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धरती से

मानव जाति को ऑक्सीजन देती गौशाला

गाय हमारी संस्कृति का हिस्सा है। गाय हमारे समाज का हिस्सा है। गाय हमारे जीवन का हिस्सा है। गाय हमारी अर्थव्यवस्था का मजबूत हिस्सा रही है। दूध-घी-दही-छाछ देने से लेकर खेती तक में गाय का महत्वपूर्ण योगदान सदियों से रहा है लेकिन हमने गाय को क्या दिया? ज़्यादा दूध के लालच में हमने देसी गायें पालनी बंद कर दी। जर्सी गायों का बड़े पैमाने पर पालन शुरू किया गया। खेत में गोबर की खाद के बदले रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया। हल की जगह ट्रैक्टर और कोल्हू की जगह मशीनें लगा ली। बूढ़ी होने पर इन गायों को सड़क पर छोड़ दिया। आज देश के हर शहर में ये बूढ़ी गायें सड़कों पर कचरा खाती दिखाई दे जाती हैं। क्या यही है हमारा गौ प्रेम? क्या इसलिए हम गाय को माता मानते हैं? अब समय आ चुका है जब हमें पीछे लौटना होगा। अपनी गलतियां सुधारनी होंगी। हमारे बीच मौजूद कई ऐसे लोग हैं जो समाज को ना केवल इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं बल्कि वो इसे एक आंदोलन की तरह चला रहे हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसे ही शख़्स की कहानी लेकर आया है जो इस आंदोलन के सारथी के तौर पर उभरे हैं। ये कहानी है पटना के विनोद सिंह की और उनके ऑक्सीजन मूवमेंट की। 

  

18 साल से चल रहा है आंदोलन 

विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार। 

निज इच्छा निर्मित तनु माया गुण गो पार।।

रामायण की इस चौपाई को अपने जीवन का आधार बनाकर गौ संरक्षण में जुटे हैं विनोद सिंह। विनोद सिंह एक कारोबारी परिवार से जुड़े हैं लेकिन उनकी सोच कारोबार से अधिक समाज से जुड़ी है। इसी सोच का परिणाम है स्टूडेंट ऑक्सीजन मूवमेंट। साल 2003 में इस आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन का मक़सद था देसी गायों की सुरक्षा और संवर्धन। लेकिन ये इतने पर ही सीमित नहीं है। स्टूडेंट्स ऑक्सीजन मूवमेंट का लक्ष्य ना केवल देसी गौ वंश की रक्षा करना है बल्कि इसके ज़रिये खेती, फसल और इंसान को भी सुरक्षित करना है। विनोद सिंह ने लोगों को ये समझाना और बताना शुरू किया कि कैसे जर्सी-हाइब्रिड गायें हमारे लिए नुकसानदायक हैं। उन्होंने अपने साथ लोगों को जोड़ना शुरू किया। लोगों के बीच जागरूकता फैलानी शुरू की कि देसी गाय ही हमारे लिए हर तरह से फ़ायदेमंद है। देसी गाय का ए2 दूध हमारे लिए स्वास्थ्यवर्धक है। उससे बना दही, छाछ और घी पैक्ड्स डेयरी प्रोडक्ट्स से ज़्यादा लाभदायक हैं। घर में देसी गाय का दूध और घी होता तो घर के लोग स्वस्थ्य रहेंगे। देसी गाय के दूध-घी की मांग बढ़ेगी तो जो किसान और पशुपालक देसी गाय छोड़ कर जर्सी गाय पाल रहे हैं वो फ़िर से देसी गाय पालने लगेंगे। ये एक चेन सिस्टम की तरह काम करेगा। जब देसी गायें बहुतायत में पाली जाएंगी तो उनके गोबर और गौ मूत्र से खेत के लिए अच्छे प्राकृतिक खाद तैयार होंगे जिससे फसल और मिट्टी दोनों में सुधार आएगा। इससे मानव जाति को भी फ़ायदा होगा।

