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धरती से

स्टॉर्क को संकट से बचाने वाली स्टॉर्क सिस्टर

चिपको आंदोलन तो आप सभी को याद होगा। उस आंदोलन ने महिलाओं की सहनशक्ति और इच्छाशक्ति को साबित करने का कार्य किया था। अपने घर परिवार के लिए किसी से भी लोहा लेने वाली महिलाएं अपने पर्यावरण के लिए भी किसी भी हद तक जा सकती हैं ये उन्होंने समय समय पर साबित किया है। तो चलिए आज बात एक ऐसी महिला कि जो पर्यावरण संरक्षण के कार्य में जुटी हुई है। आज बात असम की रहने वाली पूर्णिमा देवी बर्मन की। इस महिला ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण के नाम कर दिया है। पेड़-पौधे, ज़मीन जंगल, हवा पानी, पूर्णिमा हर उस चीज़ को बचाना चाहती हैं जो प्रकृति ने हमें उपहार के तौर पर दी है लेकिन हम उसे बर्बाद करने पर तुले हैं।

पूर्णिमा का प्रकृति प्रेम
बचपन से ही प्रकृति के बीच पली-बढ़ी पूर्णिमा का प्रकृति प्रेम अनूठा है। उन्होंने एक ऐसी सेना का गठन किया है जो ख़ास प्रजाति के सारस को बचाने के लिए काम कर रही है। इस सारस को असम में हरगिला कहा जाता है। वन्यजीव विशेषज्ञ इसे ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क कहते हैं। असम के अलावा ये भारत में केवल बिहार के भागलपुर में गंगा के तटीय क्षेत्र में पाया जाता है। पूर्णिमा का बचपन अपनी दादी के पास बीता। वो जहां रहती थी वो इलाका ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे का था। हरा भरा और सैकड़ों परिंदों और जंगली जानवरों से भरा हुआ। यहीं उन्होंने हरगिला को भी देखा। इस जगह पर रहने की वजह से प्रकृति और जंगली जानवरों-परिंदों से उन्हें ख़ास लगाव हो गया। पूर्णिमा जब बड़ी हुईं तो उन्होंने जूलॉजी की पढ़ाई की। इस पढ़ाई ने उन्हें हरगिला के और क़रीब ला दिया। उन्हें इसका महत्व और इस पर मंडराते ख़तरे का अहसास हुआ। इसके बाद उन्होंने तय किया कि वो इस बेमिसाल परिंदे की सुरक्षा के लिए काम करेंगी।

पर्यावरण के लिए ज़रूरी है हरगिला
दरअसल हरगिला को लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां थी। वो इसे अपशकुन से जोड़ कर देखते थे और इसी वजह से वो इनके घोंसले उजाड़ देते थे लेकिन वास्तव में ये पक्षी हमारे पर्यावरण के लिए बहुत अहम है। ये सफ़ाईकर्मी की तरह हमारे आसपास को साफ़ रखने में मदद करते हैं। मछली और सरीसृपों के अलावा सड़ रहे शवों को खाकर ये कई तरह की बीमारियों को फैलने से रोकते हैं। खेतों में इनकी आमद से कई तरह के कीट-पतंगों से फसल बच जाती है। लेकिन लोग इसकी महत्ता नहीं समझ पा रहे थे। पूर्णिमा देवी ने ना केवल इस पक्षी का महत्व समझा बल्कि उसे बचाने के लिए भी क़दम उठाए।

2009 में हरगिला आर्मी का गठन
पूर्णिमा सोचने लगी कि आख़िर इन परिंदों को बचाने के लिए क्या किया जाए। काफ़ी सोच विचार के बाद उन्होंने हरगिला आर्मी के गठन का फ़ैसला किया। ये आर्मी महिलाओं का एक ऐसा समूह था जो हरगिला को बचाने के लिए काम करता। पूर्णिमा ने तय किया कि इस आर्मी में केवल महिलाएं ही शामिल होंगी। पूर्णिमा ने अपने आस-पास की महिलाओं से बात की। उन्हें हरगिला के महत्व को समझाया और फ़िर इस अभियान में जुड़ने के लिए तैयार किया। तब गिने-चुने सदस्यों के साथ शुरू हुई इस हरगिला आर्मी में आज 10 हज़ार से भी ज़्यादा महिला सदस्य हैं। ये महिलाएं लोगों को हरगिला और पेड़-पौधों के बारे में जागरूक करती हैं, उन्हें जंगल, जल और जीव-जंतुओं को संरक्षित करने के लिए तैयार करती हैं। 

