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बंदे में है दम बदलाव के क़दम

राजेंद्र: उम्मीदें जिनसे रोशन हैं

आज के व्यस्त जीवन में भी लोग दूसरों के बारे में सोचते हैं। बेसहारों, असहायों की मदद करते हैं। ना केवल मदद बल्कि मुश्किल में पड़े ऐसे लोगों के जीवन में बदलाव लाने को अपने जीवन का ध्येय बना लेते हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसी ही शख़्सियत की कहानी लेकर आया है। एक छोटे से शहर से शुरू हुआ उनका ये प्रयास आज एक बड़ा स्वरूप ले चुका है। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के झाबुआ के रहने वाले राजेंद्र श्रीवास्तव ‘नीरज’ की। वो राजेंद्र जिनसे समाज में मानवता की उम्मीदें रोशन हैं।


बेसहारा मानसिक रोगियों का सहारा
रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाज़ारों में भटकते, गंदगी में पड़े, भूखे मानसिक रोगी हमें और आपको भी कई बार नज़र आते हैं, लेकिन हम उन्हें देख कर भी अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हैं। उन्हें उनकी नियति पर छोड़ कर लेकिन हममें से ही एक राजेंद्र श्रीवास्तव, जिन्हें लोग नीरज के नाम से भी जानते हैं, ऐसा नहीं करते। वो ऐसे लाचारों को उनकी नियति पर नहीं छोड़ते। राजेंद्र उन्हें अपने साथ ले आते हैं। ख़ुद से उनकी साफ़-सफ़ाई करते हैं। बाल-दाढ़ी बनाते हैं। नहलाते और साफ़ कपड़े पहनाते हैं। खाना खिलाते हैं। ये राजेंद्र का सिर्फ़ एक दिन का काम नहीं है। पिछले 20 सालों से वो इस काम को कर रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा हफ़्ता गुज़रता होगा जब राजेंद्र किसी बेसहारा मानसिक रोगी की मदद ना करते हों।

20 सालों की तपस्या
सामाजिक कार्यों में रुचि रखने वाले राजेंद्र पिछले 20 सालों से लगातार ये काम कर रहे हैं। इतने दिनों में उन्हें शहर के तमाम लोग भी अच्छी तरह से जानने लगे हैं। पुलिस विभाग, रेलवे, स्वास्थ्य विभाग भी उनके काम से भली-भांति परिचित है। अब आस-पास के लोग भी राजेंद्र को ऐसे मानसिक रोगियों की ख़बर दे देते हैं। ख़बर मिलते ही राजेंद्र वहां पहुंच जाते हैं और फ़िर उसे अपने साथ ले आते हैं। राजेंद्र ऐसे मानसिक रोगियों की ना सिर्फ़ देखभाल करते हैं बल्कि सरकारी अस्पताल में उनका मेडिकल भी कराते हैं। अगर इलाज की ज़रूरत हुई तो वहीं उनका इलाज भी किया जाता है। इसके अलावा वो ऐसे भटक रहे मानसिक रोगियों के परिवार की तलाश भी करते हैं। पुलिस स्टेशन में जाकर ये पता लगाते हैं कि क्या कोई गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज है। अगर रिपोर्ट मिलती है तो उनका काम आसान हो जाता है लेकिन कई बार रिपोर्ट नहीं लिखाई जाती तो राजेंद्र सोशल मीडिया के ज़रिये उनके परिवार या रिश्तेदारों का पता लगाने की कोशिश करते हैं। अब तक उन्हें इस काम में अच्छी सफलता मिली है। उन्होंने पिछले 20 सालों में 250 से ज़्यादा मानसिक रोगियों को उनके परिवार से मिलवाया है।

इंसानियत का रिश्ता
राजेंद्र इन असहायों की मदद इतने दिल से करते हैं कि उनका एक रिश्ता भी बन जाता है। ये रिश्ता है इंसानियत का रिश्ता। मानवता का रिश्ता। मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। इसी सिंद्धांत पर चलने वाले राजेंद्र इन बेसहारा लोगों पर अपना प्यार लुटाते हैं। राजेंद्र मेघनगर में ही सांची दूध पार्लर चलाकर अपना घर चलाते हैं। वो बताते हैं कि एक बार उनके पार्लर के पास ही 21-22 साल का एक मानसिक रोगी मिला। उन्होंने 18 दिनों तक उसकी सेवा की। उसका इलाज कराया, उसके घरवालों की तलाश की। काफ़ी मशक्कत के बाद पता चला कि वो युवक तमिलनाडु के करुर ज़िले का रहने वाला है। उसका नाम एम मोहम्मद राजा था। राजेंद्र ने मोहम्मद को उसके घरवालों तक पहुंचा दिया। वो बताते हैं कि 18 दिन तक साथ रहने पर उनका मोहम्मद के साथ एक अलग ही लगाव हो गया था। आज भी उन्हें अक्सर मोहम्मद की याद आ जाती है। लेकिन वो ख़ुश हैं कि मोहम्मद अपने घरवालों तक सकुशल पहुंच गया।

