करने जाएंगी तो घर का काम कौन करेगा। इसके लिए अनुराधा ने उन महिलाओं के घरवालों को अलग से पैसे दिये और कहा कि जब-जब कार्यक्रम हों तो वो किसी काम वाले को रख लें। अनुराधा ने इन महिलाओं को ना केवल देश में बल्कि विदेश में भी अपने हुनर को प्रदर्शित करने का मौक़ा दिलाया। इसके अलावा सुफोरे और रिचार्ज के नाम से दो और बैंड हैं। इनके ज़रिये अनुराधा ने ना केवल महिलाओं के लिए बल्कि लोक और सूफी कलाकारों के लिए, दिव्यांग कलाकारों के लिए काफ़ी काम किया।

कोरोना काल के दौरान मदद
कोरोना काल का समय कलाकारों के लिए भी बहुत मुश्किल भरा रहा। इस बुरे दौर में अनुराधा कई कलाकारों के लिए मदद की। अपने अनुराधापाल फाउंडेशन के ज़रिये उन्होंने लोक कलाकारों, आदिवासी कलाकारों और वाद्य यंत्र बनाने वालों को मदद पहुंचाई। इसके लिए उन्होंने 20 राज्यों के 350 संगीतकारों, 300 महिलाओं को बच्चों को राशन पहुंचाया। इसके अलावा उन्होंने दिव्यांगों के लिए व्हील चेयर और दूसरे सामान, बच्चों की पढ़ाई के लिए मोबाइल भी बांटे।

गजगामिनी में दिया संगीत
अनुराधा पाल को पंडित विश्वमोहन भट्ट, पंडित जसराज, उस्ताद ज़ाकिर हुसैन, रोनू मजूमदार और पंडित तरुण भट्टाचार्य जैसे महान कलाकारों के साथ कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मौक़ा मिला। उनका तबला वादन सुन कर माधुरी दीक्षित के साथ फ़िल्म बना रहे मशहूर चित्रकार मक़बूल फिदा हुसैन ने अनुराधा से गजगामिनी का म्यूज़िक देने कहा था। इस फ़िल्म के अलावा उन्होंने कई डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फ़िल्म के लिए भी संगीत दिया है।

कई उपलब्धियां झोली में
साल 2008 में अनुराधा पाल ने वुडस्टॉक फेस्टिवल में अपना कार्यक्रम पेश किया। ये किसी भी कलाकार के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। पोलैंड में हुए इस आयोजन में 4 लाख दर्शकों के बीच अनुराधा ने अपनी प्रस्तुति दी थी। साल 2011 में उन्होंने ब्राजील में फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया में भी अपनी पेशकश दी।

राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित
अनुराधा पाल को कला के क्षेत्र में राष्ट्रपति सम्मान से नवाज़ा गया है। इसके अलावा उन्हें 100 से भी ज़्यादा पुरस्कार मिल चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अनुराधा पाल की कला की तारीफ़ की है। उम्मीद है कि उनकी कला का ये सफ़र अनवरत जारी रहे।