हरगिला को बचाने की कवायद
पूर्णिमा की हरगिला आर्मी हरगिला की सुरक्षा के लिए हमेशा मुस्तैद रहती है। इलाक़े में हरगिला पर उनकी पैनी नज़र रहती है। वो अक्सर ख़ुद भी दूरबीन लेकर इनकी निगरानी करती हैं। घायल या बीमार हरगिला को वो अपने साथ लेकर आती हैं, उनका पूरा इलाज करवाती हैं और फिर उन्हें वापस उनके ठिकाने पर छोड़ देती हैं। अंडों और उनसे निकलने वाले बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी हरगिला आर्मी बेहद सतर्कता बरतती हैं।

हरगिला संरक्षण के लिए मुहिम
हरगिला आर्मी लोगों को जागरूक करने के लिए हरगिला का मुखौटा बना कर बेचती हैं। कई कार्यक्रमों में ये महिलाएं ख़ुद भी हरगिला का मुखौटा पहन कर शामिल होती हैं। नाटकों और गीतों के ज़रिये भी ये आर्मी आम लोगों तक हरगिला के संरक्षण का संदेश पहुंचा रही है। इसके अलावा साड़ी, गमछे और दूसरे उत्पादों पर भी हरगिला की चित्रकारी और बूटे बनाए जाते हैं। हरगिला की तस्वीरों वाले टी-शर्ट, साड़ियां, डेकोरेटिव आयटम्स, कॉफी मग्स भी बेचे जाते हैं।
 इससे होने वाली आय से महिलाओं को फ़ायदा पहुंचता है और उन्हें  इस अभियान को आगे बढ़ाने का संबल भी मिलता है। हरगिला को बचाने का संदेश ये महिलाएं मेहंदी की डिज़ाइन में भी हरगिला की तस्वीर बनाती हैं। पूर्णिमा ने गुवाहाटी के डिपोर बिल में स्टॉर्क सिस्टर के नाम से एक दुकान भी खोली है जिसमें ये सारे प्रोडक्ट्स बेचे जा रहे हैं। स्टॉर्क सिस्टर्स को लोगों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। इतना ही नहीं वन विभाग भी हरगिला संरक्षण के लिए पूर्णिमा की मदद ले रहा है। इस अभियान में उन्होंने बच्चों को भी शामिल किया है। कई तरह की वर्कशॉप के ज़रिये बच्चों को हरगिला और पर्यावरण संरक्षण का महत्व समझाया जा रहा है ताकि आने वाली पीढ़ी भी इसके बारे में जान और समझ सके।

हरगिला संरक्षण की कोशिश को मिला सम्मान
पूर्णिमा देवी पिछले 13-14 सालों से लगातार हरगिला को बचाने के अभियान से जुड़ी हुई हैं। उनकी कोशिशों ने विलुप्त हो रहे ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क को एक नई ज़िंदगी दे दी है। पूर्णिमा को उनके इस काम के लिए कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। पूर्णिमा देवी बर्मन को 2009 में फ्यूचर कंजर्वेशनिस्ट अवार्ड, साल 2015 में कंजर्वेशन लीडरशिप अवार्ड साल 2016 में संयुक्त राष्ट्र से यूएनडीपी इंडिया बायोडायवर्सिटी अवार्ड के अलावा  साल 2017 में भारत सरकार की तरफ़ से नारी शक्ति सम्मान भी मिल चुका है। दुनिया में ग्रीन ऑस्कर के नाम से जाने जाने वाले ब्रिटेन के सम्मानित पुरस्कार व्हिटली से भी अलंकृत किया गया था। इतना ही नहीं, पिछले साल पूर्णिमा को संयुक्त राष्ट्र के संघ के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार चैंपियंस ऑफ़ द अर्थ से भी नवाज़ा गया है।

 पूर्णिमा देवी बर्मन हम सभी को सीख देती हैं कि कैसे अपने आसपास मौजूद जीव-जन्तुओं का महत्व समझें और कैसे उन्हें संरक्षित करने के लिए प्रयास करें।