कर्मयोगियों का क्लब 60
इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की हमारी आज की कहानी किसी एक शख्सियत पर आधारित नहीं है। हमारी आज की कहानी के नायक कुछ ऐसे कर्मयोगी हैं जिन्होंने अपनी बढ़ती उम्र को कमज़ोरी नहीं बनने दी और लगातार समाज के लिए काम कर रहे हैं। जब देश के ज़्यादातर हिस्से पानी की कमी से जूझ रहे हैं, ऐसे वक़्त में मेरठ में वरिष्ठ नागरिकों का एक दल जल संरक्षण की दिशा में अभूतपूर्व योगदान दे रहा है। ये ग्रुप समाज को भी पानी की बूंद-बूंद बचाने के लिए प्रेरित कर रहा है।
ये प्रेरणादायक कहानी है मेरठ के ‘क्लब-60’ की।
60 के पार पर ऊर्जा अपार
ऐसे लोग जिनकी उम्र 60 से ज़्यादा हो चुकी है और जो अपनी नौकरी से रिटायर हो चुके हैं, ज़्यादातर लोग उम्र के इस पड़ाव पर आराम फरमाना पसंद करते हैं। उम्र और ढलती सेहत को लेकर परेशान रहते हैं लेकिन मेरठ के ‘क्लब-60’ के इन ‘युवाओं’ की बात ही कुछ और है।
फ़िल्म ने दिखाया क्लब 60 का रास्ता
इस क्लब के बनने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। स्टेट बैंक में मैनेजर के पद से रिटायर महेश रस्तोगी ने अनायास ही एक फ़िल्म देख ली। फ़िल्म उन्हीं की तरह रिटायर हो चुके लोगों पर थी, नाम था क्लब 60। बस फ़िर क्या था- ये आइडिया महेश के दिल-ओ-दिमाग में घर कर गया और साल 2015 में उन्होंने ‘क्लब-60’ नाम का ग्रुप बना लिया।
‘वॉटर हीरो’ की जल क्रांति
‘क्लब-60’ आज जल संरक्षण की दिशा में अपने दम पर मिसाल बन चुका है। इसके सदस्य हरि विश्नोई ने 70 साल की उम्र में बूंद-बूंद पानी बचाने की ठानी। भूजल स्तर में लगातार आ रही कमी को देखते हुए उन्होंने अपने मोहल्ले के पार्क में रेन वॉटर हारवेस्टिंग सिस्टम लगा दिया। देखते ही देखते मोहल्ले में ऐसे चार और सिस्टम लग गए, जिसके बाद इलाक़े के भूजल स्तर में काफी सुधार आ गया। हरि विश्नोई के जल संरक्षण से जुड़े जुनून को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि वो घर आए मेहमान को पहले छोटे गिलास में ही पानी देते हैं। बूंद-बूंद पानी बचाने के उनके इस मिशन को जल शक्ति मंत्रालय ने भी सराहा और उन्हें ‘वॉटर हीरो’ का सम्मान दिया।
कहीं नहीं देखा होगा ऐसा पार्क
‘क्लब-60’ की टीम ने मेरठ के शास्त्रीनगर मोहल्ले के पार्क का ऐसा काया-कल्प किया कि वो पूरे शहर का टूरिस्ट स्पॉट बन गया। दूर-दूर से लोग इस पार्क को देखने के लिए पहुंचते हैं। इस पार्क में औषधीय गुणों से भरपूर ढ़ेर सारे पौधे लगाए गए हैं। पार्क में रूद्राक्ष, काजू, अंजीर, पारिजात समेत 2 हज़ार से ज़्यादा पौधे हैं। ये शायद देश का इकलौता ऐसा पार्क है जहां पौधे गायत्री मंत्र की गूंज के साथ बड़े होते हैं। सुबह योग और व्यायाम के साथ गायत्री मंत्र बजाया जाता है। पार्क में सोलर लाइट, वॉटर फाउंटेन के साथ ओपन जिम की भी सुविधा है। सिंचाई के लिए आधुनिक स्प्रिंकलर और ड्रिप सिस्टम भी लगाया गया है। मक़सद सिर्फ़ एक है, भविष्य की पीढ़ी के लिए पानी की बचत करना।
प्रधानमंत्री मोदी भी कर चुके हैं तारीफ़
समाज की बेहतरी के लिए ‘क्लब-60’ की तरफ से उठाए जा रहे कदमों की तारीफ़ खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कर चुके हैं। अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने जल संरक्षण के लिए ‘क्लब-60’ के मिशन की दिल खोलकर सराहना की थी।
कूड़े को ‘कंचन’ बनाया
‘क्लब-60’ के सदस्य महेश रस्तोगी ने कचरे को निपटाने का नायाब तरीका ढूंढ निकाला। उन्होंने गार्डन वेस्ट जैसे फूल-पत्तियों से वैदिक कम्पोस्ट बनाना शुरू किया। इस विधि से कम्पोस्ट तैयार करने पर ना सिर्फ़ समय की बचत होती है बल्कि ख़र्च भी कई गुना कम होता है। इस खाद के इस्तेमाल से आज ऑर्गेनिक फल, फूल और सब्जियां उगाई जाती हैं। ‘क्लब-60’ के इस फॉर्मूले को अब कई स्कूल-कॉलेजों और पार्कों में भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
दिल जीत लेगा वेस्ट टू आर्ट फ़ॉर्मूला
जिन पुरानी और बेकार हो चुकी चीजों को हम लोग फेंक देते हैं उन्हीं चीज़ों को ‘क्लब-60’ के सदस्य नये रंग रूप में ढाल देते हैं। इन लोगों ने बेकार हो चुके टायर, पानी की बोतल, पाइप और कार्डबोर्ड को संवार कर सुंदर ट्री गार्ड, छोटी झोपड़ियां, फ़्लावर स्टैंड, पक्षियों के घोंसले और जानवरों की कलाकृति जैसी कई अनोखी चीजें बना डाली हैं और उसे इलाक़े के पार्कों में लगा दिया है।
बुज़ुर्गों के लिए बन गए रोल मॉडल
‘क्लब-60’ की लोकप्रियता से प्रभावित होकर आज कई और इलाकों में वरिष्ठ नागरिकों के ऐसे ग्रुप लगातर बनते जा रहे हैं। इनसे सीख कर बाकी ग्रुप भी अपने आसपास हरियाली और खुशहाली फैला रहे हैं साथ ही बूंद-बूंद पानी बचाने के लिए लोगों को जागरुक कर रहे हैं। तो 60 की उम्र पार कर चुके इन ‘युवाओं’ के लिए ये कहना ग़लत नहीं होगा कि-
“उम्र का बढ़ना तो रस्म-ए-जहां है साहिब।
काम करते रहें तो बुढ़ापा कहां है साहिब।।”
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