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बंदे में है दम

नेहा की सुर साधना

वो देख नहीं सकती, लेकिन उसके मधुर सुर हर किसी को अपना दिवाना बना रहे हैं। बचपन से ही दृष्टिबाधित नेहा आज पूरे उत्तराखंड में गायिकी से अपनी पहचान बना चुकी हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी नेहा के इसी संघर्ष और सुरों के ताने-बाने की।

पहाड़ के महोत्सव की पहचान

अल्मोड़ा का नंदा देवी मेला हो, कुमाऊं का प्रसिद्ध महोत्सव या फ़िर अल्मोड़ा महोत्सव। एक आवाज़ अब इन भव्य आयोजनों की शान बन चुकी है। उसी आवाज़ में जब भजन गूंजते हैं तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध रह जाते हैं।

अल्मोड़ा के मनीआगर की रहने वाली नेहा आगरी भले ही बचपन से देख पाने में असमर्थ हैं लेकिन भगवान ने आंखों को रोशनी नहीं दी लेकिन आवाज़ ऐसी दी जिसने नेहा के लिए दूसरे रास्ते खोल दिये।

ग़रीब परिवार में उम्मीदों की ज्योति

नेहा के पिता बसंत आगरी मज़दूरी कर अपने परिवार का गुजारा करते हैं। मां दीपा भी घर के काम के साथ-साथ खेतों और गांव में मज़दूरी करती हैं। बसंत और दीपा के 4 बच्चे हैं। नेहा के साथ-साथ उनके एक भाई सौरभ दिव्यांग हैं। नेहा देख नहीं सकती तो सौरभ बोल और सुन नहीं सकते। ग़रीबी में ज़िंदगी गुजार रहे दीपा और बसंत के लिए बच्चों की ये स्थिति किसी सदमे से कम नहीं थी लेकिन जीवन जीने का हौसला इतना बड़ा है कि ये सदमा उनके लिए छोटा पड़ गया। दोनों जी-तोड़ मेहनत कर ना केवल अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि उन्हें कला के क्षेत्र से भी जोड़ रहे हैं।

जब नेहा घर में गुनगुनाया करती थी तो उनकी मां दीपा ने उन्हें बढ़ावा दिया। उन्हें गाने के लिए प्रोत्साहित किया। नेहा को स्कूल का भी पूरा साथ मिला। क्लास में जब वो गाया करती तो उनकी ख़ूब हौसला-आफ़जाई होती। स्कूल में शिक्षिका मंजू पाण्डेय ने नेहा का साथ दिया, उन्हें आगे बढ़ाया।

स्कूल के मंच से महोत्सवों तक का सफ़र

स्कूल में जब उनकी गायिकी को सम्मान मिला तो नेहा का हौसला बढ़ने लगा। वहीं घर में मां दीपा ने नेहा को लोक गीतों के साथ जोड़ दिया। कुमाउंनी और गढ़वाली भजन पर नेहा की अच्छी पकड़ हो गई। इतनी कम उम्र में लोक गायिकी पर अच्छी पकड़ ने धीरे-धीरे नेहा की आवाज़ को मशहूर कर दिया। इसी बीच उन्होंने स्कूली मंच से क़दम आगे बढ़ाते हुए पहली बार अल्मोड़ा के नंदा देवी मेले में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। बस फ़िर क्या था। नंदा देवी मेले के बाद उनके गीत और भजन अल्मोड़ा और कुमाऊं महोत्सव में भी गूजंने लगे।

कोरोना का मुश्किल काल

कोरोना का समय आगरी परिवार के लिए मुश्किलों भरा रहा। मज़दूरी बंद होने से रोटी का संकट भी आन खड़ा हुआ था लेकिन इस परिवार ने ना केवल उस मुश्किल हालात पर विजय पाई बल्कि संगीत के सहारे उसमें सकारात्मकता का भी संचार किया। कोरोना के दौरान नेहा ने घर पर कई और गीत और भजन सीखे। जागर विद्धा भी सीखी। इसमें उनकी मां और भाई सचिन ने उनका ख़ूब साथ दिया। नेहा गाती हैं और सचिन ख़ुद के बनाए हुड़के को बजाकर उन्हें संगत देते हैं।

उत्तराखंड की स्टार बनीं नेहा

अब नेहा को प्रदेश का कोना-कोना पहचानने लगा है। अलग-अलग सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों में नेहा को बुलाया जाता है। उनके कुमाउंनी भजन अब म्यूज़िक एलबम में भी जगह पा चुके हैं। टैलेंट हंट प्रोग्राम में वो अपने नाम का डंका बजा चुकी हैं।

नेहा ने कभी भी अपनी शारीरिक कमी को अपने दिल-ओ-दिमाग पर हावी नहीं होने दिया। नतीजा आज सबके सामने हैं। नेहा और उसके परिवार का ये संघर्ष ग़रीबी और तंगहाली के साथ-साथ दिव्यांगता के शिकार सैकड़ों लोगों के लिए उम्मीद की किरण हैं।