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बंदे में है दम

एक शिक्षिका का ‘मिशन समाज’

कहते हैं अगर समाज में बदलाव का आधार गुरू होता है। गुरू ना केवल बच्चों को शिक्षा देता है बल्कि उनमें समाज और देश प्रेम के जज़्बे का संचार भी करता है। कई शिक्षक सिर्फ़ स्कूलों तक सीमित रह जाते हैं लेकिन कई स्कूलों की सीमाओं को तोड़ समाज में कुछ ऐसा बदलाव ले आते हैं जो एक क्रांति बन जाता है। आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ के मौक़े पर हम ऐसे शिक्षकों को नमन करते हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसी ही शिक्षिका की कहानी लेकर आया है। इनका नाम है श्वेता दीक्षित।

शिक्षा की अलख जगाने वाली

राज्य अध्यापक पुरस्कार और फिक्की फ्लो यूपी महिला सम्मान के अलावा कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ी जा चुकी श्वेता यूपी के प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका हैं। मूल रूप से कानपुर की रहने वाली श्वेता बुलंदशहर के सलेमपुर कायस्थ गांव के स्कूल में तैनात हैं। उन्हें मिले ये सम्मान उनके योगदान की गवाही दे रहे हैं। इस बात का बिगुल फूंक रहे हैं कि श्वेता जैसे शिक्षक ही समाज को नई दिशा दे सकते हैं।

शिक्षा को नवाचार से जोड़ा

क़रीब दस साल से श्वेता बतौर अध्यापिका काम कर रही हैं। लेकिन वो कभी भी सामान्य तरीक़े से पढ़ाने में विश्वास नहीं करतीं। शिक्षण के काम में हमेशा उन्होंने नवाचार को अपनाया और बढ़ावा दिया है। यही वजह है कि उन्होंने दूसरे शिक्षकों से अलग पहचान बनाई है। साल 2019 में स्कूली बच्चों के लिए चलाए गए सुरक्षा अभियान कार्यक्रम में उन्होंने अपनी क्षमता का परिचय दिया। सरकारी और ग़ैर सरकारी स्कूलों के दस हज़ार से अधिक बच्चों को उन्होंने, उनकी सुरक्षा के बारे में जागरूक किया। इस उपलब्धि के लिए उन्हें बुलंदशहर के तत्कालीन ज़िलाधिकारी ने सम्मानित भी किया। बच्चों को जोड़-घटा वो सांप-सीढ़ी के खेल के ज़रिये सिखाती हैं। खेल-खेल में बच्चे हिसाब-क़िताब में भी माहिर हो जाते हैं। ऐसे और भी कई नवाचार हैं जो श्वेता ने इजाद किये हैं।

कोरोना काल में करिश्मा

कोरोना काल में जब ऑनलाइन पढ़ाई का दौर शुरू हुआ तो गांव के बच्चों के लिए ये बहुत मुश्किल हो गया। ना तो हर घर में स्मार्ट फ़ोन थे और ना इंटरनेट की सुविधा। पहले तो श्वेता ने WhatsApp ग्रुप बनाकर 260 बच्चों को इससे जोड़ा और पढ़ाई की सामग्रियां उन तक पहुंचाई लेकिन जब उन्हें लगा कि इससे कई बच्चे ठीक से पढ़ाई नहीं कर पा रहे तो उन्होंने घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। 3500 की आबादी वाले सलेमपुर गांव के हर घर में अब बच्चे फ़िर से पढ़ाई से जुड़ गए। अब उन्हें ना तो इंटरनेट और फ़ोन की ज़रूरत थी ना स्कूल जाने की। क्योंकि स्कूल तो ख़ुद उनके घर आ रहा था।

गांव के युवाओं ने दिया श्वेता का साथ

श्वेता के इस अभियान का जबरदस्त असर हुआ। एक तरफ़ बच्चों की पढ़ाई पटरी पर आ रही थी तो दूसरी तरफ़ श्वेता की मेहनत को देख गांव के पढ़े-लिखे युवा उनके साथ जुड़ने लगे। उन युवाओं ने श्वेता से बात की और बच्चों को पढ़ाने का फ़ैसला किया। अब श्वेता अकेली नहीं थी। उनके साथ युवाओं की जोश और जज़्बे से लबरेज एक फ़ौज थी जो अशिक्षा के अंधियारे को मिटाने निकल पड़ी थी। गांव के 15 युवाओं की एक टीम तैयार हुई। श्वेता ने इन युवाओं को कर्मवीर का नाम दिया। इन्हीं कर्मवीरों के साथ मिलकर श्वेता ने एक और बड़ा फ़ैसला किया।

पूरे गांव को बनाया साक्षर

बच्चों की पढ़ाई के बाद अब श्वेता ने गांव के हर शख़्स को साक्षर बनाने का संकल्प ले लिया। इस संकल्प में उनकी हिम्मत बने उनकी टीम कर्मवीर से युवा साथी। गांव के युवाओं के साथ मिलकर उन्होंने लोगों को शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक किया। उन्हें समझाया कि शिक्षित होने के लिए उम्र की कोई बाधा नहीं होती। धीरे-धीरे गांव के लोग उनसे जुड़ते चले गए। गांव के बच्चे तो पढ़ ही रहे थे, अब उनके अभिभावक भी पढ़ाई करने लगे। श्वेता और उनकी टीम कर्मवीर की मेहनत का नतीजा ये है कि सलेमपुर कायस्थ गांव के अंगूठेछाप भी अब हस्ताक्षर करने लगे हैं।

पति का मिला पूरा साथ

श्वेता को इस काम में उनके पति का भी पूरा साथ मिला। टीम कर्मवीर के लिए उनके पति ने ख़ुद के ख़र्च से टी-शर्ट, कैप और बैज बनवाए। इससे युवाओं में एक नए जोश का संचार हुआ। श्वेता को इस काम के लिए बहुत समय देना पड़ता था, लेकिन उनके परिवार के साथ की वजह से वो इसे भी मैनेज करने में क़ामयाब हुईं। आज श्वेता दीक्षित ना केवल एक इनोवेटिव शिक्षक बल्कि समाज में बदलाव लाने वाली नायिका के तौर पर जानी जा रही हैं। वो आगे भी इसी तरह देशप्रेम के साथ काम करती रहें। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट उन्हें शुभकामनाएं देता है।