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Insight बंदे में है दम

ह्यूमन्स ऑफ़ भोपाल

आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट कहानी लेकर आया है उन बच्चों की जिन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में ही ये समझ लिया है कि इंसानियत क्या चीज़ होती है। ये जान लिया है कि दूसरों की मदद का सुख क्या है और ये भी देश और समाज का निर्माण तभी हो सकता है जब सब साथ रहें, ख़ुश रहें। आज की कहानी है ह्यूमन्स ऑफ़ भोपाल की।

स्कूली बच्चों का सार्थक अभियान

समाज के वैसे लोग जो ज़रूरतमंद हैं, ग़रीबी-तंगहाली में गुजर-बसर कर रहे हैं, अक्सर राह चलते हमारी भी नज़रें उन पर पड़ती है और हम नज़रें बचाकर वहां से निकल लेते हैं लेकिन हमारे बीच के ही कई लोग ऐसे भी हैं जो नज़रें बचाते नहीं बल्कि आगे आकर उन लोगों की मदद करते हैं। ऐसे ही लोग आम से ख़ास बन जाते हैं और अगर ये ख़ास लोग अगर छोटी उम्र के हों तो फ़िर जैसे सोने पर सुहागा।

भोपाल में काम कर रहा ह्यूमन्स ऑफ़ भोपाल ग्रुप कुछ ऐसा ही है। इस ग्रुप को स्कूली बच्चे चला रहे हैं और ज़रूरतमंदों तक मदद पहुंचा रहे हैं।  इस संस्था को भोपाल के सेंट जोसेफ़ को-एड स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने शुरू किया है। अपने आसपास ऐसे लोगों को देख कर इन बच्चों ने कुछ करने की ठानी और फ़िर 31 मई 2022 को ह्यूमन्स ऑफ़ भोपाल की शुरुआत हुई। इससे संस्थापकों में आयज़ा अली, शिवि पारिख, दक्ष प्रताप सिंह, दिव्य असाटी और सिद्धि प्रेमचंदानी शामिल हैं।

पॉकेट मनी से मदद

इन बच्चों ने अपने काम की शुरुआत अपनी पॉकेट मनी के इस्तेमाल से की। अपने-अपने घर से मिलने वाली पॉकेट मनी को जमा किया और फ़िर ज़रूरतमंदों तक मदद पहुंचाई। बच्चों के घरवालों ने भी इस अच्छे काम में उनका साथ दिया।

बढ़ता गया ह्यूमन्स ऑफ़ भोपाल का कारवां

केवल 5 बच्चों से शुरू हुआ ये ग्रुप अब बड़ा आकार ले चुका है। इस ग्रुप में अब भोपाल के कई स्कूलों के 60 से अधिक सदस्य जुड़ चुके हैं। संस्था में 20 स्वयंसेवी भी हैं। सोशल मीडिया पर ये ग्रुप काफ़ी एक्टिव है। ग्रुप बढ़ने से संस्था के फंड में भी बढ़ोतरी हुई है और अब ये संस्था बड़े स्तर पर लोगों की मदद कर रही है।

कपड़े और राशन का वितरण

भोपाल की झुग्गी बस्ती हो या फ़िर बस या रेलवे स्टेशन। इस ग्रुप की नज़र हमेशा उन ज़रूरतमंद लोगों पर रहती है जिनकी ये मदद कर सकते हैं। बस्तियों में इन बच्चों ने ग़रीब परिवारों के बीच राशन बांटे हैं। ठंड ने दस्तक दी तो इन बच्चों ने जाड़े के कपड़े जुटा कर ज़रूरतमंदों को दिये। हाल ही में इन बच्चों ने मातृछाया जाकर वहां भी लोगों की मदद की। ये ग़रीब बच्चों के बीच क़िताबें, कॉपी, पेन-पेन्सिल जैसे स्टेशनरी की चीज़ें भी बांटते हैं।

जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा

सोशल मीडिया पर ये ग्रुप बच्चों को सामान्य परेशानियों से बचने के उपाय भी समझाता है। परीक्षा का तनाव, एग़्ज़ाम में फेल होने के बाद की परेशानी, अभिभावकों से साथ सामंजस्य, मेंटल हेल्थ जैसे मुद्दों से निपटने के लिए ये ग्रुप सोशल मीडिया पर टिप्स भी देता है।

छोटी उम्र में इन बच्चों ने बड़ा काम करने का फ़ैसला कर लिया है। ह्यूमन्स ऑफ़ भोपाल के ज़रिये वाकई इन बच्चों ने लोगों में इन्सानियत को एक बार फ़िर ज़िंदा करने की जो मशाल जलाई है उसकी रोशनी बहुत दूर तक जाएगी।

इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट इन बच्चों को शुभकामनाएं देता है।