Home » हर मुस्कान में ज़िंदा है नेहा
बंदे में है दम बदलाव के क़दम

हर मुस्कान में ज़िंदा है नेहा

अपनी 20 साल की बेटी को एक हादसे में खो देने वाले पिता ने अपनी बेटी के सपनों को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। बेटी के सपनों को साकार करने निकला ये पिता आज हज़ारों बच्चियों की ज़िंदगी में नई रोशनी दे चुका है। हज़ारों लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाकर इस पिता ने अपनी बेटी को उनकी खुशियों में ज़िंदा रखा है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक बेमिसाल इंसान की कहानी लेकर आया है। ये कहानी है हिमाचल प्रदेश में घुमारवीं के रहने वाले पवन बरुर की।

बेमिसाल शख़्सियत पवन
‘हादसे आपसे आपके बेहद क़रीबी को छीन लेते हैं जिसका दर्द ताउम्र सालता रहता है। लेकिन हर हादसे के बाद आपके पास दो रास्ते होते हैं। या तो उस हादसे की वजह से टूट जाओ, बिखर जाओ या उस हादसे से मिले दर्द को औरों के दर्द की दवा बना दो।‘
ये है पवन बरुर का जीवन मंत्र। इसी मंत्र के दम पर उन्होंने अपनी ज़िंदगी को ना केवल उस मुश्किल घड़ी से बाहर निकाला बल्कि उसे एक सार्थक स्वरूप भी दिया। घुमारवीं में स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले पवन आज सैकड़ों नहीं हज़ारों लोगों का आसरा बन चुके हैं। कोई बिना मां-बाप के बच्चे हों, या आर्थिक तंगी की वजह से पढ़ाई ना कर पा रहे छात्र-छात्रा, ग़रीबी में जी रहा कोई परिवार हो या फिर बेटी की शादी के लिए खर्च जुटाना हो, पवन बरुर अपनी संस्था के ज़रिये ऐसे लोगों का सहारा बन चुके हैं। लेकिन पवन शुरुआत से ही समाज सेवा के काम से नहीं जुड़े थे। ये जुड़ाव उनकी ज़िंदगी में आए एक हादसे के बाद हुआ।

सड़क हादसे में खो दी 20 साल की बेटी
14 मार्च 2015। बरुर परिवार के लिए ये तारीख़ किसी काली तारीख़ से कम नहीं है। सुबह-सुबह ही पवन बरुर को एक फोन आता है। ये कॉल हरियाणा के करनाल से आई थी। दूसरी तरफ़ एक पुलिसवाला था। उसने पूछा कि क्या आप नेहा के पापा बोल रहे हैं। पवन ने कहा हां। पुलिसवाले ने कहा कि आपकी बेटी एक सड़क हादसे में घायल हो गई है, आप जल्द से जल्द करनाल आ जाइये। इस फ़ोन कॉल ने पवन को झकझोर दिया। उन्होंने पुलिसवाले से पूछा कि उनकी बेटी की हालत कैसी है? तो पुलिसवाले ने झिझकते हुए बताया कि उनकी बेटी की मौक़े पर ही मौत हो चुकी है। हादसे में नेहा के साथ-साथ उसकी दोस्त सोनाली, संजना और कार के ड्राइवर की भी मौत हो गई थी। नेहा चंडीगढ़ के एमसीएम डीएवी वुमन कॉलेज बी एससी की अंतिम वर्ष की छात्रा थी। वो अपनी दोस्त संजना, सोनाली और रूबी के साथ हॉस्टल में रहती थी। सोनाली हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली थी। 13 मार्च की देर रात को सोनाली के घर से फ़ोन आया। सोनाली की नींद नहीं खुली तो फ़ोन नेहा ने उठाया। पता चला कि सोनाली के पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई है। ख़बर मिलते ही सोनाली सोनीपत जाने के लिए निकल पड़ी। नेहा ने इस बुरे वक़्त में सोनाली का साथ नहीं छोड़ा। ना केवल नेहा बल्कि संजना और रूबी भी सोनाली के साथ सोनीपत के लिए निकल पड़े। वो जब तक करनाल पहुंचे तब तक संजना के परिवार ने उन्हें लाने के लिए एक कार भेज दी। कार में संजना का भाई और एक ड्राइवर थे। अब चारों उस कार में सवार होकर सोनीपत के लिए निकल पड़े लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। कार में बैठने के कुछ ही देर बाद वो एक हादसे का शिकार हो गईं। कार एक अर्धनिर्मित फ्लाईओवर पर एक डंपर से टकरा गई। इस टक्कर में कार के ड्राइवर, नेहा, सोनाली और संजना की मौक़े पर ही मौत हो गई।
पवन अपने कुछ रिश्तेदारों को साथ लेकर करनाल पहुंचे। अपनी प्यारी बेटी के शव को लेकर पवन घर लौट आए। दाह संस्कार के बाद अस्थियां हरिद्वार में प्रवाहित की।

