जिस तरह सेना के जवान देश की सीमाओं की रक्षा के लिए रात-दिन डटे रहते हैं ठीक वैसे ही पुलिसकर्मी देश की सीमाओं के अंदर रह कर क़ानून-व्यवस्था का सुचारू रूप से पालन कराने के लिए अपना योगदान देते हैं। कोई आपराधिक वारदात हो, पर्व-त्योहार हो या कोई राजनैतिक-सामाजिक कार्यक्रम, पुलिसकर्मी अपना घर-परिवार भूल कर उसमें जुटे रहते हैं बावजूद इसके हमारे समाज में पुलिसवालों को लेकर वो नज़रिया नहीं है जो वाकई होना चाहिए। दरअसल इसके पीछे कई तरह की वजहें हैं। सबसे बड़ी वजह है भरोसा। जनता का पुलिस पर वो भरोसा वो जुड़ाव नहीं है जो होना चाहिए। आज हम जिस शख़्स की कहानी लेकर आएं हैं वो जनता और पुलिस के बीच इसी भरोसे की डोरी को मजबूत करने में जुटा हुआ है। खाकी की ज़िम्मेदारी के साथ-साथ समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को भी बख़ूबी निभा रहा है। इस शख़्सियत का नाम है सतीश पटेल।
प्रयोगधर्मी पुलिसकर्मी सतीश
सतीश पटेल एक प्रयोगधर्मी पुलिसकर्मी हैं। फिलहाल इंदौर के पंढरीनाथ थाने के टीआई सतीश इस बात में यकीन करते हैं कि समाज में बदलाव लाकर क़ानून-व्यवस्था को सही किया जा सकता है। अपनी इसी सोच के साथ सतीश पिछले 15 सालों से पुलिस सेवा में जुटे हैं। मूल रूप से खरगोन के रहने वाले सतीश साल 2007 में मध्य प्रदेश पुलिस में सब इंस्पैक्टर के पद पर भर्ती हुए थे। हालांकि पुलिस के प्रति लोगों का रवैया और भरोसे की कमी उनके लिए शुरुआत में परेशानी का सबब बनती रही। कई बार उन्हें लगा कि वो ग़लत पेशे में आ गये हैं। लेकिन फ़िर उन्हें अहसास हुआ कि ज़रूरत पेशा बदलने की नहीं बल्कि ख़ुद के काम का तरीका बदल कर लोगों की सोच बदलने की है। सतीश की नौकरी की शुरुआत छिंदवाड़ा के आदिवासी बहुल इलाक़े से हुई। उन्होंने देखा कि ग़रीब आदिवासी अपनी समस्याएं लेकर थाने आते थे और हाथ में दस-बीस-पचास के नोट पकड़े। उन्हें लगता था कि पुलिस बिना पैसे लिये उनकी फ़रियाद नहीं सुनेगी। ये स्थिति सतीश को बहुत चुभती थी। इसी दौरान उन्होंने एक आदिवासी महिला को देखा जो अक्सर थाने आती थी। एक दिन सतीश ने महिला को रोक कर उससे बात की। वो महिला ठीक से अपनी समस्या तक बताने की स्थिति में नहीं थी। काफ़ी पूछताछ के बाद पता चला कि इलाक़े के एक साहुकार ने उस महिला और उसके पति को चंद हज़ार रुपये के एवज़ में बंधक बनाया हुआ है। सतीश ने ना केवल उस महिला और उसके पति को साहुकार के चंगुल से आज़ाद कराया बल्कि साहुकार के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी की। इससे उनका मन बदला। उन्हें लगा कि वो इस पेशे में रह कर मजबूरों और पीड़ितों की मदद कर सकते हैं।
पुलिस हमारी मित्र– टीआई हमारा भाई
