हम बेटियों को आगे बढ़ाने की बात करते हैं लेकिन जब तक हम अपनी बच्चियों को पढ़ाएंगे नहीं, उन्हें अच्छी शिक्षा मुहैया नहीं कराएंगे, उनके आगे बढ़ने की बात करना बेमानी है। लड़कियों की पढ़ाई को लेकर शहरी इलाक़ों में तो फ़िर भी स्थिति बदल चुकी है लेकिन ग्रामीण इलाक़ों की हालात में आज भी बहुत ज़्यादा सुधार नहीं हुआ है। और अगर हम देश के दूरस्थ क्षेत्रों की बात करें तो परिस्थिति और विकट है। देश के पश्चिमी राज्य राजस्थान को देखें तो ये आंकड़े और ख़राब हैं। वहां की सामाजिक और भौगोलिक परिस्थिति इस हालात की ज़िम्मेदार है। लेकिन इसमें सुधार के लिए भी कई तरह की कोशिशें सामने आती रहती हैं। कई प्रयास राजस्थान के रेगिस्तान में गुम हो जाते हैं तो कई नखलिस्तान जैसा सुकून पहुंचाते हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पर बात एक ऐसे ही स्कूल की जो मरूभूमि में शिक्षा के फूल उगा रहा है।
जैसलमेर के रेगिस्तान में स्कूल
चारों तरफ़ रेगिस्तान और बीच में बलुआ पत्थर से बनी एक अंडाकार इमारत। जैसलमेर के कोनाई गांव में स्थित ये इमारत शिक्षा का मंदिर है, एक स्कूल है। राजकुमारी रत्नावती के नाम पर बना ये स्कूल बच्चियों की शिक्षा की दिशा में एक मिसाल है। जिस तरह राजकुमारी रत्नावती ने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देते हुए अलाउद्दीन खिलजी की सेना से टक्कर ली थी, ठीक उसी तरह ये स्कूल अशिक्षा के अंधियारे के ख़िलाफ़ एक मशाल की तरह रोशनी बिखेर रहा है। इस स्कूल को माइकल ए डौबे की संस्था CITTA ने बनाया है। स्कूल निर्माण के लिए ज़मीन CITTA India के डायरेक्टर मानवेंद्र सिंह शेखावत ने मुहैया करवाई जबकि जैसलमेर के शाही परिवार के चैतन्य राज सिंह और राजेश्वरी राज्यलक्ष्मी का भी बड़ा योगदान है।
संरचना ने मोह लिया मन
खुले रेगिस्तान के बीच स्कूल की ये इमारत हर किसी का मन मोह लेती है। इस इमारत की आर्किटेक्ट डायना कैलॉग हैं। जैसेलमेर के इस रेगिस्तान में गर्मी के दिनों में जब आसमान से अंगारे बरसते हैं, गर्म हवा के थपेड़े ख़ून तक सुखा देते हैं, तापमान 50 डिग्री के पार पहुंच जाता है, स्कूल की इस इमारत के अंदर ठंडक महसूस होती है। स्कूल में एयर कंडिशनर या कूलर नहीं लगे हैं। ठंडक की वजह है इसका ख़ास डिज़ाइन। 22 बीघे में बनी इस स्कूल की इमारत की दीवारें जालीदार हैं। खुली छत और अंडाकार आकार की वजह से हवा का घुमाव इसे शीतल बना देता है। स्कूल को पूरी तरह से सौर ऊर्जा से चलाया जा रहा है। इस स्कूल से कई बड़ी हस्तियों के नाम भी जुड़े हैं। जैसे स्कूल की ड्रेस की डिज़ाइन मशहूर फैशन डिज़ाइनर सब्यसाची मुखर्जी ने तैयार की है।
मुफ़्त शिक्षा, अच्छी शिक्षा
रेगिस्तान में इस स्कूल को खोलने का मक़सद साफ़ था। जिस राजस्थान में महिलाओं की साक्षरता दर केवल 53% के करीब हो, जिस राजस्थान में 80 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती हो जहां लड़कियों को पढ़ाने के बजाय उनकी बचपन में ही शादी कर दी जाती हो। जहां भ्रूण हत्या के मामले ज़्यादा हों और जहां सामाजिक रूप से महिलाओं को दूसरे पायदान पर रखा जाता हो, वहां की बच्चियों को साक्षर बनाकर मुख्य धारा से जोड़ना बेहद ज़रूरी था। इसी वजह से जैसलमेर के रेगिस्तान में करोड़ों खर्च कर इस स्कूल का निर्माण कराया गया। इस स्कूल में किंडर गार्डन से लेकर दसवीं तक की पढ़ाई होती है। हर साल 400 बच्चियों की शिक्षा की व्यवस्था है। सामान्य पढ़ाई के साथ-साथ कंप्यूटर और स्पोकन इंग्लिश का भी विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बच्चियों को शिक्षा के साथ-साथ स्कूल में मुफ़्त भोजन भी मुहैया कराया जा रहा है।
महिलाओं के लिए विशेष केंद्र
स्कूल के पास ही एक महिला केंद्र भी खोला गया है। इसमें स्थानीय महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सिलाई-कढ़ाई, स्थानीय कलाकारी, हैंडीक्राफ्ट जैसे हुनर सिखाये जा रहे हैं ताकि ये महिलाएं आर्थिक और मानसिक रूप से मजबूत हो सकें। इसी केंद्र के पास एक मेधा हॉल बनाया गया है जिसमें इन महिलाओं के बनाए उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई जाती है। ये उनके हुनर को दुनिया तक पहुंचाने की एक कोशिश है। इससे इन महिलाओं को अपने सामान बेचने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ता। इसी मेधा हॉल में ख़रीदार आते हैं और उनके बनाये सामान ख़रीद कर ले जाते हैं।
ग्रामीण स्तर पर महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार को लेकर ये स्कूल और ये सेंटर बहुत बड़ा क़दम है। उम्मीद है कि इस कोशिश की रोशनी से देश के और भी हिस्से रोशन होंगे।
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