मेहनत ही एकमात्र वो चीज़ है जो इंसान की किस्मत बदल देती है। खेल की दुनिया का भी ये पहला और आख़िरी नियम है। खिलाड़ी वही सफल होते हैं जो मेहनत करते हैं। हर बार बेहतर प्रदर्शन के लिए ख़ुद को निखारते हैं और फिर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाते हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट जिस खिलाड़ी की कहानी लेकर आया है वो भी तमाम मुश्किल हालातों को पीछे छोड़ कर अब बुलंदियों की तरफ़ बढ़ रहा है। आज की कहानी क्रिकेटर रिंकू सिंह की।
छक्कों की बारिश कर बन गये स्टार
लगातार 5 बॉल पर 5 छक्के। ऐसा नहीं है कि क्रिकेट में ये करिश्मा पहले कभी नहीं हुआ। भारत के पूर्व क्रिकेटर युवराज सिंह ने तो 6 बॉल पर 6 छक्के लगाए थे लेकिन आईपीएल के रोमांचक मैच में रिंकू के बल्ले से निकले इन 5 छक्कों ने ना केवल कोलकाता नाइट राइडर्स को जीत दिला दी बल्कि रिंकू को क्रिकेट की दुनिया का नया सितारा भी बना दिया। फटाफट क्रिकेट से एक क़दम आगे निकल चुके इस टी-ट्वेंटी फॉर्मेट ने विस्फोटक बल्लेबाज़ी को एक नया रूप दे दिया है। रिंकू ने अपने इसी हुनर का प्रदर्शन करते हुए लगभग नामुमकिन से लक्ष्य को मुमकिन करते हुए अपनी टीम को जीत दिला दी। क्रिकेट की दुनिया के बड़े-बड़े दिग्गज रिंकू की बल्लेबाजी के प्रशंसक बन चुके हैं। सचिन, सहवाग जैसे महान खिलाड़ी भी रिंकू के विस्फोटक अंदाज़ के कायल हो गये हैं।
मुश्किलों को जीत कर पाया मक़ाम
रिंकू IPL खेल रहे हैं। कोलकाता नाइट राइडर टीम का हिस्सा हैं। अगर वो ऐसी ही विस्फोटक पारियां खेलते हैं तो हर कोई उन्हें अपनी टीम में रखना चाहेगा। वो क्रिकेट जगत का नया सितारा बन चुके हैं। लेकिन ये कामयाबी उन्हें यूं ही नहीं मिल गई है। रिंकू और उनके परिवार ने कई मुसीबतें, मुश्किल से भरे कई साल गुज़ारे हैं। मूल रूप से बुलंदशहर के डिबाई के रहने वाले रिंकू के पिता खानचंद साल 1985 में काम की तलाश में अलीगढ़ आए थे। यहां वो एक गैस एजेंसी में काम करने लगे थे। एजेंसी के मालिक ने वहीं उन्हें रहने के लिए एक कमरे का क्वार्टर दे दिया था। क्वार्टर की छत पक्की नहीं थी। टीन शेड की छत से बारिश के दिनों में पानी टपकता था। गर्मी के दिनों में पूरा परिवार तप जाता था और ठंड में बेहाल। पिता सिलेंडर हॉकर का काम करते रहे तो बड़ा भाई ऑटो चलाने लगा। मां घर संभालती तो पिता और भाई ने घर का बजट संभाला। पांच भाई-बहनों में रिंकू तीसरे नंबर पर हैं। परिवार की मदद से लिए रिंकू ने भी एक कोचिंग सेंटर में काम किया। वहां उन्हें झाड़ू-पोंछा लगाना रहता था। रिंकू को काम पसंद नहीं था लेकिन कमाई का उनके पास और कोई ज़रिया भी नहीं था। कुछ दिनों तक उन्होंने पिता की तरह सिलेंडर भी ढोये थे। कई दिनों तक काम करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ कर क्रिकेट पर ध्यान देने का फ़ैसला किया।
बचपन से ही क्रिकेट से प्यार
12 अक्टूबर 1997 को जन्में रिंकू का दिल बचपन से ही पढ़ाई के बदले क्रिकेट में लगा रहा। रिंकू पढ़ाई में इतने कमज़ोर थे कि नौवीं भी पास नहीं कर पाये। बचपन में जब भी वो क्रिकेट खेलने जाते थे, उनके पिता उन्हें डांटा करते थे। वजह उनका पढ़ाई से दिल चुराना था। कई बार तो इस चक्कर में उनकी पिटाई भी हो चुकी है लेकिन क्रिकेट से उनका प्यार कभी कम नहीं हुआ। बड़े होने पर पिता के साथ-साथ पूरे परिवार ने ना केवल रिंकू के क्रिकेट प्रेम को समझा बल्कि उनका साथ भी दिया। रिंकू के क्रिकेट को सही ट्रैक पर लाने में कोच मसूद अमीन और जीशान की बड़ी भूमिका है।
2014 से बदली किस्मत
रिंकू अपनी बल्लेबाज़ी से नाम कमाने लगे थे। साल 2014 में उनके खेल ने रंग दिखाया। उनका चयन उत्तर प्रदेश की टीम में हुआ। उन्हें लिस्ट ए से खेलने का मौक़ा मिला। लिस्ट ए के मैचों में उन्होंने आतिशी पारी खेल कर सबका ध्यान अपनी तरफ़ खींचा। सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के मैच में भी उनकी विस्फोटक बल्लेबाज़ी दिखाई दी। फिर क्या था। टी-ट्वेंटी के लिए भी उनका चयन कर लिया गया। साल 2017 में किंग्स इलेवन पंजाब ने उन्हें ख़रीदा था लेकिन उन्हें एक भी मौक़ा नहीं मिला। अगले साल केकेआर ने उन्हें अपनी टीम में शामिल कर लिया। तब से रिंकू केकेआर का हिस्सा हैं।
स्टार बनने के बाद भी नहीं बदला परिवार
रिंकू अब क्रिकेट का बड़ा नाम बन चुके हैं। शोहरत और पैसा दोनों आ चुका है लेकिन ज़मीन से जुड़े उनके परिवार के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया। रिंकू ने पहले ही माता-पिता के लिए फ्लैट ले लिया था लेकिन उन्हें गैस एजेंसी के क्वार्टर में ही रहना पसंद है। यहां तक कि आज भी उनके पिता सिलेंडर डिलिवरी का काम करते हैं। कई लोगों ने उन्हें अब काम छोड़ देने की सलाह दी लेकिन वो कहते हैं कि काम करने में उन्हें खुशी और संतोष मिलता है। परिवार को उम्मीद है कि रिंकू अब जल्द ही भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बन कर देश का नाम रोशन करेंगे।
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