‘हर बच्चा एक कलाकार है। समस्या ये है कि जब वो बड़े होते हैं तो उनके अंदर के कलाकार को कैसे ज़िंदा रखा जाए।‘ महान चित्रकार पाब्लो पिकासो के इसी कथन को अपना मंत्र बना कर कुछ लोग बच्चों को कला से जोड़े रखने, उनके अंदर के रंग को और निखारने में जुटे हुए हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट ऐसे ही लोगों की कहानी लेकर आया है। ये एक संगठन है जो अलग-अलग स्तर पर, अलग-अलग तरीक़े से रंग अभियान का कारवां चला रहा है।
रंग बिखेरता ट्रक
तमिलनाडु के सुदूर गांवों में इन दिनों एक ट्रक घूम रहा है। बाहर से देखने पर ये ट्रक जितना रंगीन लग रहा है, उसके अंदर उससे भी ज़्यादा रंग भरे हैं। ट्रक के अंदर रंग और कला की दुनिया है। ख़ूब सारे रंग, पपेट, बच्चों की फ़िल्में, क़िताबें, बांसुरी और ढपली जैसे वाद्य यंत्र लेकर ये ट्रक गांवों के चक्कर लगा रहा है। ये एक कोशिश है बच्चों को रंग और कला की दुनिया से जोड़ने की। इसके ज़रिये बच्चों को फ़िर से सकारात्मकता से जोड़ कर एक नई कला की दुनिया बनाई जा रही है। इस दुनिया में केवल रंग होंगे, ख़ुशी होगी, उत्साह और उमंग होंगे, कोई डर, कोई भेदभाव नहीं होगा। ‘नालंदावे फाउंडेशन’ ने अपनी इस पहल का नाम ‘आर्ट वंडी’ रखा है। आर्ट वंडी के ज़रिये ग्रामीण इलाक़े के बच्चों को कला, संगीत, नृत्य और थियेटर से जोड़ा जा रहा है।
कला से शिक्षा का जुड़ाव
एक नई शिक्षा पद्धति पर काम कर रहे नालंदावे फाउंडेशन आर्ट वंडी की तरह और भी कई कार्यक्रम चला रहा है। समग्र शिक्षा, अर्थपूर्ण कला और समाज कल्याण एवं मानसिक स्वास्थ्य के तीन स्तंभों को आधार बना कर बच्चों को एक नई दिशा दी जा रही है।
कोशिश इस बात की की जा रही है कि बच्चों को एक ढर्रे पर ना ढाला जाए। उन्हें उन्मुक्त रहने दिया जाए, नदियों सा बहने दिया जाए, परिंदों सा उड़ने दिया जाए। समग्र शिक्षा में 3 से 6 साल के उन बच्चों को शामिल किया जाता है जो पिछड़े तबके से आते हैं। उन बच्चों पारंपरिक शिक्षा पद्धति के बजाय कला से जोड़ कर शिक्षा दी जा रही है। दिल्ली और नोएडा के कई आंगनवाड़ी केंद्रों पर संस्था इस तरह के काम कर रही है।
हर विषय का कहानी कनेक्शऩ
7वीं से 10वीं तक के बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए अनूठा प्रयोग किया गया है। हर विषय को अलग-अलग कहानियों से जोड़ा गया है ताकि बच्चों का उनकी दिलचस्पी बनी रहे। इस कार्यक्रम के ज़रिये स्कूलों में बच्चों का ड्रॉप आउट रोकने में कामयाबी मिली है।
किशोरियों के लिए ख़ास कार्यक्रम
देश में जहां एक बड़े तबके में 13 साल से ऊपर की लड़कियों की पढ़ाई रोक दी जाती है, उन्हें घर में बिठा दिया जाता है वहीं नालंदावे इस उम्र की प्रतिभाशाली बच्चियों की तलाश करता है। ऐसी बच्चियों के हुनर को निखारने के लिए कई तरह के कार्यक्रम चला रहा है। दिल्ली, गुड़गांव, चेन्नई, कोयंबटूर, तिरुवंतपुरम और हैदराबाद में इस तरह के कार्यक्रम चल रहे हैं।
बच्चों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश
संगीत सकारात्मकता और बदलाव का बड़ा ज़रिया है। इसी संगीत को नालंदावे ने अपने कार्यक्रम का आधार बनाया। इस कार्यक्रम का नाम है नालंदावे कोइर। इसमें बच्चों को संगीत और वाद्य यंत्र सिखाये जाते हैं। उनकी अलग-अलग जगह परफ़ॉर्मेंस आयोजित कराये जाते हैं।
कला ही क्यों
आम तौर पर ये माना जाता है कि कला और शिक्षा दोनों अलग-अलग क्षेत्र हैं। लेकिन नालंदावे ने ना केवल ये बताया है बल्कि कर के दिखाया है कि शिक्षा और कला एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। साल 2021 में अमेरिका में हुए एक शोध से पता चला कि पिछड़े तबके के वैसे बच्चों का स्कूल से ड्रॉप आउट रेट कम होता है जो कला, संगीत और अभिनय से जुड़े होते हैं। कला और संगीत से जुड़ कर बच्चों का अंतर्मन खिलता है। उन पर ना तो पढ़ाई का दबाव रहता है ना घर-परिवार का। कला के माध्यम से वो अपने अंदर की भावनाओं को प्रकट करते हैं। अभिनय, संगीत और चित्रों के माध्यम से वो अपने मन की बातें बांट सकते हैं। इसके ज़रिये वो नई चीज़ों की खोज करते हैं, नए विचारों को उकेरते हैं। कुल मिलाकर कला के ज़रिये बच्चों का सर्वांगीन विकास हो रहा है। उम्मीद है नालंदावे का ये कला का कारवां देश के सभी राज्यों में अपने रंग बिखेरेगा।
Add Comment