क्या आप जानते हैं कि भारत देश, जहां नारी शक्ति की पूजा होती है, बच्चियों को देवी का स्वरूप माना जाता है, उसी देश में हर दिन क़रीब 70 से ज़्यादा महिलाओं का बलात्कार होता है ? क्या आपको पता है कि देश में हर साल करीब 28 हज़ार महिलाएं दुष्कर्म का शिकार बनती हैं जिनमें से 25 सौ से ज़्यादा नाबालिग बच्चियां होती हैं ?
हैं ना ये आंकड़े डराने वाले ? लेकिन यही देश का भयानक सच है।इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की आज की कहानी एक ऐसी नायिका की है जो इस काले-घुप्प अंधेरे में छोटी सी ही सही लेकिन रोशनी की एक किरण तो बिखेर ही रही हैं।
ये कहानी है बिहार के हाजीपुर की सरिता राय की। सरिता जीवन के एक ऐसे संकल्प पथ पर चल रही हैं जिसका मक़सद है उन बच्चियों को हर मुमकिन मदद पहुंचाना जो जीवन के उस भयानक पल की पीड़ित बनी जिसके बारे में कोई भी महिला सोच कर घबरा जाती हैं। वो है रेप। सरिता उन बच्चियों की मदद कर रही हैं जो इस बर्बर ज़ुर्म की पीड़ित रही हैं। सरिता लीगल प्रोबेशन ऑफ़िसर हैं। उनके पति भी वकील हैं। पिछले कई सालों से वो रेप पीड़ित बच्चियों के केस फ्री में लड़ रही हैं। वो इन बच्चियों की काउंसलिंग करवाती हैं, उन्हें मेडिकल की सुविधाएं दिलवाती हैं। उनकी ये कोशिश रेप पीड़ित बच्चियों के घाव पूरी तरह तो नहीं भर सकती लेकिन उस पर मरहम ज़रूर लगा रही हैं।
मुश्किलों से नहीं डिगा हौसला
रेप पीड़ित बच्चियों को इंसाफ़ दिलाना, उनके लिए काम करना, उन्हें मदद पहुंचाना आसान नहीं था। इसके लिए कई बार उन्हें शहर से दूर अनजानी जगहों में जाना पड़ता था। अनजाने लोगों के बीच पीड़ित से मिलना ख़तरनाक भी था। पीड़ित की मदद करने पर आरोपी पक्ष की तरफ़ से धमकी उनके लिए आम बात हो गई थी। इसी वजह से शुरुआत में उनके पति को उनकी चिंता रहती थी और वो इस तरह के काम करने से बचने की सलाह दिया करते थे। लेकिन सरिता का जज़्बा और उनकी हिम्मत देख वो भी अब सरिता के इस नेक काम में हमक़दम बन चुके हैं।
सरिता की ज़िंदगी का सफ़र
सरिता का सपना यूपीएससी था। वो सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा की तैयारी में जुटी हुई थीं। इसी बीच उनका सेलेक्शन बैंक के लिए हो गया। उन्होंने नौकरी ज्वाइन भी कर ली लेकिन कुछ ही दिनों में उन्हें ये अहसास होने लगा कि वो इस काम के लिए बनी ही नहीं हैं। वो बंद कमरों में बैठकर काम कर ही नहीं सकती, उन्हें तो लोगों के बीच काम करना है। बस फ़िर क्या था, उन्होंने नौकरी छोड़ दी और आ गईं लोगों के बीच, समाज के बीच। शुरुआत में उन्होंने गांव-देहात के उन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया जो बाल मज़दूरी कर रहे थे। कुछ कूड़ा बीनने के काम में लगे थे। कुछ दुकानों या घरों में काम कर रहे थे। ये काम भी बहुत मुश्किल था। बच्चों और उनके मां-बाप को ये समझाना कि बच्चों का पढ़ना कितना ज़रूरी है। मां-बाप को लगता था कि बच्चे काम करते हैं तो थोड़ी कमाई हो जाती है। इसी वजह से सरिता कई लोगों की निगाह में खटकने लगी थीं लेकिन सरिता पीछे हटने वाली नहीं थी। वो अक्सर इन बच्चों के बीच पहुंच जाती और पढ़ाने की कोशिश करती। ये मेहनत रंग लाने लगी और धीरे-धीरे कई बच्चे उनसे पढ़ने आने लगे। सरिता अपनी सैलरी का 20 प्रतिशत ग़रीब बच्चों की पढ़ाई पर ख़र्च करती हैं।
बंजारनों को शिक्षा से जोड़ा
सरिता ने बच्चों के साथ-साथ इलाक़े में रहने वाले बंजारा समाज की महिलाओं को भी शिक्षा की धारा से जोड़ने की कोशिश की। उन्हें अक्षर का ज्ञान कराया। पढ़ाई का महत्व समझाया। उनकी बंजारों को शिक्षा से जोड़ने की कोशिश भी नाकाम नहीं हुई।
जागरूकता अभियान का सिलसिला
सरिता जानती हैं कि समस्या का समाधान करने के लिए समाज को जागरूक करना ज़रूरी है फिर चाहे वो मसला शिक्षा का हो, नारी उत्पीड़न का या फिर स्वच्छता का। इसी वजह से वो सिर्फ़ हाजीपुर ही नहीं, समस्तीपुर, सहरसा समेत कई ज़िलों में लगातार जागरूकता अभियान चला रही हैं। लोगों के बीच जाकर उन मुद्दों पर बात कर रही हैं, लोगों की बातें सुन रहीं हैं।
बच्चों पर ख़ास ध्यान
तमाम मुद्दों के बीच सरिता बच्चों के मुद्दों पर ख़ास ध्यान रखती हैं। सरिता का कहना है कि आज की इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हर इंसान अपने बच्चों को रोबोट बनाने पर अड़ा है। सब चाहते हैं कि उनका बच्चा खूब पैसे कमाए, अमीर बनें जबकि बच्चों को पहले इंसान बनाना ज़रूरी है। उनका मानना है कि अगर हर सक्षम इंसान कम से कम एक बच्चे को पढ़ाने का जिम्मा उठा ले तो हमारा समाज ही नहीं बल्कि पूरा देश संवर जाएगा।
काम को पहचान के साथ मिला सम्मान
सरिता भले ही इन कामों को नि:स्वार्थ भाव से करती चली आ रही हैं लेकिन इतने सालों में उनके कामों को पहचान मिलने लगी है। बच्चों और महिलाओं के लिए किये जा रहे उनके कार्यों के लिए उन्हें बिहार रत्न जैसे सम्मान दिये गए हैं लेकिन सरिता को इन सम्मानों की नहीं ऐसे सख़्त क़ानून की चाहत है जिससे जुवेनाइल रेप जैसे ज़ुर्म को जड़ से मिटाया जा सके, देश के हर बच्चे को मुफ़्त शिक्षा मिल सके। यही उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा।
इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की टीम सरिता को सलाम करती है।
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हमें उनके बारे में हमारे ईमेल पर- mystory@indiastoryproject.com
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