अभी उसने अपने सपनों को बुनना शुरू ही किया था, अभी उसने अपने सपनों को सच कर दिखाने के लिए क़दम ही उठाए थे कि एक अनहोनी ने उसका सबकुछ छीन लिया। केवल सपने ही नहीं उसकी ज़िंदगी भी बिखर गई। नहीं बिखरा तो उसका हौसला। कभी कमज़ोर भी हुआ तो उसने ख़ुद को समेटा और फ़िर नई शुरुआत कर दिखा दिया कि मुश्किल वक़्त को कैसे अपने दम पर बदला जा सकता है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसी ही लड़की की कहानी लेकर आया है।
नेहा का टी स्टॉल
कुछ समय पहले तक अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट के पास एक चाय का ठेला लगाने वाली नेहा भट्ट एक शानदार और जानदार शख़्सियत हैं। लोग ना केवल उनकी चाय के बल्कि उनके बुलंद हौसले के भी मुरीद हैं। नेहा को देखकर लोग उन्हें सलाम करते हैं, उनकी हिम्मत को दाद देते हैं। दरअसल नेहा दिव्यांग हैं। एक हादसे में घायल होने के बाद उनका एक पैर काटना पड़ा था। नेहा ने इस मुश्किल घड़ी के बाद भी अपनी हिम्मत नहीं खोई। ठीक होने के बाद उन्होंने साबरमती रिवर फ्रंट पर चाय की दुकान लगाई। शानदार चाय और उससे भी शानदार उनकी शख़्सियत ने जल्द ही पूरे शहर में अपनी पहचान बना ली। लोग दूर-दूर से उनकी चाय की दुकान पर पहुंचने लगे। लोग ना केवल उनकी बनाई चाय पीते बल्कि उनके साथ सेल्फ़ी भी खिंचवाते, उनसे बात करते, उनकी कहानी सुनते और उनके हौसले और जज़्बे को सलाम करते हैं।
संघर्षों से मजबूत हुई नेहा
नेहा गुजरात के महुवा की रहने वाली हैं। पिता मज़दूरी करते थे। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। पिता या तो नेहा को पढ़ा पाते या फ़िर उनके भाई को। स्कूल में नौकरी का सपना देखने वाली नेहा को परिवार की माली हालत की वजह से 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। भाई की पढ़ाई के लिए नेहा ने अपनी आगे की पढ़ाई छोड़ दी। उन्होंने छोटी-मोटी नौकरी करनी शुरू कर दी। 7-8 सौ रुपये महीने की नौकरी से हुई शुरुआत ने उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाना शुरू कर दिया। नेहा को तब ये कहां पता था कि ये संघर्ष उन्हें आगे के लिए तपा रहा है। पाई-पाई जोड़ कर नेहा ने सरकारी कॉलेज से मॉन्टेसरी का कोर्स किया। इसके बाद उन्हें इंग्लिश मीडियम के स्कूल में 3000 की नौकरी मिली। इसके बाद उन्होंने आगे क़दम बढ़ाना शुरू किया। भावनगर, क्षिरपुर और गांधीनगर में उन्होंने नौकरी की। जिस नेहा ने 700 रुपये से नौकरी शुरू की थी अब उनकी तनख़्वाह 33 हज़ार तक पहुंच चुकी थी। एक समय आया जब वो एक अच्छी ज़िंदगी बसर करने की तरफ़ आगे बढ़ रही थीं। उन्होंने 5 लाख रुपये में एक मकान भी ख़रीदने की तैयार कर ली थी।
हादसे ने बदल दी थी ज़िंदगी
