हादसे हमारी ज़िंदगी में तूफ़ान की तरह होते हैं। सबकुछ उलट-पुलट कर देते हैं। तबाही और बर्बादी का मंज़र होता है। ऐसा लगता है कि जैसे सबकुछ ख़त्म हो गया। मुंबई के रहने वाले दादाराव बिलहौर की ज़िंदगी में भी ऐसा ही हादसा आया। उस हादसे ने दादाराव को तोड़ कर रख दिया लेकिन दादाराव हारे नहीं। वो सबकुछ समेट कर लग गये एक मिशन में। ठान लिया कि जो उनके साथ गुज़रा, वो किसी और के साथ ना गुज़रे। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पर कहानी दादाराव बिलहौर की जिन्हें लोग दादाराव पॉटहोल के नाम से भी जानते हैं।
सड़क के गड्ढों से जंग
लगभग हर रविवार दादाराव हाथों में करनी, दूसरे औजार और सीमेंट-रेत लेकर सड़कों पर निकल जाते हैं। जहां सड़क पर गड्ढे दिखे, दादाराव उसमें सीमेंट और रेत का मिश्रण भर देते हैं। अपने औजारों से उसे समतल कर देते हैं। पहले दादाराव ये काम अकेले किया करते थे, अब उनकी इस मुहिम में उनका साथ देने के लिए और भी कई लोग जुड़ चुके हैं।
7 साल पहले दर्दनाक हादसा
दादाराव बिलहौर मुंबई में मरोल के विजयनगर में सब्ज़ी की दुकान चलाते हैं। 28 जुलाई 2015 के दिन, तब भी वो दुकान पर ही थे जब उन्हें अपने बेटे के हादसे की ख़बर मिली थी। 16 साल का उनका बेटा प्रकाश दसवीं पास करने के बाद भांडुप के एक कॉलेज में एडमिशन के लिए फॉर्म जमा करने गया था। बड़े भाई राम भी प्रकाश के ही साथ थे। जुलाई का महीना था। बारिश हो रही थी। बाइक राम चला रहे थे। जब वो जोगेश्वरी-विखरोली लिंक रोड पर पहुंचे तो आगे पूरी सड़क पानी में डूबी थी। वो किसी तरह आगे बढ़ रहे थे। इसी सड़क पर एक जानलेवा गड्ढा उनका इंतज़ार कर रहा था। उनकी बाइक इस गड्ढे में चली गई। झटका इतना ज़ोर का था कि दोनों भाई बाइक से उछल कर नीचे गिर गये। दोनों को चोटें आईं। लोगों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया। किसी ने फ़ोन कर हादसे की ख़बर दादाराव को दी। पहले तो दादाराव को लगा कि हल्की-फुल्की चोट आई होगी लेकिन कुछ ही देर बाद एक और फ़ोन आया जिसमें प्रकाश को गंभीर चोट आने की बात बताई गई। इस फ़ोन के बाद दादाराव का दिल बैठने लग गया। जब तक दादाराव संभल पाते तब तक एक और फ़ोन ने प्रकाश की मौत की पुष्टि कर दी। उनका छोटा बेटा सड़क के गड्ढों का शिकार बन गया जो BMC और दूसरी एजेंसियों की लापरवाही का नतीजा था।
सदमे को जीत लिया संकल्प
बेटे की मौत ने दादाराव और उनके परिवार को तोड़ दिया। हंसता-खेलता परिवार मातम में डूब गया लेकिन दादाराव तो अलग ही मिट्टी के बने हैं। इस सदमे को उन्होंने एक संकल्प में बदल दिया। उन्होंने तय किया कि सड़क के जिन गड्ढों की वजह से उनके बेटे की जान गई, वो अब किसी और की जान नहीं लेंगे। प्रकाश की मौत के एक महीने बाद ही वो सीमेंट, रेत, पत्थर और ईंट के टुकड़े लेकर सड़कों पर निकलने लगे। जहां भी गड्ढे नज़र आते, उन्हें भरने लगे। शुरुआत में लोगों को लगा कि बेटे की मौत के सदमे में दादाराव पागल हो गये। कुछ उन्हें नसीहत देते तो कुछ ने दूरी बनानी ठीक समझी लेकिन दादाराव नहीं रूके। वो लगातार सड़कों और गलियों में घूम-घूम कर गड्ढों को भरते रहे। पिछले सात सालों में दादाराव ने क़रीब 1000 से भी ज़्यादा गड्ढे भर कर सैकड़ों लोगों को सड़क हादसे से बचाया है।
क़ानूनी संघर्ष भी जारी है
दादाराव अपने बेटे की मौत की ज़िम्मेदारी तय कराने के लिए क़ानूनी लड़ाई भी लड़ रहे हैं। एक समय ऐसा भी आया जब BMC ने सड़क के गड्ढे भरने के उनके काम को अवैध करार दे दिया। तब दादाराव इन गड्ढों को दुरुस्त कराने के लिए संबंधित अधिकारियों को शिकायत करने लगे। एक शिकायत पर कार्रवाई होने में कम से कम बीस दिन लगते थे। इधर दादाराव को आम लोगों का साथ मिलने लगा तो उन्होंने फ़िर से गड्ढे भरने का काम शुरू कर दिया। लोगों ने प्यार से दादाराव बिलहौर का नाम पॉटहोल दादा रख दिया। दादाराव ने अपने बेटे की याद और लोगों को पॉटहोल के ख़िलाफ़ एकजुट करने के लिए प्रकाश फाउंडेशन की भी शुरू की है। ये फाउंडेशन ना केवल सड़क के गड्ढों के ख़िलाफ़ अभियान चला रहा है बल्कि समय-समय पर दूसरे सामाजिक मुद्दों पर भी काम कर रहा है।
दुनिया ने दी दादाराव को दाद
दादाराव का काम ऐसा है कि वो सीधे आम लोगों से जुड़ जाता है। टैक्स देकर भी अच्छी सड़क नहीं पाने वाला इंसान दादाराव को अपना नेता, अपना मददगार समझता है। दादाराव के काम की तारीफ़ लगभग हर अख़बार और टीवी चैनल पर हो चुकी है। कई बड़ी हस्तियों ने भी दादाराव की दाद दी है। उम्मीद है दादाराव के काम को देखकर BMC और उन जैसी एजेंसियों की नींद टूटेगी और वो सड़क के गड्ढों को समय-समय पर ख़ुद ही भरेंगे ताकि दादाराव की तरह दूसरे पिता को अपना बेटा खोना ना पड़े।
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