डायरी में लिखे मिले बेटी के सपने
घर आने पर पवन अपनी बेटी के सामानों को देख रहे थे। उन्हीं में पवन को नेहा की एक डायरी मिली। इस डायरी में नेहा ने अपने कुछ सपने लिखे थे। भगवान श्रीकृष्ण पर गहरी आस्था रखने वाली नेहा ने अपने चार सपनों में से एक सपना वृद्धाश्रम खोलने का देखा था। इसे पढ़ने के बाद पवन और बेचैन हो उठे। उन्हें लगा कि वो हर हाल में अपनी बेटी के सपने को पूरा करेंगे। कुछ ही दिनों बाद वो इसमें जुट गये। उन्होंने अपनी बेटी नेहा के नाम पर नीडफुल एजुकेशनल हेल्प एसोसिएशन यानी नेहा का गठन किया। इस संस्था के ज़रिये उन्होंने ज़रुरतमंदों की मदद करनी शुरू कर दी।

नेहा मानव सोसायटी का गठन
अब पवन को अपनी बेटी नेहा के सपनों को साकार करने का रास्ता साफ़ नज़र आने लगा था। उन्होंने मई 2016 में नेहा मानव सेवा सोसायटी नाम की संस्था का रजिस्ट्रेशन करा लिया। इस संस्था से घुमावरीं और आसपास के क़रीब 800 लोग बतौर सदस्य जुड़ चुके हैं। ये सदस्य अपनी क्षमता के हिसाब से हर महीने 100, 200, 500 और हज़ार रुपये का योगदान करते हैं। संस्था के 3 संरक्षक सदस्य हर महीने 1500 रुपये जमा करते हैं। इससे जमा धनराशि को ज़रूरतमंदों की मदद में इस्तेमाल किया जाता है। पारदर्शिता के लिए रकम केवल बैंक खातों में भेजी जाती है।

24 योजना का संचालन
साल 2016 से नेहा मानव सेवा सोसायटी के ज़रिये पवन बरूर ज़रूरतमंदों तक मदद पहुंचा रहे हैं। नेहा बाल संरक्षण योजना इस सोसायटी की पहली योजना थी जिसमें ग़रीब बच्चों को उनकी पढ़ाई पूरी करने के लिए आर्थिक मदद मुहैया कराई जाती है। इसके अलावा नेहा मेधावी छात्रवृति योजना, नेहा स्कूल किट योजना, नेहा लघु पुस्तकालय और नेहा स्कूल सेफ्टी एंड अवैयरनेस प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं।
बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ ये संस्था स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काम कर रही है। नेहा रक्तदान अभियान, नेहा दिव्यांग सेवा, नेहा रोगी सेवा, नेहा अन्नपूर्णा सेवा, नेहा नशा मुक्ति अभियान, नेहा योग जागरूकता अभियान और नेहा खेल अभियान इसमें शामिल है। बेसहारा, ग़रीब और लाचार लोगों के लिए ये संस्था नेहा तत्काल सहयोग योजना, नेहा कन्या शादी सहयोग योजना, नेहा वृद्धजन सहयोग योजना, नेहा विधवा पेंशन योजना और नेहा वस्त्रादि योजना चला रही है। इसके साथ-साथ ये संस्था पर्यावरण, गौ संरक्षण और स्वाबलंबन से जुड़े कई प्रोग्राम का भी संचालन कर रही है।


इस संस्था ने अपने कार्यों से सैकड़ों ज़रुरतमंद परिवारों को मदद पहुंचाई है। कई ग़रीब बच्चों को शिक्षा हासिल करने में मदद की है और ये सब कुछ संभव हो पाया है पवन बरूर की सोच के कारण। पवन बरूर ने ना सिर्फ़ अपनी दिवंगत बेटी के सपनों को पूरा कर दिखाया बल्कि समाज के लिए एक नई प्रेरणा भी बन गये।