जटाओं से बाल, कानों में कुंडल, रंग-बिरंगे परिधान। कुछ ऐसे ही नज़र आते हैं ये लेकिन ऊपर से आधुनिकता का चोला ओढ़े ये शख़्स अंदर से मिट्टी से जुड़ा हुआ है। इतना जुड़ा हुआ है कि वो मिट्टी ही उसकी पहचान बन चुकी है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसे ही युवा कलाकार की कहानी लेकर आया है गोवा की मिट्टी को एक नये आयाम पर पहुंचा रहा है। ये कहानी है गोवा के कावी कलाकार सागर नाईक मुले की।
गोवा की प्राचीन कला को नया आसमान
युवा कलाकार सागर नाईक मुले इन दिनों ख़ासे चर्चा में हैं। हो भी क्यों ना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी कलाकारी की तारीफ़ अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात में जो की है। मन की बात में प्रधानमंत्री ने सागर मुले की उस कलाकारी को सलाम किया है जिसमें वो गोवा की प्राचीन कला को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए क़दम उठा रहे हैं। ये कला है कावी कला। इसे गोवा की लोक कला भी कहा जाता है। आधुनिकता का चोला ओढ़ते हमारे देश में ऐसी कई लोक कलाएं विलुप्त हो चुकी हैं और कई विलुप्ति की कगार पर है। कावी कला पर भी संकट मंडरा रहा था लेकिन युवा कलाकार सागर नाईक मुले ने इस कला में नई जान फूंक दी है। अब ये ना केवल गोवा बल्कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान छोड़ रही है।
क्या है कावी कला
गोवा कई संस्कृतियों का संगम है। यहां कोंकणी और मराठी के साथ-साथ पुर्तगाली संस्कृति की गहरी छाप है। इन्हीं संस्कृतियों में कई कलाएं भी शामिल है जिसमें से एक है कावी कला।
कावी नाम काव से पड़ा है। गोवा की लाल मिट्टी को काव कहा जाता है और इसी मिट्टी से होने वाली कलाकारी को कावी कला। ये ठीक उसी तरह की कला है जैसे बिहार की मधुबनी पेंटिंग या मंजूषा। इस कला में लाल मिट्टी में एक स्थानीय पौधे की गोंद को मिलाया जाता है। फिर इससे दीवारों को लीपा जाता है और फिर कार्विंग के ज़रिये इस पर सफ़ेद रंग से आकृतियां बनाई जाती हैं। लेकिन जैसे मधुबनी पेंटिंग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली उस तरह से कावी कला को पहचान नहीं मिल पाई। इसकी बड़ी वजह ये रही कि ये कला आम तौर पर दीवारों पर बनाई जाती थी। तब कावी कला गांव की लगभग हर घर की दीवारों पर नज़र आती थी। कोंकणी महिलाएं इसे एपण की तरह बनाया करती थी। इसमें पेड़-पौधे और पशुओं की तस्वीरें उकेरी जाती हैं लेकिन बदलते दौर के साथ-साथ दीवारों पर चित्रकारी की ये कला कम होने लगी। लोगों ने अपने घर की दीवारों पर कावी आर्ट बनवाने बंद कर दिये। नतीजा ये हुआ कि धीरे-धीरे ये कला विलुप्त होने लगी।
कलाकारों के गांव से निकला सितारा
गोवा के पोंडा का आडपई गांव कलाकारों का गांव कहलाता है। सदियों से ये माना जाता है कि गोवा की कला और संस्कृति का मूल आडपई गांव ही है। दशकों से इस गांव में गणेश चतुर्थी का भव्य आयोजन होता है। उत्सव के पांचवें दिन गांव में चित्ररथ निकाला जाता है। ये एक प्रकार की झांकी होती है जिसमें गांव के कलाकार अपनी कला और चित्रकारी का प्रदर्शन करते हैं। ये गांव अपनी विरासत और परंपरा को संभालने वाला भी है। इस गांव के सारे परिवार आज भी संयुक्त परिवार के रूप में रहते हैं। कला-संस्कृति और विरासत के संगम इसी गांव आडपई के रहने वाले हैं सागर नाईक मुले। 1 जून 1990 को जन्मे सागर आडपई के पुजारी परिवार के सदस्य हैं। बचपन से ही उन्होंने गांव में कला और चित्रकारी को गंभीरता से देखा। धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी भी कला की तरफ़ जागने लगी। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने साल 2013 में गोवा यूनिवर्सिटी के गोवा कॉलेज ऑफ़ आर्ट से बीएफए की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने साल 2016 में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के एसएन स्कूल ऑफ़ फ़ाइन आर्ट्स से मूर्तिकला में एमएफए पूरा किया।
