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बंदे में है दम

रेत से बनाया नया रास्ता

कहते हैं रेत को कोई बांध नहीं सकता। उसे जितना पकड़ने की कोशिश करेंगे वो उतनी ही फिसलती जाएगी। लेकिन एक जादूगर ऐसा है जो ना केवल रेत को बांध रहा है बल्कि उससे ऐसी-ऐसी आकृतियां बनाता है जिसे देखने वाले दंग रह जाते हैं। यूं तो पूरी दुनिया उसकी ये जादूगरी देख चुकी है लेकिन ओडिशा के पुरी में बंगाल की खाड़ी की लहरें रोज़ाना उसकी इस कलाकारी की साक्षी बनती हैं। आज पूरी दुनिया उसकी कलाकारी की मुरीद है। आज वो शोहरत की बुलंदियों पर है लेकिन वो भी इसी रेत से उठा है, इसी रेत से बना है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी रेत के इसी जादूगर की जिसका नाम है सुदर्शन पटनायक।

संघर्ष से बने सुदर्शन

पावन नगरी पुरी के समुद्र तट पर हर रोज़ एक बेहद सुंदर कलाकृति बनाई जाती है। रेत से बनी इन आकृतियों में कभी राजा राम नज़र आते हैं तो कभी जगन्नाथ पुरी। कभी किसी मशहूर शख़्सियत का चेहरा होता है तो कभी किसी ख़ास मिशन का संदेश। देश-विदेश के मुद्दों पर उनकी कलाकृतियां लोगों का ध्यान खींचती हैं।

सुदर्शन का जीवन अभावों में बीता। छोटी उम्र के ही थे जब पिता घर छोड़ कर चले गए। घर में सुदर्शन की दादी, उनकी मां और उनके दो छोटे भाई थे। दादी ने अपनी पेंशन से घर चलाना शुरू किया लेकिन गुजारा चलना बहुत मुश्किल हो गया। हालात इतने बिगड़ गए कि सुदर्शन को 8 साल की उम्र में नौकरी छोड़नी पड़ी। उन्होंने एक बंगाली परिवार में नौकर का काम किया। कला सुदर्शन के अंदर बसी हुई थी। वो बचपन से ही कुछ ना कुछ कलाकारी करते रहते थे, लेकिन अभाव की वजह से रंग, ब्रश और कैनवास का मिलना मुश्किल था। उनका बचपन समुद्र के किनारों और रेत से भी जुड़ा था। वो समुद्र के किनारे रेत पर ही कुछ आकृतियां उकेरा करते थे। धीरे-धीरे उनका मन इसी में रम गया। उन्होंने समुद्र के किनारें को कैनवस और रेत को ब्रश और पेंट की तरह इस्तेमाल किया और फ़िर ऐसी आकृतियां उभर कर सामने आने लगीं कि देखने वाले बस देखते ही रह गए।

रेत की कलाकृतियों के जनक

सुदर्शन पटनायक को भारत में सैंड आर्ट का जनक माना जाता है। चौंकाने वाली बात ये है कि ख़ुद उन्होंने किसी से सैंड आर्ट बनाना नहीं सीखा। आज देश के कई हिस्सों में कलाकार सैंड आर्ट से जुड़े हैं। वो भी सुदर्शन की राह पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। ख़ुद सुदर्शन भी कई युवाओं को रेत से कलाकारी सिखा रहे हैं ताकि इस कला का विस्तार हो सके।

कला से जागरूकता संदेश

सुदर्शन जानते हैं कि कला समाज में जागरूकता फैलाने का बड़ा ज़रिया है। इसी वजह से वो अपनी कलाकृतियों के ज़रिये जागरूकता संदेश देते रहते हैं। फ़िर चाहे वो स्वच्छ भारत अभियान हो, पर्यावरण संरक्षण हो, जल संरक्षण हो या फ़िर कोरोना से बचने के संदेश। पर्व-त्योहार हों या किसी बड़ी हस्ती का जन्मदिन, पुण्यतिथि, सुदर्शन की कलाकृतियों में उनकी छाप ज़रूरत दिखती है।

रेत से मिली पहचान

सुदर्शन की कलाकृतियों को जब पहचान मिलने लगी तो लोग उनकी कला को देखने दूर-दूर से पुरी पहुंचने लगे। तब सोशल मीडिया नहीं था। अख़बारों और फ़िर टीवी पर सुदर्शन की कला की चर्चा होने लगी। साल 1995 में उन्हें अमेरिका में अपनी कला के प्रदर्शन का मौक़ा मिला था। हालांकि वो इसमें हिस्सा नहीं ले पाए थे। लेकिन बाद में उन्होंने दुनिया के कई देशों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।

कई रिकॉर्ड्स किये अपने नाम

सुदर्शन ने अपनी कलाकृतियों के ज़रिए अपना नाम गिनिज़ बुक और लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज करवाया है। साल 2017 में उन्होंने पुरी बीच पर रेत का सबसे बड़ा महल बनाया जिसे गिनिज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया। हालांकि 2019 में ये रिकॉर्ड टूट गया। सुदर्शन ने एक से बढ़ कर एक विशाल कलाकृतियां बनाकर 10 के ज़्यादा बार अपना नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में दर्ज कराया है। देश-विदेश की कई सैंड आर्ट प्रतियोगिताओं में सुदर्शन ने अपने जलवे बिखेरे हैं।

कला से मिला मान और सम्मान

सुदर्शन को राष्ट्रीय युवा पुरस्कार, राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार, पीपुल्स च्वाइस अवॉर्ड, और ओडिशा सरकार से गोदावरी सम्मान मिल चुके हैं। साल 2014 में सुदर्शन को देश का तीसरे सबसे प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। सुदर्शन आज भी हर रोज़ पुरी के बीच पर कोई ना कोई कलाकृति ज़रूर बनाते हैं। वो ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने कला के एक नए क्षेत्र की खोज की, उसे आगे बढ़ाया। बेहद ग़रीबी और संघर्ष के जीवन को पार कर आज सुदर्शन अपनी कला और अपने जज़्बे के दम पर बड़ा मुक़ाम हासिल कर चुके हैं। उनका ये जीवन संघर्ष हम सब के लिए प्रेरणादायक है।