Home » सुपरस्टार मेघबालिका
बदलाव के क़दम

सुपरस्टार मेघबालिका

आपने सीक्रेट सुपरस्टार फ़िल्म देखी है? फ़िल्म में एक बच्ची सिंगर बनना चाहती है लेकिन उसके पिता को ये पसंद नहीं। वो इस बात से इतने ख़फ़ा हो जाते हैं कि एक बार उस बच्ची ने जो चोरी से गिटार ख़रीदा था उसे तोड़ देते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ हमारी आज की कहानी की किरदार के साथ। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट लेकर आया है त्रिपुरा के उन सुपरस्टार्स की कहानी जो एक मिसाल बन चुके हैं। ये कहानी है त्रिपुरा के पहले महिला बैंड की। ये कहानी है इस बैंड को साकार करने वाली मून साहा की। कोई अपने सपने को पूरा करने के लिए किस कदर तक संघर्ष कर सकता है। कितनी मेहनत और किन-किन चुनौतियों को पार कर सकता है ये कहानी इस बात की भी गवाही देती है।

ये है ऑल गर्ल्स बैंड
मेघबालिका। ये नाम है उस बैंड का जो देश के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा का पहला ऐसा म्यूज़िकल बैंड है जिसमें केवल महिलाएं हैं। ये बैंड केवल बैंड नहीं बल्कि त्रिपुरा में नारी शक्ति का बिगुल है, जिसका घोष समाज की कई पुरानी और जकड़ी सोच को ध्वस्त कर रहा है। मेघबालिका आज एक जाना-पहचाना नाम है। कई कार्यक्रमों में ये बैंड अपनी छाप छोड़ रहा है। कोई प्रतियोगिता हो, या फ़िर कोई फेस्टिवल, ऑल गर्ल्स बैंड मेघबालिका की धूम वहां ज़रूर सुनाई देती है। स्टेट लेवल अवॉर्ड जीत कर अपनी पहचान बनाई है। यहां तक कि ये बैंड बॉलीवुड तक को अपनी धमक सुना चुका है।

संघर्षों से साकार हुआ ‘मेघबालिका’
ये साल 2016 था। मून साहा बैंक में नौकरी कर रही थीं। इसके साथ ही उनकी पढ़ाई भी जारी थी। रुरल डेवलपमेंट में वो मास्टर्स की पढ़ाई कर रही थीं। लेकिन मून का असली प्यार म्यूज़िक था। वो ख़ुद एक अच्छी गिटार वादक थीं। लेकिन वो संगीत में कुछ और करना चाहती थीं। वो चाहती थी एक बैंड बनाना जो केवल और केवल महिलाओं का हो। मून जानती थी कि ये सपना उनके लिए आसान नहीं है। सबसे पहली मुश्किल तो उनके घर में ही है। पिता को उनका म्यूज़िक से इतना ज़्यादा लगाव पसंद नहीं था लेकिन मून को हमेशा उनकी मां का साथ मिला। मां से मिले हौसले से मून ने बैंड को साकार करने का काम शुरू कर दिया। वो उन महिलाओं और युवतियों की तलाश में जुट गईं जो संगीत प्रेमी थीं। जो कोई ना कोई वाद्य यंत्र बजाती हों। मून बताती हैं कि उन्होंने ख़ुद सोशल मीडिया पर ऐसे संगीतकार की तलाश शुरू की। हर किसी से उन्होंने ख़ुद संपर्क किया। उनसे अपने सपने के बारे में बात की। उनसे बैंड में शामिल होने का अनुरोध किया। मून ने कई महिलाओं को अपने साथ जोड़ भी लिया। इसके बाद साल 2017 में मून ने मेघ बालिका यानी क्लाउड गर्ल का गठन कर दिया। इसमें गिटार ख़ुद मून बजाती थीं। गीतकार और कहों वादक अंकिता रॉय, मुख्य गायिका के तौर पर अनन्या सरकार, गायक देबजानी नंदी, बांसुरी वादक मैमोन देबनाथ, कीबोर्ड वादक ज्योतिश्री चक्रवर्ती, पोर्टिया चौधरी और शर्मिष्ठा सरकार, ड्रम और तबला वादक सोनिया डे  मून के इस बैंड में शामिल हो गई।

जब पिता ने गिटार पटका
मून ने भले ही बैंड बना लिया था लेकिन इसकी सामाजिक स्वीकार्यता अभी बाक़ी थी। मून ने बहुत मेहनत से पैसे जमा कर एक गिटार ख़रीदा था। बैंड बनाने के क़रीब तीन महीने बाद वो पहली बार अपने गिटार को घर ले गईं थी। उसे देखते ही मून के पिता भड़क उठे थे। ग़ुस्से में आकर उन्होंने मून के गिटार को दीवार पर पटक दिया था। मून को लगा कि जैसे उसके सारे सपने बिखर गये। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। शुरुआत में मून और उनके साथियों पर सामाजिक दबाव भी बहुत ज़्यादा था। लोग लड़कियों के इस बैंड को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। कई लोग इनके बारे में अनाप-शनाप बोलने लगे। यहां तक कि संगीत से जुड़े कई लोगों ने भी मेघबालिका पर सवाल उठाए।

मेघबालिका को मिला मक़ाम
इन सबके बीच मेघबालिका की टीम दृढनिश्चय के साथ काम करती रही। सोशल मीडिया से उन्हें काफ़ी मदद मिली। धीरे-धीरे उन्हें प्रोग्राम मिलने लगे। पहले त्रिपुरा के अलग-अलग ज़िले, फ़िर असम और सिक्किम। सिक्किम में परफॉर्मेंस से लौटते वक़्त तो इंडिगो की फ्लाइट क्रू ने उनकी टीम से विमान में ही परफॉर्म करने का आग्रह किया और मेघबालिका ने आसमान में भी अपनी कला का जादू बिखेर दिया। ये बैंड पहले प्रसिद्ध बंगाली कलाकारों के लिखे गानों को गाया करता था लेकिन 2021 से इन्होंने अपने लिखे गाने गाने शुरू कर दिये हैं। उम्मीद है अपने दृढ इच्छाशक्ति के दम पर ये मेघबालिका दूर तक सफ़र तय करेगा।