कला के क्षेत्र में ली गई उनकी शिक्षा ने उनकी मूर्तिकला और चित्रकारी को नया आसमान दे दिया। सागर ने अपने हुनर से कला को चाहने वालों को अपना मुरीद बना लिया। 2013 में कला अकादमी, गोवा ने पेंटिंग, एप्लाइड आर्ट एंड ग्राफिक डिज़ाइन और मूर्तिकला के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया। 2015 में उन्होंने तेलंगाना राज्य युवा महोत्सव में प्रथम पुरस्कार हासिल किया। देश-विदेश की कई कला प्रदर्शनियों में उन्होंने हिस्सा लिया। 2015 में कलाकृति आर्ट गैलेरी, हैदराबाद, 2016 में चंडीगढ़ के ऑरा आर्ट स्टे, 2016 में मुंबई में पीरामल आर्ट रेजीडेंसी में वो प्रमुख कलाकारों में शामिल थे। उन्होंने 2015 में आकार कला अकादमी हैदराबाद, 2015 में गोवा मिनी प्रिंट, 2016 में लिथुआनिया के विलनियस में गलेरा नो कोइन्सिडेंस और संस्कृति भवन कला जैसे कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया।
सागर और कावी आर्ट
सागर ने बचपन से ही कावी कला को अपने आसपास देखा था। बतौर कलाकार उन्होंने कावी आर्ट पर भी काम किया था लेकिन कोरोना काल के दौरान वो इस कला से पूरी तरह जुड़ गये। हुआ कुछ यूं की कोरोना की वजह से उनकी कार्यक्रमों में आवाजाही लगभग बंद हो चुकी थी। इसी बीच नवरात्रि आई तो उन्होंने कावी चित्रकारी से हर दिन देवी की अलग-अलग तस्वीरें बनानी शुरू कर दी। कावी शैली में बनाई गई देवी दुर्गा के इन नौ स्वरुपों की तस्वीरें लोगों को बहुत पसंद आई। इससे सागर का उत्साह बढ़ा और उन्होंने एक के बाद एक कर कावी चित्रकारी से कई तस्वीरें और कलाकृति बनानी शुरू कर दी। धीरे-धीरे सागर के काम की चर्चा होने लगी। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके काम की चर्चा और तारीफ़ अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात में की। इससे सागर की कला की उड़ान को नये पंख लग गये। सागर इसे देवी का आशीर्वाद बताते हैं।
कावी कला के संरक्षण का प्रयास
सागर ये बात अच्छी तरह समझ रहे थे कि कावी चित्रकारी को समय के साथ बदलने की आवश्यकता है। अगर इसे सिर्फ़ दीवारों पर किया जाएगा तो ये जल्द ही ख़त्म हो जाएगी। इसे कैनवॉस, पेपर और दूसरे माध्यमों के ज़रिये सामने लाने की ज़रूरत है। सागर ने अब इस लोक कला को कॉन्टेम्प्रररी यानी समकालीन बनाने की शुरुआत कर दी। उन्होंने कावी कला में बदलाव के लिए रिसर्च करनी शुरू कर दी। कैनवॉस पर कावी आर्ट को बनाने के लिए उन्होंने इसमें कई तरह के बदलाव किये। इसके साथ-साथ मूर्तिकला और सैंड आर्ट से भी कावी आर्ट को जोड़ दिया। उनके बनाये सैंड आर्ट की भी ख़ूब तारीफ़ हुई। सागर पूरी तरह से प्रकृति से जुड़े हैं। वो अपनी कला में काव यानी लाल मिट्टी के अलावा घास-फूस, गोबर, लकड़ी और पत्ते जैसी चीज़ों का भी बख़ूबी इस्तेमाल करते हैं।
देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत
सागर के दिल में अपने देश के लिए अथाह प्यार और सम्मान है। इसकी झलक उनकी बातों के साथ-साथ उनकी कला में भी दिखाई देती है। वो 15 अगस्त के कार्यक्रम के लिए उन्होंने गोवा के कई कलाकारों को अपने साथ जोड़ा और एक गीत तैयार किया। 26 जनवरी के लिए भी उन्होंने कार्यक्रम तैयार किया। वो कहते हैं कि कावी आर्ट सिर्फ़ गोवा की कला नहीं है, ये देश की कला है जिसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाना है।
उम्मीद है सागर की ये कला यात्रा अनवरत जारी रहेगी और वो कावी आर्ट के साथ-साथ और भी कलाओं को नई बुलंदियों पर पहुंचाएंगे।
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