ये समय लॉकडाउन का था। घर बुक हो चुका था और लॉकडाउन के बाद घर बनना था। नेहा लोन के लिए बैंक की भागादौड़ी कर रही थीं। जल्द ही उनके सपनों का घर बनने वाला था लेकिन ज़िंदगी ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था। वो ज़िस बस पर सवार होकर बैंक जा रही थीं वो हादसे का शिकार हो गईं। बस का वो हिस्सा जिस तरफ़ वो बैठी थी, बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। इस हादसे में नेहा बुरी तरह से घायल हो गईं। चेहरा और एक पैर की हालत ज़्यादा गंभीर थी। इलाज के दौरान डॉक्टरों को नेहा का एक पैर काटना पड़ गया। उनके चेहरे पर भी कई टांके पड़े।
जज़्बे से शुरू की नई ज़िंदगी
हादसे ने नेहा को बुरी तरह से तोड़ दिया। अच्छे करियर और घर का सपना साकार कर रही नेहा की ज़िंदगी अब अधर में थी। पैर कट चुका था। इससे उनका हौसला भी डगमगा गया। उन्हें लगने लगा कि अब सब ख़त्म हो चुका है। उन्हें आगे के सारे रास्ते बंद नज़र आ रहे थे। एक बार तो उन्होंने ख़ुदकुशी तक का फ़ैसला कर लिया था। लेकिन फ़िर उन्होंने ख़ुद को ना केवल समझाया बल्कि नये संघर्ष के लिए तैयार किया। इस दौरान कई लोगों ने उनकी मदद भी की। कई लोगों ने आर्थिक तौर पर उनका साथ दिया। क़रीब 15 लाख रुपये उन्हें लोगों की तरफ़ से मिले। 10 लाख रुपये में उन्होंने प्रोस्टेथ लगवाया। इसके बाद वो चलने-फिरने में सक्षम हो गईं। उन्हें लगा कि अब वो फ़िर से अपनी किस्मत लिखने के लिए तैयार हैं। इस बीच कई लोगों ने उन पर डोनेशन को लेकर आरोप लगाये। इससे नेहा थोड़ी मायूस ज़रूर हुई लेकिन घबराई नहीं। उन्होंने ना केवल लोगों की मदद लेनी बंद कर दी बल्कि इनकम टैक्स भर कर लोगों के आरोपों का करारा जवाब भी दे दिया।
रिवर फ्रंट पर चाय की दुकान
नेहा को एक ऐसा काम करना था जिसे वो आसानी से कर सकें। उन्हें लगा कि चाय की दुकान उनके लिए ना केवल आसान काम होगी बल्कि आय का भी अच्छा ज़रिया बनेगी। उन्होंने साबरमती रिवर फ्रंट पर चाय की दुकान शुरू कर दी। नाम दिया अम्पू टी। बहुत जल्द ही ये रिवर फ्रंट पर आने वाले लोगों की पसंदीदा दुकान बन गई। यहां आने वाले लोग नेहा की दुकान पर ज़रूर पहुंचने लगे। वो सोशल मीडिया के ज़रिये वायरल हो गईं। इससे उनकी दुकान चल पड़ी। लोग आने लगे तो उनकी आमदनी भी बढ़ गई। उनकी एक नई पहचान बन गई।
एक बार फ़िर नई शुरुआत के लिए तैयार
हालांकि रिवर फ्रंट पर जिस जगह नेहा ने अपना स्टॉल लगाया था, उसके लिए म्यूनिसिपल कारपोरेशन ने मंज़ूरी नहीं दी। कई लोगों ने नेहा के टी स्टॉल की कामयाबी से जल कर उनकी शिकायत भी करनी शुरू कर दी। आख़िरकार कारपोरेशन ने उनके टी स्टॉल को हटा दिया। मजबूत इरादों वाली नेहा इससे भी हारी नहीं हैं। वो एक नये सिरे से अपने चाय के स्टॉल को शुरू करने की योजना बना रही हैं। इसके साथ ही वो अपने जैसे उन लोगों की भी मदद करने की तैयारी कर रही हैं जो किसी हादसे का शिकार हो कर अपना कोई अंग गवां चुके हैं।
नेहा का हौसला, नेहा का जज़्बा एक मिसाल बन चुका है, एक संदेश बन चुका है कि परिस्थिति चाहे कितनी भी ख़राब क्यों ना हो, अगर इरादे मजबूत हों तो हर मुश्किल को हराया जा सकता है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट नेहा भट्ट को उनके शानदार भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता है।
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