आज पूरा देश उसकी वजह से गर्व महसूस कर रहा है। भारतीय बॉक्सिंग के क्षेत्र में उसने देश का मान बढ़ाया है। वो ना केवल ख़ुद वर्ल्ड चैंपियन बनी है बल्कि सैकड़ों-हज़ारों उन बच्चियों को सपने देखने का हौसला दिया है जिनके लिये सपने देखना आसान नहीं है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज की कहानी है नीतू घनघन की जिन्होंने विश्व मुक्केबाजी की प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है।
भिवानी की बेटी का दमदार मुक्का
दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम की रिंग में ऐसे ज़ोरदार पंच पड़े कि मंगोलिया की मुक्केबाज को चारो खाने चित कर दिया। इन्हीं पंच की बदौलत भारत को मिला महिला मुक्केबाजी में विश्व चैंपियन का तमगा। ये तमगा जीतने वाली थी नीतू घनघस और दूसरी तरफ़ थी मंगोलिया की मुक्केबाज लुटसेखन अलतेंगसेंग। नीतू ने अपनी शानदार बॉक्सिंग का प्रदर्शन करते हुए 48 किलोग्राम वर्ग की प्रतियोगिता में लुटसेखन को 5-0 से हराकर स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा जमाया। भिवानी के धनाना गांव की रहने वाली इस बेटी की जीत ने देश का मान तो बढ़ाया ही, हरियाणा को भी गौरवान्वित किया है। नीतू वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड लाने वाली हरियाणा की पहली महिला बन गई हैं। नीतू का नाम देश के बॉक्सिंग के साथ-साथ हरियाणा के इतिहास में भी सुनहरे अक्षरों से दर्ज हो चुका है।
गांव से गोल्ड तक का मुश्किल सफ़र
नीतू का वर्ल्ड चैंपियन बनने का ये सफ़र आसान नहीं था। साल 2000 में जन्मी नीतू एक निम्न मध्यमवर्ग के परिवार से आती हैं। पिता हरियाणा विधानसभा में बिल मैसेंजर का काम करते हैं। कम आय की वजह से परिवार को कई तरह के आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा लेकिन इसी बीच नीतू ने बॉक्सर बनने का सपना देखा। पिता जयभगवान ने अपनी बेटी के सपने को पूरा करने की ठानी। ये वो वक़्त था जब उस इलाक़े से बहुत कम लड़कियां बॉक्सिंग के रिंग में उतर रही थीं। नीतू और जयभगवान के इस फ़ैसले का उन्हें लंबे समय तक ख़ामियाजा भी भुगतना पड़ा। गांववालों के ताने सुनने पड़े। दूसरी तरफ़ नीतू की मां मुकेश देवी को भी एक डर सताता रहता था। उन्हें अपनी बेटी की चिंता रहती थी। उन्हें लगता था कि मुक्केबाजी में अगर बेटी का चेहरा बिगड़ गया तो शादी-ब्याह में मुश्किल आ सकती है। लेकिन ना तो लोगों के ताने और ना ही मां की चिंता नीतू की बॉक्सिंग की राह में रोड़ा बन सकी।
पिता ने की नीतू के लिए तपस्या
नीतू आज वर्ल्ड चैंपियन बन चुकी है। इससे पहले भी उसने कई अवॉर्ड अपनी झोली में डाले हैं। उनकी इस कामयाबी के पीछे उनकी मेहनत तो है ही, साथ-साथ उनके पिता जयभगवान की तपस्या भी है। जयभगवान ने अपनी बेटी के सपने को अपना सपना बना लिया था। घर-परिवार से लेकर गांव समाज के विरोध और तानों के बावजूद उन्होंने ठान लिया था कि वो अपनी लाडली को बॉक्सर बना के ही रहेंगे। उन्होंने बेटी को भिवानी में बॉक्सिंग की कोचिंग दिलानी शुरू कर दी। गांव से भिवानी की दूरी क़रीब 20 किलोमीटर थी। समस्या ये आ गई कि नीतू रोज़ ट्रेनिंग के लिए भिवानी कैसे जाएगी। पिता जयभगवान ने इसके लिए एक बड़ा फ़ैसला किया। उन्होंने अपनी नौकरी दांव पर लगा दी। उन्होंने बिना तनख़्वाह लिये 4 साल की छुट्टी ले ली। अब वो रोज़ अपनी बेटी को बस से लेकर गांव से भिवानी जाने लगे। वहां कोच जगदीश के पास नीतू बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेती थी और इस दौरान जयभगवान बाहर बैठे रहते और फिर ट्रेनिंग ख़त्म होने पर उसे लेकर गांव लौटते। छुट्टी लेने की वजह से उनका वेतन बंद हो चुका था। उनके सामने बेटी की ट्रेनिंग और घर चलाने के लिए पैसों की सख़्त ज़रूरत थी। जयभगवान ने इसके लिए अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से कर्ज़ ले लिया।