परिवार का मिला पूरा साथ
राजेंद्र श्रीवास्तव चार भाइयों के साथ सामूहिक परिवार में रहते हैं। वो गर्व से कहते हैं कि आज शायद की कोई ऐसा परिवार हो सामूहिक रहता हो। राजेंद्र के इस काम में भी उनका पूरा परिवार हमेशा उनके साथ खड़ा रहता है। वो इस काम में अपनी पत्नी की भूमिका की ख़ूब तारीफ़ करते हैं। वो कहते हैं कि उनकी पत्नी ने हमेशा उन्हें हौसला दिया, उनके काम को सराहा। वो मानसिक बेसहारा लोगों के लिए खाना बनाती हैं। उनके कपड़ों का इंतज़ाम करती हैं। परिवार के इसी साथ की वजह से राजेंद्र पिछले 20 सालों से भी अधिक समय से इंसानियत का ये नेक कर्म कर रहे हैं।

खर्च में मिलता है जन सहयोग
राजेंद्र बताते हैं कि इस काम में उन्हें बहुत अधिक धनराशि की ज़रूरत नहीं पड़ती। अपनी आमदनी का एक हिस्सा वो ऐसे मानसिक रोगियों और बेसहारा लोगों के लिए ख़र्च करते हैं। पीड़ित की देख-रेख वो स्वयं कर लेते हैं। बाल-दाढ़ी वो ख़ुद बना देते हैं। भोजन उनकी पत्नी बना देती हैं। इलाज सरकारी अस्पताल में हो जाता है। कपड़े-लत्ते और अगर उन्हें उनके घर भेजने के लिए टिकट की ज़रूरत हुई तो उसके लिए आस-पड़ोस और जानकार लोग भी मदद कर देते हैं।

मासूम के घरवालों की तलाश
इन दिनों राजेंद्र एक मासूम बच्चे को उसके घरवालों से मिलाने के अभियान में जुटे हुए हैं। ये बच्चा रतलाम स्टेशन पर एक ट्रेन की चपेट में आ गया था। उसका एक हाथ और एक पैर कट चुका है। फरवरी से ही उसका इंदौर के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है। अब वो पहले से काफ़ी बेहतर स्थिति में है लेकिन अब तक उसके मां-बाप का पता नहीं चल पाया है। 6 साल के इस बच्चे को उसके घरवालों से मिलवाने के लिए राजेंद्र सोशल मीडिया पर अभियान चला रहे हैं। इसके अलावा समय-समय पर वो रक्तदान शिविरों में हिस्सा लेकर ज़रूरतमंदों तक मदद पहुंचाने की कोशिश करते हैं। उनके रक्तदान सोशल मीडिया ग्रुप के ज़रिये उन्होंने 2000 यूनिट से अधिक रक्त उपलब्ध करवाया है। इतना ही नहीं, वो लावारिस शवों का भी दाह संस्कार कराने का पुण्य काम करते हैं। पिछले कई सालों से वो इस नेक काम में जुटे हुए हैं।

सबसे सराहे गये राजेंद्र
राजेंद्र श्रीवास्तव को उनके इस मानव सेवा धर्म के लिए अनगिनत सम्मान भी हासिल हो चुके हैं। इस काम के लिए उनका नाम वर्ल्ड ग्रेटेस्ट रिकॉर्ड में दर्ज है। इसके अलावा उन्हें कल्कि गौरव सम्मान, ज़िला गौरव रत्न सम्मान, उत्कृष्ट सामाजिक कार्यकर्ता सम्मान के साथ-साथ रोटरी इंटरनेशनल और लायंस कल्ब से भी सम्मानित किया जा चुका है। मध्य प्रदेश के अलावा बिहार और नेपाल तक में उनके काम की धमक है। वहां भी उन्हें सम्मानित किया गया है।

राजेंद्र का मानना है कि उन्हें असली सम्मान तब मिलता है जब कोई भटका हुआ मानसिक रोगी अपने परिवार से मिल पाता है, जब ऐसे लोगों को कोई आसरा मिल जाता है। वो चाहते हैं कि अगले कुछ सालों में वो एक आश्रय स्थल बनवाएं ताकि जिन लोगों के परिवार का पता नहीं चल पाए उनके लिए रहने का इंतज़ाम हो पाए।

राजेंद्र का मानना है कि समाज में, लोगों के अंदर मानवता ज़िंदा रहनी चाहिए। उम्मीद है मानवता के पथ के इस पथिक का सेवा धर्म अनवरत जारी रहेगा।