Home » वो महिला जिसे मिली कॉम्बैट यूनिट की कमान
बंदे में है दम

वो महिला जिसे मिली कॉम्बैट यूनिट की कमान

उनकी ये उपलब्धि सिर्फ़ उनकी नहीं है। ये कामयाबी देश की हर उस बेटी की कामयाबी की राह तैयार कर रही है जो ऊंचे आसमान में उड़ना चाहती है। एक छोटे से शहर से निकल कर आसमान की बुलंदियों को छूने वाली इस महिला ने ये साबित कर दिया है कि नारी शक्ति को किसी दायरे में बांधना मुमकिन नहीं है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट उसी नारी शक्ति की कहानी लेकर आया है जिसकी कामयाबी का परचम हर तरफ़ लहरा रहा है।

वायुसेना का बदला इतिहास
शैलजा धामी। ये वो नाम है जिसने वायुसेना में नया इतिहास रचा है। शैलजा पहली महिला हैं जिन्हें भारतीय वायुसेना में कॉम्बैट यूनिट की कमान सौंपी गई है। अब तक किसी भी महिला को कॉम्बैट यूनिट का नेतृत्व करने का मौक़ा नहीं मिला था। 7 मार्च को वायुसेना ने फ्रंटलाइन कमांड हेडक्वॉर्टर के ऑपरेशन में तैनात ग्रुप कैप्टन शैलजा धामी को ये ज़िम्मेदारी सौंपने का एलान किया। उन्हें पश्चिमी सेक्टर में फ्रंटलाइन कॉम्बैट यूनिट की कमान दी गई है।

शैलजा के नाम और भी कीर्तिमान
कैप्टन शैलजा धामी साल 2003 में इंडियन एयरफोर्स में शामिल हुई थीं। उनके पास 2800 घंटे से अधिक की उड़ान का अनुभव है। वो एक शानदार फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर हैं। वो पहली महिला हैं जिनके पास फ्लाइंग ब्रांच की स्थाई कमिशन है। इतना ही नहीं कॉम्बैट यूनिट की पहली महिला कमांडर शैलजा को वायुसेना की फ्लाइंग यूनिट की पहली महिला फ्लाइट कमांडर बनने का भी गौरव हासिल है। उन्होंने ये कामयाबी साल 2019 में हासिल की थी। एयर ऑफ़िसर कमांडिंग इन चीफ़ की तरफ़ से वो दो बार कमांड की गई हैं। कॉम्बैट और कमांड यूनिट का नेतृत्व एक महिला को सौंपा जाना एक बड़े बदलाव का सूचक है। ये बता रहा है कि अब महिलाएं वायुसेना का नेतृत्व करने के लिए आगे बढ़ रही हैं।

शहादत की मिट्टी ने सिखाई देशभक्ति
शैलजा लुधियाना के सराभा गांव की रहने वाली हैं। ये गांव शहीद करतार सिंह सराभा की शहादत के लिए जाना जाता है। इस गांव की मिट्टी में पली-बढ़ी शैलजा के अंदर भी देशभक्ति लहू बनकर बहती है। शैलजा पिछले 15 सालों से वायुसेना में कार्यरत हैं। उन्होंने दसवीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल से की। घुमार मंडी के खालसा कॉलेज से उन्होंने 12वीं से बीएससी की पढ़ाई पूरी की। 12वीं की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने एनसीसी ज्वाइन की थी। इसमें उन्हें एयर विंग मिला था। एनसीसी के एयर विंग ने उनकी ज़िंदगी ही बदल दी। हिसार में हुई ओपन ग्लाइडिंग टूर्नामेंट में स्पॉट लैंडिंग में दूसरा स्थान हासिल किया था। इस कामयाबी ने शैलजा को आसमान की ऊंचाई से प्यार करना सिखा दिया। इसी दौरान उन्हें गणतंत्र दिवस के मौक़े पर दिल्ली में पैरा ग्लाइडिंग के लिए मैडल से सम्मानित किया गया। रक्षा मंत्री और पंजाब के राज्यपाल ने उन्हें चाय पर आमंत्रित किया था।

हार नहीं मानने का जज़्बा
12वीं के बाद उनका दाखिला इंजीनियरिंग कॉलेज में कराया जा रहा था। जालंधर के कॉलेज में बस फीस भरने की देर थी। जब वो अपने पिता के साथ फीस भरने जा रही थी तो रास्ते में ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। पिता ने पूछा तो कहा कि इंजीनियरिंग में दाखिले के बाद उनका NCC छूट जाएगा। इसके बाद उनका एडमिशन बीएससी में कराया गया। इसी दौरान उन्होंने एयरफ़ोर्स के लिए परीक्षा दे दी। बीएससी के फ़ाइनल रिज़ल्ट से पहले ही उनका चयन वायुसेना के लिए हो गया। सबकुछ ठीक था। अंतिम चयन के लिए वो दिल्ली पहुंची लेकिन यहां मेडिकल में उनकी लंबाई कम बता कर उन्हें छांट दिया गया। लेकिन शैलजा हारने वालों में नहीं थी। अपने पिता के साथ उन्होंने ख़ुद के लिए लड़ाई लड़ी। लुधियाना सीएमओ से दोबारा मेडिकल जांच करवाई और उसकी रिपोर्ट दिल्ली भेजी। इसके बाद एयरफोर्स ने उनका मेडिकल एफएमसी पुणे से करवाया जिसमें उनकी लंबाई सही पाई गई और उनका चयन कर लिया गया।

जिस शैलजा धामी को लंबाई की वजह से पहली बार में वायुसेना की भर्ती से छांट दिया गया था वो आज वायुसेना की कॉम्बैट यूनिट की पहली महिला कमांडर हैं। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट शैलजा को शुभकामनाएं देता है और उम्मीद करता है कि वो कामयाबी के और ऊंचे आसमान तक ज़रूर पहुंचेंगी।