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धरती से

इंसान पशुओं से संवाद कर सकता है!

डॉक्टर डू लिटिल तो आप सभी को याद होंगे। साल 1920 में प्रथम विश्व युद्ध की विभीषिका झेल रहे बच्चों के लिए गढ़ा गया एक काल्पनिक पात्र। अमेरिकी कार्टून सीरिज़ का हिस्सा डॉक्टर डू लिटिल जानवरों से बात करते थे। उनकी परेशानियों को सुलझाते थे। मज़ाकिया से इस किरदार को अगर नज़दीक से देखें तो कई भावनात्मक परतें खुलती जाएंगी।

लेकिन, क्या सच में ऐसा संभव है कि कोई जानवरों से बात कर लें? हमारा जवाब है बिलकुल। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट आपको आज मिलवा रहा है मध्य प्रदेश के छोटे और शांत शहर देवास में अपने परिवार के साथ रह रही राधा श्रीवास्तव से। राधा पशुओं से कम्युनिकेट कर सकती हैं। वो जानवरों के साथ कम्युनिकेट कर सकती हैं। वो उनकी उलझनें, उनकी परेशानियां समझ जाती हैं और उनका हल निकालना भी जानती हैं। राधा ख़ास तौर पर सड़क पर रह रहे आवारा पशुओं के लिए काम करती हैं। उनका मानना हैं कि ऐसे पशुओं को साथ और स्नेह की ज़रुरत सबसे अधिक होती है।

पर्यावरण और पशुओं को समर्पित जीवन

राधा एक शिक्षक हैं, उनका अपना स्कूल हैं। वो खास तौर पर ऐसे बच्चों के लिए काम करती हैं जो बाकी बच्चों से कुछ अलग होते हैं। लर्निंग डिसएबिलिटी से जूझ रहे ऐसे बच्चों के साथ वो सालों से काम कर रही हैं। इसके साथ ही वो पर्यावरणप्रेमी भी हैं। अपने आंगन को हरा-भरा रखने के साथ ही वो चिड़ियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था करती हैं। उन्होंने अपने घर में चार कुत्ते भी पाले हुए हैं जो उनके घर के सदस्य की ही तरह हैं। इनमें से तीन तो स्ट्रीट डॉग्स थे जिन्हें राधा रेस्क्यू कर लाईं थीं। वो बताती हैं कि उन्होंने नहीं, इन कुत्तों ने उनके परिवार को अपनाया है। इसके अलावा वो अपने घर और स्कूल के आसपास के सभी आवारा पशुओं का ध्यान रखती हैं। कुत्तों का वैक्सीनेशन, इलाज और उनके खाने की व्यवस्था भी खुद ही करती हैं। सालों से इन जानवरों से जुड़े रहने के चलते उनके और इन जानवरों के बीच एक आत्मीयता का रिश्ता जुड़ गया।

और अधिक की चाह में बनी एनिमल कम्यूनिकेटर

राधा संतुष्ट हो जाने वाले लोगों में से नहीं हैं। वो हमेशा कुछ नया, कुछ बेहतर करने में लगी रहती हैं। राधा की इस लगन को उनके पति और बेटी का भी पूरा साथ मिला हैं। उन्होंने इसी साथ के सहारे पहले रेकी सीखीं। वो एक सर्टिफाइड एनिमल रेकी प्रैक्टिशनर हैं। जिस टेलिपैथी की तकनीक को इंसान भूल चुके हैं उन्हें जानवर और पेड़-पौधे आज भी इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि उन्होंने एक क़दम और आगे बढ़ाया और, एनिमल कम्यूनिकेटर का कोर्स किया। आज राधा स्ट्रीट एनिमल के साथ-साथ गुम हो चुके या घर छोड़ कहीं और चले गये जानवरों को खोजने में उनके परिवार की मदद करती हैं।

प्यार और संवाद का रिश्ता

राधा बताती हैं कि गोवा की एक पेट डॉग ज़ूबी की फैमिली ने उनसे संपर्क किया था। ज़ूबी पार्वोवायरस से पीड़ित थीं। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं हो रहा था। तब परिवार ने राधा से संपर्क साधा। राधा ज़ूबी से मिलने पहुंची। उससे बात की तो पता चला कि वो अस्पताल में अपने परिवार की कमी महसूस कर रही है। लेकिन अस्पताल में सिर्फ़ एक बार ज़ूबी से मिलने जाया जा सकता था। ऐसे में ज़ूबी ने राधा को बताया कि उसकी एक लाल गेंद है जिससे वो घर में खेला करती है और उसे पालने वाली मां की एक टी शर्ट चाहिए। राधा ने जब ये बात ज़ूबी के घरवालों को बताई तो वो हैरत में पड़ गए। वाकई ज़ूबी घर में एक लाल गेंद से खेलती थी। घरवालों ने तुरंत वो गेंद और टी-शर्ट ज़ूबी तक पहुंचाई। इसका असर भी हुआ। ज़ूबी जल्द ही ठीक होकर घर लौट आई।

परिवार में शामिल डॉग एक तरह से आपकी ही छवि को प्रस्तुत करता हैं। राधा ये बात भी लोगों को समझाती हैं। कोई भी डॉग अगर हिंसक हो रहा है तो वो इसलिए नहीं कि उसे कोई समस्या है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि घर में कोई हिंसक हो रहा है, कोई तनाव में है। एक तरह से ये आपके जीवन का आइना होते हैं। जानवर इंसानों की नकारात्मक ऊर्जा को बहुत तेजी से आत्मसात कर लेते हैं। ऐसे में उनकी उसी ऊर्जा को फिर सकारात्मक बनाना ही सबसे अहम काम होता है।

भावुक बनिये, प्रकृति से जुड़िये

राधा का कहना है कि अगर आपको ये भी लग रहा है कि पेड़ पौधों को आज पानी देना हैं या आज ही सूखे पत्तों को हटाना है तो ये एक तरह का कम्यूनिकेशन है जो पेड़-पौधे आपसे कर रहे हैं। पेड़ पौधे, जानवर हर कोई अपने अपने स्तर पर आपसे बात करते हैं, ये आप पर है कि आप उनकी बातों को कितना समझ पाते हैं, उनके कितना रिश्ता बना पाते हैं।