सतीश के लिए नई शुरुआत हुई साल 2016 में जब वो पहली बार थाना इंचार्ज बने। ये जगह थी सिवनी का छपारा थाना। ये इलाक़ा बेहद संवेदनशील था लेकिन सतीश ने अपनी मुस्तैदी से क़ानून-व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त की हुई थी। सतीश बताते हैं कि इसी बीच राखी का त्योहार आने वाला था। उन्होंने परिवार समेत अपनी बहन के घर जाने की तैयारी की थी लेकिन ऐन वक़्त पर छुट्टी नहीं मिली। इससे सतीश थोड़े मायूस थे। इसी बीच उन्होंने देखा कि कई महिलाएं और युवतियां राखी की थाली सजाये कहीं जा रही हैं। यहीं से सतीश के मन में ख़्याल आया कि पुलिस भी महिलाओं के लिए भाई का ही फर्ज अदा करती है तो क्यों ना इन महिलाओं से राखी बंधवाई जाए। उन्होंने एक स्लोगन तैयार किया- ‘पुलिस हमारी मित्र – टीआई हमारा भाई’ और इसे सोशल मीडिया पर सर्कुलेट कर दिया। इसके साथ ही ये संदेश भी कि जो महिलाएं टीआई को राखी बांधना चाहती हैं वो सहर्ष थाने आ सकती हैं। इस संदेश का जबरदस्त असर हुआ। पहले तो आसपास की महिलाएं पहुंचने लगीं, फ़िर मोहल्ले की। राखी से लेकर जन्माष्टमी तक तो पूरे शहर से महिलाएं और कॉलेज की छात्राओं ने सतीश पटेल को राखी बांध दी। उनका ये संदेश एक अभियान में बदल गया। दूर-दराज़ के गांवों से भी महिलाएं थाने आने लगीं। जब गांव की महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी तो सतीश ने तय किया कि वो ख़ुद गांवों में जाएंगे। इससे कई बदलाव भी देखने को मिले।
अभियान का जबरदस्त असर
इस अभियान का जबरदस्त असर दिखाई देने लगा। एक तरफ़ गांव वालों का पुलिस से सीधा संपर्क स्थापित होने लगा तो दूसरी तरफ़ गांवों में पुलिस की आमद-रफ़्त बढ़ी तो अवैध शराब, जुआ-सट्टा जैसे अपराधों में कमी आने लगी। छेड़छाड़ और महिला उत्पीड़न के मामलों में भी कमी आई। जिन घरों में पहले महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता था वहां भी बदलाव आ गया। लोगों को लगने लगा कि महिलाओं की सीधी पहुंच टीआई तक है ऐसे में वो इसकी शिकायत सीधे कर सकती हैं। इस अभियान से दबी-कुचली महिलाओं को बल मिला। धीरे-धीरे कई गांव के लोग सतीश पटेल को अपने यहां बुलाने लगे। इसी बीच गांवों में नशामुक्ति अभियान चलाया गया जिसका नारा भी इसी से जुड़ा था। ‘भाई-बहन का यही नारा- नशामुक्त हो गांव हमारा’।
नज़र आया सकारात्मक बदलाव
टीआई हमारा भाई का इतना सकारात्मक असर दिखाई दे रहा था कि आम लोगों का पुलिस पर भरोसा बढ़ने लगा। लोगों को लगा कि पुलिस भी ग़रीबों और आम जनता के साथ है। सतीश बताते हैं कि एक बार ससुराल में प्रताड़ना की शिकार युवती देर रात उनके आवास पर आ गई। उन्होंने पहले तो युवती को थाने भेजा। फ़िर महिला सिपाही के साथ क़रीब चालीस किलोमीटर दूर उसे उसके मायके तक छुड़वाया। इससे बहुत बड़ा संदेश गया। ससुरालवालों के रवैये में एक दम से बदलाव आ गया तो आसपास के लोगों के बीच भी पुलिस के प्रति भावना बदल गई। भरोसा इतना बढ़ा कि कुछ दिनों बाद जब उस युवती का पति उसे लेने गया तो युवती के घरवालों ने साफ़ कहा कि जब तक टीआई साहब से मंज़ूरी लेकर नहीं आओगे, लड़की नहीं भेजेंगे।
