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बदलाव के क़दम

खुशियां बांटती खुशी

हादसे भी बदलाव के रास्ते तैयार करते हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पर उनकी कहानी जिन्होंने एक हादसे में अपने प्रिय को खो दिया। इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि वो ऐसे हादसों से दूसरों की जान बचाने की भरसक कोशिश करेंगी। आज की कहानी एक युवा समाजसेवी की है जिन्होंने बहुत कम उम्र में ही समाज में बदलाव लाने की मशाल थाम ली थी। ये कहानी है लखनऊ की खुशी पाण्डेय की।

खुशी का प्रोजेक्ट उजाला
‘फॉगी नाइट्स होंगी तो साइकिल पर लाइट्स मैं दूंगी’। लखनऊ की रहने वाली 23 साल की खुशी पिछले 3 महीने से प्रोजेक्ट उजाला चला रही हैं। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत उन्होंने इसी साल जनवरी में की थी। वो रोज़ाना शाम सात बजे घर से निकलती हैं। हाथों में एक बैग होता है। वो हाथ में बैनर लिये अक्सर चौक-चाराहों या सड़क पर खड़ी हो जाती हैं। इस बैनर पर लिखा होता है साइकिल पर लाइट लगवा लो। वो साइकिल सवारों को रोकती हैं। उनसे बात करती हैं और उन्हें अपनी साइकिल के पीछे लाइट लगवाने का आग्रह करती हैं। ख़ास बात ये है कि ये लाइट वो फ्री में लगाती हैं। इसके अलावा वो हफ़्ते के कुछ दिन इसी तरह शाम में निकल कर टैंपो और मालवाहक गाड़ियों के आगे पीछे रिफ्लेक्टर लगाती हैं।

नाना जी की मौत के बाद उठाया क़दम
खुशी को लगता है कि सड़क पर साइकिल सवारों की जान सबसे ज़्यादा ख़तरे में रहती है। साइकिल सवारों की सुरक्षा के लिए कोई उपाय नहीं होते। यहां तक कि साइकिल भी इस तरह का वाहन नहीं कि उस पर सवार शख़्स किसी हादसे में सुरक्षित रह पाये। ठंड के समय जब कोहरा छाया रहता है तब दूसरी गाड़ियां तो लाइट की वजह से दिख भी जाती हैं लेकिन साइकिल नज़र नहीं आती। ऐसे में कोई भी गाड़ी आगे चल रही साइकिल को टक्कर मार कर निकल जाती है। 25 दिसंबर 2022 की रात जब लोग क्रिसमस का त्योहार मना रहे थे तब खुशी के घर मातम का माहौल था। खुशी के नाना कैलाश नाथ तिवारी अमीनाबाद में एक कपड़े की दुकान में काम करते थे। उस रात वो रोज़ की तरह साइकिल से घर लौट रहे थे। कोहरा घना था। रास्ते में पीछे से आई किसी गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी। हादसे में उनकी मौत हो गई। इस हादसे के बाद ही खुशी ने फ़ैसला किया कि साइकिल सवारों को हादसों से बचाने के लिए वो प्रोजेक्ट उजाला की शुरुआत करेंगी।

खुशी को मिल रहा है साथ
खुशी जो लाइट्स फ्री में साइकिल सवारों को बांट रही हैं वो उन्हें मुफ़्त में नहीं मिलती। एक लाइट की क़ीमत क़रीब 350 रुपये है। शुरुआत में खुशी ने कुछ पैसे अपनी जेब से लगाये लेकिन अब कई लोग और संस्थाएं उनके साथ जुड़ चुकी हैं। यहां तक कि साइकिल अगरबत्ती और हीरो साइकिल जैसे बड़ी कंपनियां भी खुशी के इस प्रोजेक्ट में हमक़दम हैं। खुशी जो लाइट साइकिलों में लगाती हैं वो दो से तीन महीने तक चलती हैं। फ़िर उसमें लगने वाली सामान्य पेंसिल बैटरी को बदल कर उसे फ़िर से इस्तेमाल किया जा सकता है।

सड़क सुरक्षा का जागरूकता अभियान
खुशी ने पिछले तीन महीनों में 1000 से ज़्यादा साइकिलों में ये लाइट्स लगा दी है। पहले साइकिल सवारों को लगता था कि वो लाइट लगाने के पैसे लेंगी लेकिन जब खुशी ये बताती हैं कि लाइट्स पूरी तरह से फ्री हैं तो वो ना केवल खुशी-खुशी इसे लगवाते हैं बल्कि खुशी को आशीर्वाद भी देते हैं। इस दौरान खुशी उन्हें सड़क पर हादसों से बचने के उपाय और एहतियात भी समझाती हैं। इतना ही नहीं, खुशी पालतू और स्ट्रीट डॉग्स की सुरक्षा के लिए रिफलेक्टर वाले बेल्ट भी बांटती हैं। उनका मानना है कि जान चाहे इंसान की हो या फिर किसी जानवर की, किसी सड़क हादसे की वजह से नहीं जानी चाहिए।

6 साल से समाजसेवा
खुशी ने भले ही प्रोजेक्ट उजाला 3 महीने पहले शुरू किया हो लेकिन वो समाजसेवा का काम पिछले 6 सालों से कर रही हैं। केवल 18 साल की उम्र से ही खुशी ने ट्रैफिक लाइट्स के पास रहने वाले लोगों के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। वो जानती है कि केवल शिक्षा ही इन बच्चों का भविष्य बदल सकती है। रोज़ शाम 4 बजे से 6 बजे तक वो बच्चों को पढ़ाया करती हैं। ठंड के समय में वो अक्सर आपको लखनऊ के किसी ना किसी इलाक़े में कंबल बांटती नज़र आ जाएंगी। भिखारियों को उन्होंने वजन नापने वाली मशीन दी ताकि वो भीख मांगना छोड़ दें। उन्होंने क़ानून की पढ़ाई की है। वो सोशल मीडिया के ज़रिये महिलाओं को जागरूक करती हैं। महिलाओं से जुड़े क़ानूनों की बारिकियों को वो वीडियो के ज़रिये बताती और समझाती हैं। पिछड़े तबके की महिलाओं को वो मासिक धर्म जैसे मुद्दों पर जागरूक करती हैं। इसके अलावा वो पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर भी काम करती हैं। वो कई समाजसेवी संस्थाओं और कॉरपोरेट्स के साथ भी काम कर रही हैं। अपनी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा वो इन्हीं कामों में लगा देती हैं। ख़ास बात ये है कि खुशी के इन कामों में उनका परिवार हमेशा उनके साथ खड़ा रहता है। माता-पिता और भाई-भाभी को वो अपनी शक्ति, अपनी प्रेरणा मानती हैं।

उम्मीद है खुशी की आम लोगों को खुशियां बांटने का सिलसिला यूं ही जारी रहेगा।