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बंदे में है दम

रामवीर की जल साधना

धरती पर जीवन इसलिए है क्योंकि यहां पानी है। बिना पानी के इंसान के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन क्या हम इंसान इस पानी को इतना महत्व देते हैं ? जिस चीज़ के बिना हम ज़िंदा नहीं रह सकते, क्या हम उसकी क़द्र करते हैं ? बिल्कुल नहीं। अगर ऐसे होता तो आज नदियां मर नहीं रही होतीं। तालाब सूख नहीं रहे होते, समंदर कचरे का ढेर नहीं बन रहा होता और ज़मीन के अंदर का पानी पाताल तक नहीं पहुंच गया होता। ज़रूरत है अभी भी जागने की और दूसरों को जगाने की। ऐसी ही कोशिश में जुटे हैं ग्रेटर नोएडा के रहने वाले रामवीर तंवर।

तालाब बचाने में जुटे इंजीनियर रामवीर

रामवीर ग्रेटर नोएडा के डाढा गांव के रहने वाले हैं। उनका बचपन गांव में ही बीता। खेत-खलिहान, तालाब उनके जीवन के अहम हिस्से रहे। 2014 में उन्होंने ग्रेटर नोएडा के इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के बाद नोएडा में ही एक कंपनी में अच्छी नौकरी लग गई। सब अच्छा चल रहा था लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने रामवीर के दिल-ओ-दिमाग में हलचल मचा दी। हुआ यूं कि एक दिन उनकी नज़र अपने पैतृक तालाब पर पड़ी। इसी तालाब के आस-पास उनका बचपन बीता था। वो तालाब सूख रहा था। तालाब की दुर्दशा देख कर रामवीर को लगा कि एक-एक करके सारे तालाब ख़त्म हो जाएंगे। इसी के बाद उन्होंने लोगों को जागरूक करने का काम शुरू कर दिया।

जनचौपाल से शुरुआत

अब रामवीर हर रविवार को गांव के युवाओं से बात करने लगे। बच्चों को बुलाकर उन्हें जल संरक्षण और तालाब बचाने की अहमियत समझाने लगे। उन्होंने सोचा था कि बच्चों को ज़रिये वो उनके अभिभावकों तक अपनी बात पहुंचा पाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गांव के लोगों ने इस बात पर विश्वास ही नहीं किया कि उनके सामने कभी पानी का संकट भी आ सकता है। गांववालों के इस रवैये से रामवीर को निराशा तो हुई लेकिन वो पीछे नहीं हटे। अब वो ख़ुद लोगों के घर जाने लगे, उन्हें जल संरक्षण और तालाबों को बचाने की ज़रूरत बताने लगे। आख़िरकार उनका ये अभियान रंग लाया। लोगों ने उनकी बातें सुननी शुरू कर दी। रामवीर ने एक बार फ़िर लोगों के साथ बैठकर तालाब को फ़िर से ज़िंदा करने पर मंथन शुरू कर दिया। अपने इस अभियान को उन्होंने जनचौपाल का नाम दिया। साल 2015 में रामवीर ने अपने गांव के लोगों और कुछ समाजसेवियों के साथ मिलकर अपने तालाब का काया-कल्प कर दिया। सबने मिलकर तालाब की गंदगी साफ़ कर दी। उसके चारों तरफ़ पेड़-पौधे लगा कर उसे साफ़ और सुंदर बना दिया।

पॉन्ड मैन के नाम से मशहूर

रामवीर ने ठान लिया कि अब उन्हें यही काम करना है। अपने मजबूत इरादों के साथ उन्होंने नौकरी को अलविदा कर दिया। इधर गांव के तालाब को पुनर्जीवन मिलने की ख़बर आस-पास के गांवों में भी फ़ैल गई। लोग अब रामवीर के पास आने लगे। उनसे अपने गांव, अपने इलाक़े के तालाबों और झीलों को पुनर्जीवित करने के लिए मदद मांगने लगे। रामवीर अब उन जलस्त्रोतों के उद्धार में लग गए। धीरे-धीरे उन्होंने नोएडा, ग़ाज़ियाबाद, पलवल, सहारनपुर समेत कई जगहों पर मौजूद 25 से ज़्यादा तालाबों को पुनर्जीवित कर दिया। उनका अब उनकी पहचान बन गया। लोग उन्हें रामवीर तंवर के नाम से नहीं पॉन्ड मैन के नाम से जानने लगे।

कैसे करते हैं तालाब को पुनर्जीवित

रामवीर तालाब के आकार के हिसाब से काम की शुरुआत करते हैं। तालाब में गिरने वाले नालों को साफ़ करने के लिए कई तरह के गड्ढे बनाए जाते हैं। इन गड्ढों से गुजर कर पानी साफ़ होकर तालाब में पहुंचता है। इसके साथ ही तालाब से गाद और गंदगी साफ़ की जाती है। वहीं इससे निकलने वाले कचरे को मछलीपालकों को बेचा जाता है। कोशिश की जाती है कि गांववालों को इस अभियान से जोड़ा जाए ताकि वो काम पूरा होने के बाद भी इसकी साफ़-सफ़ाई की निगरानी करें। तालाब के किनारे पेड़-पौधे लगाए जाते हैं।

कई राज्यों में चल रहे हैं प्रोजेक्ट

रामवीर के काम को देखते हुए अब कई राज्य सरकारें भी उनके साथ काम कर रही हैं। ग़ाज़ियाबाद नगर निगम ने 20 से ज़्यादा तालाबों के पुनर्जीवन का काम रामवीर की संस्था को दिया है। हरियाणा और उत्तराखंड में भी रामवीर जल संरक्षण पर काम कर रहे हैं। नैनीताल के पहाड़ी इलाक़ों में वो जंगलों में छोटे-छोटे तालाब बनवा रहे हैं ताकि बारिश का पानी सहेजा जा सके। रामवीर ने लोगों को तालाब की अहमियत समझाने के लिए सेल्फ़ी विद पॉन्ड कैंपेन भी चलाया।

काम को मिला सम्मान

रामवीर आज एक जाने-माने संरक्षणविद् हैं। कई बड़े आयोजनों में वो विशेषज्ञ और प्रमुख वक्ता के तौर पर शामिल होते हैं। स्थानीय प्रशासन से लेकर कई समाजसेवी संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है। यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम मन की बात में रामवीर तंवर के जल संरक्षण अभियान की तारीफ़ की है।

28 साल के रामवीर तंवर पिछले 9 सालों से जल संरक्षण में जुटे हुए हैं। ख़ुद के साथ-साथ उन्होंने सैकड़ों युवाओं को इस अभियान में जोड़ा है। उनका ये संकल्प, उनका ये सपमर्पण केवल उनके लिए नहीं है। ये तो पूरी मानव जाति के लिए है, धरती के लिए है। वो चाहते हैं कि हर कोई इस प्रकृति को सहेजने में थोड़ा-थोड़ा योगदान दे ताकि ये धरती बची रहे, पानी बचा रहे।