सतीश पटेल सिवनी के बाद जहां भी तैनात रहे, उन्होंने इस अभियान को जारी रखा। जबलपुर में वो एक गांव में राखी बंधवाने गये थे। वहां से लौटते समय पास के गांव में रेप के एक आरोपी की धर-पकड़ की जानी थी। सतीश पटेल उस आरोपी के घर गये। वो फ़रार था। घर में उसकी पत्नी और उसकी मां थी। कोई कुछ बताने के लिए तैयार नहीं था। सतीश उनको सही कार्रवाई का भरोसा दिला रहे थे। बातचीत के दौरान वो अपनी कलाई पर बंधी ढेर सारी राखियां खोल भी रहे थे। आरोपी की पत्नी ये सब देख रही थी। अचानक उसने एक राखी उठाकर सतीश की कलाई पर बांध दी और कहा हमें आप पर पूरा भरोसा है। ये सिर्फ़ कहने वाली बात नहीं थी। 3 दिन बाद वो महिला ख़ुद आरोपी को लेकर थाने आ गई। इस तरह के एक-दो नहीं पचासों मामले हैं जो सतीश पटेल के राखी अभियान के सकारात्मक असर की कहानी बयां करते हैं। जनता से पुलिस के जुड़ाव का असर ये हुआ कि लोग पुलिस को कई अहम सूचनाएं देने लगे। इससे क्राइम कंट्रोल में भी काफ़ी मदद मिली। केवल एक साल में अपराध के आंकड़ों में गिरावट आई, ख़ास तौर पर महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों का ग्राफ बहुत गिर गया।
सतीश के नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड
‘पुलिस हमारी मित्र-टीआई हमारा भाई’ अभियान ने सतीश के नाम सबसे ज़्यादा राखी बंधवाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना दिया। वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में सतीश का नाम दर्ज है। इस अभियान की तारीफ़ यूएन पीस कीपिंग बोर्ड ने भी की है। साल 2018 में यूपी पुलिस ने भी इस अभियान को अपना कर गांव-मोहल्लों की महिलाओ से राखी बंधवाई थी। ख़ास बात ये है कि तबादले के बाद भी सतीश के नाम पर पुराने थानों में राखियां डाक से आती रहती हैं। वहां तैनात पुलिसवाले सतीश को फोन कर इसकी जानकारी दिया करते हैं। पुलिस हमारी मित्र- टीआई हमारा भाई। ये नारा आज मध्य प्रदेश में एक मुहिम बन चुका है।
नशे को कहें ना–ना
सतीश पटेल ने इसी तरह का एक असरदार अभियान नशे के ख़िलाफ़ भी चलाया। बात साल 2021 की है। तब वो इंदौर के हीरा नगर में तैनात थे। उन्होंने महसूस किया कि निचली बस्तियों में नशे की समस्या बढ़ती जा रही है। इससे चोरी-झपटमारी जैसी वारदातें भी बढ़ रही हैं। उन्होंने इसका सामाजिक आंकलन किया। समस्या के जड़ पर जाने की कोशिश की। वो इन बस्तियों में जाने लगे। लोगों से बात करने लगे। बच्चों से बात करने लगे। उन्हें नशे के ख़िलाफ़ जागरूक किया। इसी दौरान उन्होंने ‘नशे को कहें ना-ना’ का नारा दिया। वो ग़रीब बस्तियों में जाकर वहां के बच्चों और लोगों के साथ दिवाली मनाया करते थे ताकि उनका भी पुलिस से जुड़ाव हो सके। वो ख़ुद को समाज से अलग ना समझे। इसका भी सकारात्मक असर दिखाई दिया। आज सतीश पटेल का नारा नशे को कहें ना-ना प्रदेशव्यापी मुहिम का हिस्सा बन चुका है।