ऑक्सीजन गौशाला की शुरुआत 

स्टूडेंट ऑक्सीजन मूवमेंट को विस्तार देते हुए विनोद सिंह ने ऑक्सीजन गौशाला शुरू करने का फ़ैसला किया। साल 2019 में पटना के पास बिहटा में इस गौशाला की नींव रखी। उन्होंने इसे जन अभियान बनाने के लिए गौशाला की सदस्यता का अभियान शुरू किया। लोगों को देसी गाय का महत्व समझाकर उन्हें अपने साथ जोड़ा। धीरे-धीरे ये गौशाला आकार लेने लगी। विनोद जी ने इस गौशाला में गिर नस्ल की क़रीब सौ गायें मंगवाईं। फ़िलहाल इनकी संख्या 200 से अधिक हो चुकी है। गाय के दूध पर पहला हक़ उसके बछड़े-बछड़ी का है। इसके बाद भी इतना दूध बचता है कि वो गौशाला के तमाम सदस्यों के परिवारों को मुहैया कराया जाता है। गौशाला में ही दूध की पैकिंग की मशीन है। दूध को पैक कर उसे डीप फ़्रीजर में रख दिया जाता है। इसके बाद उसे सदस्यों को दिया जाता है। बचे दूध से घी, दही और मक्खन बनाया जाता है। ख़ास बात ये है कि ऑक्सीजन गौशाला अपने यहां तैयार होने वाले घी, दही, मक्खन यहां तक की दूध को खुले बाज़ार में नहीं बेचती। ये प्रोडक्ट्स सिर्फ़ और सिर्फ़ गौशाला के सदस्यों के लिए ही है।

गौ वंश की सेवा ही धर्म 

55 बीघे में फैली इस गौशाला में गौ वंश के लिए चारे की भी हरे पैदावार होती है। इसके अलावा गौ वंश को खाने में रोज़ाना ईख भी दिया जाता है। चना, गुड़ और कई तरह के प्राकृतिक पोषण आहार गौ वंश को दिया जाता है। रोज़ाना गाय को दुहने के बाद उनकी मालिश की जाती है। गायों को बांध कर नहीं रखा जाता। वो गौशाला के एक तय इलाके में उन्मुक्त रहती हैं। ऑक्सीजन गौशाला में गायों के लिए मधुर संगीत, भजन और रामायण बजाया जाता है। इसका बेहद सकारात्मक असर गौ वंश पर पड़ता है। दूसरी डेयरी या गौ शाला में अधिक दूध के लिए गायों को कई तरह के इंजेक्शन दिये जाते हैं। इसका दुष्प्रभाव ना केवल गायों पर पड़ता है बल्कि उनके दूध को इस्तेमाल करने वाले हर शख्स पर होता है लेकिन विनोद सिंह की ऑक्सीजन गौशाला में ऐसा नहीं होता। गायों से अधिक दूध हासिल करने की कोई कोशिश नहीं होती। जो गाय जितना दूध दे सकती है उससे उतना ही दूध लिया जाता है। बूढ़ी-बीमार गायों को गौशाला से बाहर नहीं किया जाता। उनका समुचित इलाज करवा कर उनकी पूरी सेवा की जाती है। वो अंत समय तक गौशाला में ही रहती हैं।

बछड़ों का पालन 

आज के समय में बैलों का इस्तेमाल खेती के लिए लगभग ख़त्म हो चुका है। इसलिए आम तौर पर पशुपालक बछड़ों को बेच दिया करते हैं। ये बछड़े कसाई के पास पहुंचते हैं और फ़िर काट दिये जाते हैं। लेकिन ऑक्सीजन गौशाला इस कड़ी को तोड़ने और बदलाव लाने का बड़ा माध्यम बन रही है। ऑक्सीजन गौशाला में सिर्फ़ गायें ही नहीं बैल भी पाले जाते हैं। ब्रिडिंग के लिए गौशाला में गिर नंदी भी हैं।   

बैल कोल्हू मुहिम 

बैलों को बचाने के लिए विनोद सिंह ने कई रास्ते अपनाए हैं। उन्होंने गौशाला में बैल कोल्हू लगाया। इससे सरसो का शुद्ध तेल प्राप्त हो रहा है। ये कोल्ड प्रेस्ड तेल हमारे लिए भी बहुत फ़ायदेमंद है। बाज़ार के पैक्ड तेल के मुकाबले ये हमारी सेहत और बजट दोनों के लिए अच्छा है। ये तेल कम खर्च होता है। विनोद सिंह लोगों से खाने का तेल बदलने की अपील करते हैं। बैल कोल्हू तेल का इस्तेमाल कर लोगों की सेहत तो सुधरेगी ही इसके साथ-साथ बैलों को भी बचाया जा सकेगा। इतना ही नहीं बैल कोल्हू के ज़रिये विनोद सिंह रोज़गार सृजन में भी जुटे हैं। कोल्ड प्रेस्ड तेल गौशाला के सदस्यों को देश भर में भिजवाया जा रहा है। गौशाला की हलधर मेंबरशिप लेकर लोग 2500 रुपये में 6 महीने तक 1-1 लीटर तेल प्राप्त कर रहे हैं। विनोद सिंह बैलों का इस्तेमाल खेती के लिए भी कर रहे हैं। हल के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर वो खेत की जुताई करवा रहे हैं। इससे बैलों को काम मिल रहा है तो ट्रैक्टर से होने वाले प्रदूषण से मुक्ति भी मिल रही है।

