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विरासत को विस्तार देकर दुनिया को बनाया मुरीद

महत्वपूर्ण ये नहीं होता कि आप को विरासत में क्या मिला, महत्वपूर्ण ये होता है कि आप उस विरासत को कैसे सहेजते हैं, कैसे आगे बढ़ाते हैं, कैसे उसे उन ऊंचाइयों पर ले जाते हैं जिसे ले जाने का सपना कभी आपको विरासत सौंपने वालों ने देखा होगा। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की कहानी एक ऐसे ही शख़्स की है जिसने अपने पिता से मिली विरासत को ऐसा विस्तार दिया कि आज पूरी दुनिया उनकी मुरीद बन चुकी है।

गन्ना वेस्ट से वंडर बनाने वाले वेद

आप सब ने गन्ने का रस का स्वाद तो ज़रूर चखा होगा। गन्ने के रस को निकाल कर चीनी और गुड़ भी बनाए जाते हैं। लेकिन कभी आपने सोचा है कि गन्ने से रस निकालने के बाद उसकी बची हुई खोई का का क्या इस्तेमाल हो सकता है ? आप हैरान रह जाएंगे ये जान कर कि गन्ने की खोई से डिस्पोज़ेबल कप-प्लेट बनाए जा रहे हैं और हो सकता है आपने उन कप-प्लेट का इस्तेमाल भी किया हो।
गन्ना वेस्ट से वंडर बनाने वाले शख़्स हैं अयोध्या के वेद कृष्ण। स्कूली शिक्षा के बाद लंदन में एडवेंचर स्पोर्ट्स में मैनेजमेंट करने वाले वेद कृष्ण कभी अपने पिता के कारोबार के साथ नहीं जुड़ना चाहते थे लेकिन नियति ने यही तय किया था कि वो ना केवल इस कारोबार के साथ जुड़े बल्कि इसे एक नए आसमान तक ले जाएं।

मजबूत बुनियाद से बुलंद इमारत तक

वेद कृष्ण बिल्कुल अपने पिता की तरह दूरदर्शी हैं। कभी चीनी मिल चलाने वाले केके झुनझुनवाला ने साल 1981 में गन्ने की खोई से काग़ज़ बनाने का काम शुरू कर दिया था। तब जब किसी ने वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में सोचा भी नहीं होगा। उनका काम जारी रहा। 1985 में उन्होंने गन्ने की खोई से रैपर बनाने का प्लांट शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, 1990 में बिजली की कटौती की वजह से फ़ैक्ट्री का कामकाज प्रभावित होने लगा तो उन्होंने फ़ैक्ट्री में ही पावर प्लांट बना लिया। उनका काम भी ठीक-ठाक ही चल रहा था। लेकिन जब वेद लंदन में पढाई कर रहे थे तब उनकी तबीयत ख़राब रहने लगी। वेद लंदन से लौटे और ना चाहते हुए भी 1999 में इस कारोबार से जुड़ गए। क़रीब तीन साल तक उन्होंने इस काम को अच्छे से समझा और काम को आगे बढ़ाया। इसी दौरान राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्लास्टिक को लेकर मुहिम चलने लगी थी। प्लास्टिक से पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर काम तेज़ होने लगा। वेद ने भी इस बारे में सोचना शुरू कर दिया।

चक: गन्ना वेस्ट से शानदार प्लेट

अपनी सोच को आकार देते हुए वेद ने साल 2017 में चक के नाम से नए ब्रांड की शुरुआत की। इस ब्रांड में वेद ने गन्ने की खोई से फूड कैरी और पैकेजिंग मेटेरियल बनाना शुरू कर दिया। ये प्लास्टिक और थर्मोकोल की जगह ना केवल अच्छा बल्कि पर्यावरण के लिए भी मुफ़ीद उत्पाद था। उनके प्रोडक्ट्स ने जल्दी ही बाज़ार में पहचान बना ली। दिक्कत तब आने लगी जब चक के प्रोडक्ट्स की मांग बढ़ने लगी। उस समय तक वेद के पास ना तो बहुत ज़्यादा मैन पावर थी और ना ही वैसी मशीनें जो तेज़ी से काम कर सके। इसके बाद वेद ने ना केवल चीन और ताइवान से मशीनें मंगवाई बल्कि ख़ुद वहां जाकर ट्रेनिंग भी की। आज वो 300 टन से भी ज़्यादा गन्ना वेस्ट से अपने प्रोडक्ट बना रहे हैं। 1500 लोग उनके साथ काम कर रहे हैं। उनके बनाए प्रोडक्ट्स कई बड़ी फूड चेन कंपनियां इस्तेमाल कर रही हैं।

चीनी मिलों से लेते हैं गन्ना वेस्ट

वेद अपने प्रोडक्ट्स बनाने के लिए ज़्यादातर गन्ना वेस्ट चीनी मिलों से लेते हैं। चीनी मिल में उन्हें एक साथ ज़्यादा कच्चा माल मिल जाता है। इसके साथ-साथ वो अपने काम से गन्ना किसानों को भी जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। गन्ना वेस्ट को रिसाइकल करने के लिए उसे अच्छी तरह सुखाया जाता है। फ़िर उसे ग्राइंड कर उसका पाउडर बना दिया जाता है। पानी में उसे गीला कर उसकी लुगदी तैयार की जाती है। इसी लुगदी को मशीन में डाल कर प्लेट, कटोरी जैसे आइटम तैयार किये जाते हैं। ख़ास बात ये है कि चक के सारे प्रोडक्ट्स बिना केमिकल के तैयार किये जाते हैं। ये पूरी तरह इकोफ्रेंडली होते हैं। इसके इस्तेमाल से ना तो लोगों को किसी तरह का नुकसान होता है ना ही पर्यावरण को।

बुलंदियों पर कारोबार

वेद ने जब अपने काम की शुरुआत की थी तो कारोबार क़रीब 25 करोड़ का था। अपनी दूरदर्शिता और मेहनत के दम पर वेद ने इसे क़रीब 200 करोड़ का कर लिया है। वेद के चक प्रोडक्ट्स ना केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई मुल्क़ों में बिक रहे हैं। आज वेद ना केवल एक क़ामयाब उद्यमी के तौर पर जाने जाते हैं बल्कि गुड वेस्ट और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी उनकी काफ़ी चर्चा है।