मानवीय संवेदना को ज़िंदा रखने की कोशिश
महात्मा गांधी के आदर्शों को मानने वाले सतीश पटेल हमेशा मानवीय संवेदना से जुड़े रहना चाहते हैं। कोई अपराध पीड़ित हो या फ़िर दूसरा ज़रूरतमंद। सतीश उनकी मदद के लिए हमेशा आगे रहते हैं। कुछ समय पहले की बात है। एक बच्ची के पिता की कोरोना की वजह से मौत हो गई थी। दादा लकवाग्रस्त थे। परिवार अभाव और तकलीफ़ में था। सतीश पटेल को पता चला कि बच्ची का जन्मदिन आ रहा है। उन्होंने थाने में ही जन्मदिन के आयोजन का फ़ैसला किया। बच्ची और उसके परिवार को बुलाया गया। केक काटा गया। बच्ची को तोहफ़े दिये गए। इसका समाज में बहुत अच्छा संदेश गया। हाल ही में एक डॉक्टर का फ़ोन चोरी हो गया था। वो इसकी शिकायत लेकर थाने पहुंचे। टीआई सतीश पटेल से उनकी मुलाकात हुई। सतीश के बर्ताव से वो बहुत ख़ुश हुए। उन्होंने ये बात अपने एक परिचित को बताई। बात प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र तक पहुंची और उन्होंने सीधे सतीश पटेल को फ़ोन लगा दिया। उन्होंने कहा कि ‘आप पर हमें गर्व है और सभी पुलिसवालों को लोगों के साथ ऐसे ही पेश आना चाहिए।‘ सतीश को मुख्यमंत्री और गृहमंत्री सम्मानित भी कर चुके हैं।
सेव टाइगर–सेव जंगल
सतीश पटेल पर्यावरण और जंगल बचाने के अभियान से भी जुड़े हैं। गर्मी के दिनों में थाने के बाहर पशु-पक्षियों के लिए चारा और दाना-पानी की व्यवस्था तो आम बात है, चर्चा तब हुई जब उनका थाना देश का पहला ऐसा थाना बन गया जो बाघों के संरक्षण का संदेश दे रहा था। सतीश बताते हैं कि ये भी अनायास ही हुआ। तब वो मंडला कमें तैनात थे। उनका थाना कान्हा किसली टाइगर रिज़र्व के बिल्कुल पास था। सिवनी ज़िले की कुछ महिलाएं राखी बांधने उनके थाने आईं थी। इसकी तस्वीर उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर डाल दी। इसमें थाने की दीवारें जर्जर दिखाई दे रही थीं तो एक दोस्त ने लिख दिया कि दीवार तो दुरुस्त करवा लो। सतीश पटेल को ये बात लग गई। उन्होंने सोचा कि दीवार की मरम्मत के साथ कुछ अलग भी किया जाए। थाने के आस-पास के रिज़ॉर्ट वालों से उन्होंने बात की। फ़िर ये आइडिया आया कि दीवारों की मरम्मत के साथ-साथ उस पर सेव टाइगर-सेव जंगल की पेंटिग बनवा दी जाए। जब पेंटिंग तैयार हुई तो कान्हा-किसली रिज़र्व फॉरेस्ट के अधिकारी ने बताया कि ये देश का पहला थाना बन गया है जो सेव टाइगर का संदेश देता है। सतीश पौधारोपण को बढ़ावा देने के लिए राखी बांधने वाली हर महिला को तोहफ़े के रूप में एक पौधा देते हैं।
सतीश पटेल ने दिखा दिया है कि अगर इंसान चाहे तो केवल अपने दम पर बदलाव ला सकता है। उन्होंने ना केवल खाकी की गरिमा बढ़ाई है बल्कि मध्य प्रदेश पुलिस का नाम भी रोशन किया है। ऐसे पुलिसवाले को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट सलाम करता है।
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