धरती को उपजाऊ बनाने की कोशिश 

ऑक्सीजन गौशाला का एक और लक्ष्य धरती को रासायनिक खाद से बचाना भी है। रासायनिक खाद भले ही थोड़े समय के लिए अधिक फसल पैदा करने में मददगार साबित होते हैं लेकिन असल में ये मिट्टी की उर्वरा शक्ति को ख़त्म कर देते हैं। ऑक्सीजन गौशाला में केवल और केवल प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल होता है। गौ वंश के गोबर और गो मूत्र को खेतों में खाद के तौर पर डाला जाता है। इससे मिट्टी अपनी उर्वरा शक्ति को दोबारा पा लेती है। फसल अच्छी होती है तो साथ ही प्रकृति का भी संरक्षण होता है। उगने वाला अनाज, सब्जी और चारा इंसान और पशुओं के लिए सेहतमंद होता है।   

गौशाला टूरिज़्म का नया कॉन्सेप्ट 

विनोद सिंह नवाचार में विश्वास रखते हैं। गौशाला को लेकर भी वो नए प्रयोग करते रहते हैं। इसी में शामिल है वीकेंड डेस्टिनेशन डिनर। ऑक्सीजन गौशाला के सदस्य अपने परिवार के साथ हर सप्ताह गौशाला आ सकते हैं। यहां उन्हें देसी गाय के गोबर से बने गोयठे या कंडे पर सिंकी लिट्टी और चोखे का अनूठा खाना खिलाया जाता है। देसी गाय के दूध से बनी लस्सी, छाछ और मक्खन का आनंद मिलता है। स्वीट डिश के तौर पर ऑर्गेनिक ईख और गुड़ का लड्डू खाने को मिलता है। देसी गायों के बीच स्वस्थ वातावरण में समय बिताना एक सुखद अनुभव देता है। बच्चे यहां छुआ-छुई, पिट्टो, रुमाल चोर जैसे खेल खेलते हैं। गायों के बीच उनका बीता एक-एक पल उनके जीवन को नया आधार प्रदान करता है। बच्चे अपने हाथों से बछड़े-बछड़ी को खाना खिलाते हैं, उनके साथ फोटो खिंचाते हैं।   

बिहार की देसी गायों के लिए भी संकल्प 

फ़िलहाल ऑक्सीजन गौशाला में गुजरात की गिर गायें ही पाली जा रही हैं। विनोद सिंह बताते हैं कि बिहार में भी देसी गायों की कई नस्लें थी लेकिन उनका संरक्षण नहीं हो पाने की वजह से उनकी मूल नस्ल मिलनी मुश्किल हो गई है। लेकिन वो बछौड़ और गंगातीरी जैसी गाय की देसी नस्लों के संरक्षण के लिए भी योजना तैयार कर रहे हैं।  स्टूडेंट्स ऑक्सीजन मूवमेंट पिछले 18 साल से सिर्फ़ गौ संरक्षण ही नहीं शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ और ग़रीबी उन्मूलन जैसे सामाजिक मुद्दों पर अनवरत काम कर रहा है। इस मूवमेंट के कन्वेनर विनोद सिंह ने क्विट शुगर अभियान भी चलाया है। इसके ज़रिये वो लोगों को चीनी के बदले गुड़ का इस्तेमाल करने की सलाह दे रहे हैं। वो बताते हैं कि अगर हम चीनी छोड़ दें तो कई तरह की शारीरिक परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है। इसी तरह खादी वन्स ए वीक अभियान के तहत खादी के प्रचार प्रसार और नो हॉर्न कैंपेन के ज़रिये ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्या के ख़िलाफ़ भी मुहिम चलाई जा रही है। विनोद सिंह का ये आंदोलन समाज को एक नई दिशा दिखा रहा है। उम्मीद है कि बिहार ही नहीं पूरे देश के पशुपालक और आम लोग देसी गाय के महत्व को समझेंगे और उन्हें अपनाएंगे।