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खेल की दुनिया

देश के लिए ‘शुभ संकेत’

इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज उसकी कहानी जिसने कॉमनवेल्थ खेलों में भारत को सबसे पहले शुभ संकेत दिये। आज बात महाराष्ट्र के संकेत सरगर की। संकेत ने देश को इस बार कॉमनवेल्थ खेलों में पहला पदक दिलाया है। एक पान की दुकान चलाने वाले के बेटे ने ये साबित कर दिया है कि प्रतिभा किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती।

छोटी सी उम्र में देखे बड़े सपने

21 साल के संकेत ने बर्मिंघम में पुरुषों की 55 किलो की वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता में कुल 248 किग्रा वजन उठाकर सिल्‍वर मेडल जीता। उन्‍होंने स्‍नैच में 113 किग्रा और क्‍लीन एंड जर्क में 135 किग्रा वजन उठाया। संकेत ने क्‍लीन एंड जर्क के अपने तीसरे प्रयास में 139 किग्रा वजन उठाने की कोशिश की लेकिन उन्हें दायें हाथ में चोट लग गई। दर्द के बावजूद भी सरगर ने भार उठाने की कोशिश लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। इस मुकाबले में मलेशिया के बिन कासदान ने गोल्‍ड मेडल जीता। हैरत की बात ये है कि मलेशियाई वेटलिफ्टर ने संकेत से केवल एक किलोग्राम ज़्यादा वजन उठा कर गोल्ड मैडल जीता।
संकेत ने अपने इस पदक की तक की शुरुआत 13 साल की छोटी सी उम्र में ही कर दी थी। वो एक सुविधा सम्पन्न परिवार से नहीं बल्कि एक ऐसे परिवार से है जहां बुनियादी सुविधाएं जुटाना भी मुश्किल होता है। संकेत के पिता पान की दुकान और एक फूड स्टॉल चलाते हैं। उन्होंने अपने पिता को बचपन से ही संघर्ष करते देखा है। संकेत अपने खेल, अपनी प्रतिभा के दम पर, अपने पिता को भागदौड़ से छुट्टी दिला आराम करते देखना चाहते हैं। संकेत जब भी घर पर होते हैं वो पिता की उनके काम में मदद करते हैं।

खेलो इंडिया ने खोले रास्ते

भारत सरकार की योजना खेलो इंडिया कई प्रतिभाशाली बच्चों को मंच देने का काम कर रही है। संकेत भी इसी की एक खोज है। नेशनल चैंपियन संकेत खेलो इंडिया यूथ गेम्स और 2020 में खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में शामिल हुए थे। वह वेटलिफ्टिंग में भारत के लिए पदक जीतने वाले फेवरेट खिलाड़ियों में से एक थे। संकेत ने 13 साल की उम्र में खेलना शुरू किया था। ताशकंद में कॉमनवेल्थ वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप 2021 सहित प्रमुख अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में उन्होंने हिस्सा लिया।

चार साल पहले ही किया था खेलने का इरादा

संकेत ने चार साल पहले राष्ट्रमंडल खेल में पदक जीतने का निश्चय किया था। वह खाली वक्त में पिता की दुकान पर पान बेचते थे। उन्होंने बताया था कि वह दिन 5 अप्रैल 2018 था। मैं एक ग्राहक को पान बनाकर दे रहा था। उसी समय टीवी पर भी नजर थी। कॉमनवेल्थ गेम्स चल रहे थे। 56 किलोग्राम कैटेगरी में गुरुराज पुजारी हिस्सा ले रहे थे। उसी वक़्त मैंने तय किया था कि अगली बार मैं भी कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने जाऊंगा। उन्होंने निश्चय किया कि इसके लिए भले ही चाहे कितनी भी मेहनत क्यों ना करनी पड़े, वो करेंगे।

अमृत महोत्सव में संकेत का योगदान

पदक जीतने के बाद संकेत ने इस पदक को उन स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित कर दिया जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया।
संकेत का ये संघर्षों भरा सफ़र ये प्रेरणा दे रहा है कि ज़रूरी नहीं कि सुविधाएं होने पर ही हम किसी मुक़ाम को हासिल कर पाते हैं। संकेत जैसे भी सैकड़ों लोग हैं जो मुश्किल परिस्तिथियों को भी पार कर कामयाबी का झंडा गाड़ते हैं। ना केवल ख़ुद और अपने परिवार का बल्कि देश का मान भी बढ़ाते हैं।
संकेत ने आज भले ही चांदी जीती हो लेकिन वो आगे और भी पदक जीत कर भारत का विजय पताका लहराते रहेंगे।