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बंदे में है दम

मिथकों को तोड़ती नूर की कहानी

कहानियां नए रास्ते दिखाती हैं। कहानियां मिथकों और रूढ़ियों को तोड़ कर बदलाव का उजियारा फैलाती हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पर एक ऐसी ही कहानी जो है भले ही किसी एक इंसान की, लेकिन वो कहानी सैकड़ों-हज़ारों के लिए जीवन पुंज का काम कर रही है। आज की कहानी है नूर की, उस नूर की जिसकी रोशनी से आधी आबादी का दामन दमक रहा है।

जेपीएससी में टॉप करने वाली पहली मुस्लिम महिला 

नुसरत नूर ने इतिहास रच दिया है। एक ऐसा इतिहास जो सालों तक ना केवल याद किया जाता रहेगा बल्कि लोगों को प्रेरणा भी देता रहेगा। नुसरत नूर ने झारखंड लोक सेवा आयोग के चिकित्सा अधिकारियों की परीक्षा में टॉप किया है। ना सिर्फ़ इतना बल्कि ये भी कि वो ऐसा करने वाली पहली मुस्लिम महिला बन गई हैं। इस उपलब्धि को पाना ना उनके लिए आसान था, ना छोटी बात लेकिन आज उनकी ये उपलब्धि ना केवल उनके लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए गर्व और सम्मान की बात हो चुकी है।

मां की सीख से पाया मक़ाम 

नुसरत का बचपन झारखंड के जमशेदपुर में बीता। उनके पिता मोहम्मद नूर टाटा स्टील्स में काम करते हैं और मां सीरत फातमा गृहणी। परिवार में कभी भी शिक्षा और करियर को लेकर ना कोई रोक-टोक थी ना कोई भेदभाव। नुसरत की पढ़ाई जेएच तारापोर और सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट स्कूल में हुई। ये जमशेदपुर के बेहतरीन स्कूलों में शामिल हैं। बचपन से ही नुसरत पढ़ाई के साथ-साछ खेलकूद में भी आगे रही। एथलेटिक्स, वॉलीबॉल और बॉस्केटबॉल जैसे खेलों में नुरसत ने स्कूल में अपनी पहचान बना ली थी। परिवार का साथ और नुसरत के टैलेंट ने उन्हें एक नई दिशा देनी शुरू कर दी। पिता ने तो बेटी को आगे बढ़ाया ही, मां ने हमेशा नुसरत को आत्मनिर्भर और स्वाबलंबी बनने की सीख दी। उन्होंने सिखाया कि लड़कियों का ख़ुद के पैरों पर खड़ा होना कितना अहम है और अपनी मां की उसी सीख को गांठ बांध कर नुसरत ने कामयाबी के झंडे गाड़ दिये। 

सफलता-असफलता को कभी नहीं बनने दिया रोड़ा नुसरत ने अपने आप को ऐसा ढाला कि कभी ना तो कोई कामयाबी और ना ही कोई नाकामी उनकी राह में रोड़ा बन पाई। ना किसी सफलता से वो बहुत ज़्यादा ख़ुश हो कर अपनी मंज़िल से भटकी और ना ही विफलता से निराश हुई। उन्होंने तय कर लिया था कि अपना करियर मेडिकल लाइन में ही बनाना है। जब लक्ष्य तय था तो नूर ने उसको हासिल करने के लिए कोशिश शुरू कर दी। साल 2011 में उन्होंने दसवीं पास की। 11वीं में उन्होंने बायोलॉजी चुना। साल 2013 में उन्होंने 12वीं का बोर्ड दिया। इसके साथ ही पहली बार मेडिकल एंट्रेस की परीक्षा भी। बोर्ड तो क्लीयर हो गया लेकिन वो मेडिकल की परीक्षा पास नहीं कर सकीं। अच्छी बात ये रही कि बिना परेशान हुए उन्होंने एक साल का गैप ले लिया है फ़िर जमकर तैयारी की और अगले साल मेडिकल एंट्रेंस की परीक्षा पास कर ली। 

कॉलेज में मिला जीवन साथी नुसरत को मेडिकल की पढ़ाई के लिए रिम्स रांची कॉलेज मिला। उन्होंने अपनी मेडिकल की पढ़ाई भी बहुत लगन से पूरी की। वो कॉलेज के टॉप 20 स्टूडेंट्स में शामिल थी। ख़ास बात ये है कि मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ना केवल उन्होंने अपनी प्रोफेशनल लाइफ़ को सही दिशा दी बल्कि अपने लिए एक जीवन साथी भी ढूंढ लिया। नुसरत जब मेडिकल की पढ़ाई के चौथे साल में थीं तो कॉलेज में ही उनकी मुलाक़ात डॉ एन डी उमर से हुई। दोनों एक ही कॉलेज से जनरल सर्जरी में पीजी कर रहे थे। दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। दोनों ने इस बारे में अपने घरवालों को बताया और फ़िर साल 2019 में दोनों की धूमधाम से शादी हो गई।   

जेपीएससी की तैयारी और कामयाबी नुसरत नूर शादी के बाद रांची शिफ्ट हो गईं। संयुक्त परिवार, शादी के बाद अलग तरह की ज़िंदगी के बीच नुसरत ने बैलेंस बनाना शुरू किया। उन्होंने अपने दिल-ओ-दिमाग से कभी करियर को पीछे नहीं होने दिया। इसमें पूरा साथ उनके पति और उनके ससुरालवालों का भी मिला। नुसरत के ससुर मेडिकल ऑफ़िसर के पोस्ट पर रह चुके थे। ऐसे में नुसरत के पति उमर ने उन्हें जेपीएससी की तैयारी करने की सलाह दी। इसी बीच साल 2020 में नुसरत ने प्यारे से बेटे साद को जन्म दिया। अब एक नई चुनौती नुसरत के सामने थी। बच्चे की परवरिश और परिवार की ज़िम्मेदारी के साथ परीक्षा की तैयारी लेकिन वो इन सबके बीच भी पढ़ाई करती गईं और इसका ही नतीजा ये हुआ कि जब जेपीएससी की परीक्षा के नतीजे आए तो नूर उसमें अव्वल आईं। 

शिक्षा से ही बदलाव का संदेश एमबीबीएस के बाद जेपीएससी में टॉप करने वाली नूर एक न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ हैं। न्यूरो से संबंधित बीमारियों का वो इलाज करती हैं। नुरसत मानती हैं कि महिलाओं की स्थिति में तभी बदलाव आ सकता है जब वो शिक्षित होंगी। मुस्लिम महिलाओं के लिए भी वो शिक्षा को बेहद अहम मानती हैं। वो कहती हैं कि बिना कामयाबी और नाकामी की चिंता किये, महिलाओं को पढ़ाई और नौकरी की कोशिश करनी चाहिए। नूर का ना केवल ये संदेश बल्कि उनका पूरा जीवन एक मिसाल बन गया है।