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बदलाव के क़दम

कन्या गुरुकुल परंपरा को पद्म सम्मान

वो आज के समय में गुरुकुल परंपरा की वाहक हैं। आर्य समाज की परंपरा और पद्धति का संवर्धन करने वाली हैं। शिक्षा को संस्कृति और संस्कार से जोड़ कर आगे बढ़ाने वाली हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पर कहानी पद्मश्री डॉक्टर सुकामा आचार्य की।

राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

डॉ सुकामा आचार्य को राष्ट्रपति द्रौपती मुर्मू ने पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा है। डॉ सुकामा को समाज में शिक्षा की अलख जगाने और महिला सशक्तिकरण के लिए ये सम्मान मिला है। डॉ सुकामा रोहतक के विश्ववारा कन्या गुरुकुल की प्राचार्य हैं। इस गुरुकुल में आर्य समाज की परंपरा को आगे बढ़ाया जा रहा है। आज का समय कॉन्वेंट और इंटरनेशनल स्कूल का है। स्मार्ट क्लास रूम और हाईटेक स्कूलों का है। लेकिन इसी दौर में प्राचीन परंपरा पर आधारित ये गुरुकुल शिक्षा और संस्कृति का तालमेल बना कर आगे बढ़ रहा है। इसमें डॉ सुकामा का बड़ा योगदान है। वो इस गुरुकुल की संस्थापक और संचालक हैं। डॉ सुकामा ख़ुद कहती हैं कि वो चाहती हैं कि हमारा देश ना केवल शिक्षित हो बल्कि संस्कारवान भी हो। उनके मुताबिक़ आज के समय में बच्चों में संस्कार और नैतिक मूल्यों की बहुत आवश्यकता है और इसके लिए वैदिक शिक्षा पद्धति ही एकमात्र रास्ता है।

उच्च शिक्षा प्राप्त हैं डॉ सुकामा

मृदुभाषी डॉ सुकामा आचार्य ख़ुद भी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। 1 अक्टूबर 1961 को झज्जर के आकपुर गांव में जन्मी डॉ सुकामा की पढ़ाई-लिखाई में बचपन से ही रुचि थी। केवल 9 साल की उम्र में वो गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से जुड़ गई थीं।  शिक्षा के बाद उन्होंने साल 1978 में श्रीमद दयानंद अर्थ विद्यापीठ झज्जर से शास्त्री की पढ़ाई पूरी की। साल 1980 में वो व्याकरणाचार्य हो गईं। साल 1982 में उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार से संस्कृत में स्नातकोत्तर किया। साल 1984 में श्रीमद दयानंद अर्थ विद्यापीठ झज्जर से वेदाचार्य की उपाधि ली। साल 1987 में फिर गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से वैदिक इंद्र देवता महर्षि दयानंद के वेद भाष्य पर पीएचडी किया। साल 1999 में कुसुमलता आर्य प्रतिष्ठान का प्रकाशन किया। इसी बीच उन्होंने यूपी के अमरोहा में अपनी बहन आचार्य डॉक्टर सुमेधा के साथ श्रीमद दयानंद कन्या गुरुकुल महाविद्यालय चोटीपुरा की स्थापना की। वो यहां साल 2017 तक रही। 2018 में रोहतक के रुड़की में विश्ववारा कन्या गुरुकुल की शुरुआत की और फिर तब से अब तक डॉ सुकामा इसी गुरुकुल का संचालन कर रही हैं।

सादगी भरे और संस्कारी जीवन की शिक्षा

ये गुरुकुल कन्याओं का गुरुकुल है। यहां क्लास 6 से स्नातक तक की पढ़ाई होती है। यहां सभी विषयों की पढ़ाई होती है लेकिन संस्कृत विषय पर ख़ास ध्यान दिया जाता है। क़िताबी शिक्षा के साथ-साथ बच्चियों को योग, ध्यान और पाक कला भी सिखाई जाती है। इसके अलावा बच्चियों को यज्ञ और आत्मरक्षा के गुर भी सिखाये जाते हैं। इस गुरुकुल में देश के दस राज्यों के साथ-साथ नेपाल की भी कई बच्चियां पढ़ रही हैं। इस गुरुकुल में 2000 पुस्तकों की एक विशाल लाइब्रेरी भी है।

योगदान को मिला सम्मान

अपनी गुरु डॉक्टर सुकामा आचार्य को पद्मश्री मिलने पर गुरुकुल में रहने वाली बच्चियां भी काफ़ी ख़ुश हैं। इससे पहले डॉ. सुकामा को 2009 में आर्ष विद्या भास्कर, 2014 में राष्ट्रीय वेद विद्या परिष्कार, 2018 में संस्कृत सेवा सम्मान और 2018 में नारी शक्ति सम्मान समेत कई सम्मान मिल चुके हैं। उम्मीद है कि डॉ सुकामा और उनके गुरुकुल की छात्राएं भारत को ना केवल एक शिक्षित बल्कि संस्कारवान देश भी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देंगीं।