जब बॉक्सिंग छोड़ना चाह रही थीं नीतू
नीतू ने साल 2012 में बॉक्सिंग का करियर शुरू किया था लेकिन शुरुआत के साल काफ़ी संघर्षों वाले रहे। वो दो साल तक किसी प्रतियोगिता में जीत नहीं हासिल कर पाईं। इसके बाद वो काफ़ी निराश हो गईं। एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने रिंग छोड़ने का फ़ैसला कर लिया लेकिन पिता जयभगवान ने हिम्मत नहीं हारी थी। उन्होंने नीतू का भी हौसला बढ़ाया और उन्हें लगातार मेहनत करने की सलाह दी।
जब शुरू हुई पदकों की बारिश
पिता की सलाह पर नीतू ने एक बार फिर जी-जान लगाकर प्रैक्टिस शुरू की। साल 2017 में नीतू का इंतज़ार ख़त्म हुआ। उन्होंने गुवाहाटी में आयोजित वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल का पंच जड़ा। इसके बाद साल 2018 में उनकी झोली में एशियन यूथ चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक गिरा। 2018 में ही वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप का गोल्ड मैडल भी उन्होंने जीत लिया। साल 2022 में उन्होंने बुल्गारिया में आयोजित स्ट्रैंडजा कप में स्वर्ण पदक जीता। इसी साल बर्मिंघम में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उनका पंच गोल्डन था।
मैरीकॉम पर जीत से मिली थी चर्चा
2018 तक नीतू लगातार शानदार प्रदर्शनों से अपना लोहा मनवाती रहीं लेकिन साल 2018 में उनके लिए एक और मुश्किल तैयार खड़ी थी। जहां इस साल उन्होंने दो बड़े मुक़ाबलों में गोल्ड मैडल जीता तो वहीं उनका एक कंधा चोटिल होने से उनके करियर पर ख़तरा मंडराने लगा। साल 2018 से 2021 तक उनका लंबा इलाज चला। दो साल के इलाज के बाद वो एक बार फिर रिंग में उतरी। अपनी मेहनत और जज़्बे से उन्होंने एक बार फिर लय पकड़ ली। इलाज के बाद उन्होंने बुल्गारिया में स्ट्रैंडजा कप में गोल्ड मैडल जीता। जब कॉमनवेल्थ गेम्स में जाने की बात हुई तो ट्रायल के मुक़ाबले में नीतू की भिडंत मैरीकॉम से हो गई। इस मुक़ाबले में नीतू के पंच ने मैरीकॉम को भी बहुत परेशान किया था। इसी मुक़ाबले में मैरीकॉम घायल हो गईं थी और उन्हें मुक़ाबले से हटना पड़ा था। इसी मुक़ाबले के बाद नीतू का नाम सुर्खियों में छा गया था।
परिवार से है मजबूत रिश्ता
दिल्ली में हुए मुक़ाबले में नीतू का हौसला बढ़ाने के लिए उनके पिता जयभगवान भी मौजूद थे। नीतू को पता है कि उनकी कामयाबी के पीछे उसके परिवार का कितना बड़ा योगदान है, शायद इसलिए इस जीत से मिले पैसों से वो सबसे पहले परिवार के कर्ज़ चुकाने की बात कर रही हैं। इसके साथ ही वो डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही अपनी छोटी बहन और 10 मीटर एयर पिस्टल खेल की ट्रेनिंग ले रहे छोटे भाई को आगे बढ़ाने में मदद करेंगी।
नीतू को उनके भविष्य के लिए इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की तरफ़ से शुभकामनाएं।
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