एक कलाकार अपनी कला साधना में पूरी उम्र की आहुति दे देता है। एक कला को जीवित रखने, उसे बढ़ाने के लिए वो ताउम्र संघर्ष करता है तब जाकर उसकी तपस्या पूरी होती है। कुछ ऐसे ही कला साधक हैं कपिल देव प्रसाद। कपिल देव प्रसाद उस कला के वाहक हैं जो हमारी गौरवशाली विरासत की गवाही देती है, वो कला जो समय के दो कालखंडों के बीच सेतु का काम करती है। उस कला का नाम है बावन बूटी। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पर बावन बूटी और कपिलदेव प्रसाद की कहानी।
कला साधक को सम्मान
नालंदा के बसवनबिगहा गांव आज बिहार ही नहीं देश भर में चर्चा का केंद्र है। गांव में खुशी का माहौल है। इसी गांव में रहने वाले बुनकर कपिल देव प्रसाद को देश के प्रतिष्ठित पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। उन्हें प्रसिद्ध बावन बूटी की कारीगरी के लिए ये सम्मान मिलेगा। कपिल देव पिछले 60 साल से बावन बूटी और सूत कताई की कारीगरी कर रहे हैं। इस कला साधना में उन्होंने अपनी तमाम उम्र होम कर दी।
विरासत में मिली कारीगरी
कपिल देव प्रसाद को ये कारीगरी विरासत में मिली है। बताया जाता है कि बुनकर समाज से जुड़े कपिल देव के दादा शनिचर तांती ने बावन बूटी की कारीगरी शुरू की थी। उनके साथ-साथ कपिल देव के पिता हरि तांती भी इसमें पारंगत हो गये। 15 साल की छोटी उम्र से कपिल देव भी अपने दादा और पिता के साथ बावन बूटी की कारीगरी करने लगे। बहुत जल्द ही उन्होंने इसमें महारथ हासिल कर ली। साड़ियों पर बावन बूटी की कलाकारी पर उनके हाथ कुछ इस तरह सध गये कि दूसरे कलाकारों की तुलना में उनका काम ज़्यादा लोकप्रिय होने लगा। क़रीब 60 सालों से लगातार वो बावन बूटी की कारीगरी कर रहे हैं। अब इस काम में उनका बेटा उनका हाथ बंटा रहा है।
बौद्ध कालीन कला है बावन बूटी
बावन बूटी की कारीगरी बिहार के नालंदा की पहचान है। ये कपड़ों पर की जाने वाली ऐसी कारीगरी है जिसका संबंध बौद्ध काल से है। बावन बूटी साड़ियां दुनिया भर में मशहूर हैं। इसमें कपड़े पर हाथ से 52 बूटियां उकेरी जाती हैं। आम तौर पर सादे रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। मोटी किनारियों और रंगीन धारीदार पल्लू इस साड़ी की पहचान है। पिट लूम से होने वाली बुनाई में बानों का इस्तेमाल रुपांकनों की बुनाई के लिए भी किया जाता है। बुनाई की ये शैली कॉटन ऑन कॉटन ब्रोकेड कहा जाता है। इसमें एक ही तरह की आकृतियां बनाई जाती है। बौद्ध काल का इस पर इतना प्रभाव है कि ये आकृतियां बौद्ध धर्म से ही जुड़ी होती हैं। बोधि-वृक्ष, पीपल के पत्ते, धम्म चक्र, बैल-हाथी, कमल का फूल आदि प्रमुख रूप से बनाए जाते हैं।
बिहार में साड़ी का बहुत महत्व
बिहार में ख़ास तौर पर मगध क्षेत्र में अगर शादी हो तो बावन बूटी साड़ी दुल्हन को ज़रूर दी जाती है। नालंदा के कई गांवों में बुनकर इस साड़ी को बनाते हैं। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति भवन के पर्दों पर बावन बूटी कलाकारी करवाई थी। नालंदा की इस प्राचीन कारीगरी को जीआई टैग दिलाने की भी कोशिश की जा रही है। अब जबकि इस कला के कलाकार को देश के शीर्ष सम्मान में से एक मिल रहा है, निश्चित तौर पर ये इस प्राचीन कला को और आगे बढ़ाने में सार्थक योगदान देगा।
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