कलाकारों के शिल्प की कोई सीमा नहीं होती। कोई बंधन नहीं होता। कोई ब्रश पेंट से काग़ज़ पर अपना हुनर दिखाता है, कोई कच्ची मिट्टी को मूरत में बदल देता है। कोई रेत में अपनी उंगलियों का जादू बिखेर देता है। कुछ ऐसे ही शिल्पकार की कहानी आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट लेकर आया है जो ना काग़ज़ पर अपनी कला दिखाते हैं, ना रेत या मिट्टी पर। वो एक ऐसी चीज़ का इस्तेमाल अपने शिल्प में कर रहे हैं जिसे पहले बेकार समझ कर फेंक दिया जाता था।
हेमंत का अनोखा शिल्प
बेहद बारीकी और तल्लीनता से महीन रेशों को गढ़ लेते हैं। इन रेशों से कई कलाकृतियां बना लेते हैं। इस कलाकार का नाम है हेमंत रॉय। पश्चिम बंगाल के बीरभूम के रहने वाले 25 साल के हेमंत की कलाकारी देख लोग बरबस ही ठिठक जाते हैं। रेशों से बनी कलाकृतियां हर किसी का मन मोह लेती हैं। लोगों की उत्सुकता ये जानने में भी होती है कि आख़िर ये रेशे किस चीज़ से बने होते हैं। जैसे लोग हैरान रह जाते हैं वैसे आप भी हैरान हो जाएंगे जानकर कि ये रेशे केले के तने से बनते हैं।
कैसे तैयार होता है केले के तने से रेशा
हेमंत केले के तने को बीच से चीर कर गन्ने के रस निकालने वाली मशीन से गुजारते हैं। इसके बाद उसकी अलग-अलग परतों को निकाल देते हैं। फ़िर इन्हें सुखाया जाता है। सूखने के बाद इनसे रेशे निकाले जाते हैं। इन्हीं रेशों से हेमंत पहले कलाकृति बनाते हैं। इसे फाइबर क्राफ्ट के नाम से जाना जाता है। ख़ास बात ये है कि इसमें रंगों का इस्तेमाल नहीं होता। फाइबर क्राफ्ट से देवी-देवताओं की मूर्तियां, हिरन, घोड़े जैसे पशु, पेन स्टैंड, समेत कई सजावटी कलाकृतियां बनाई जाती हैं।
केले के तने के इस्तेमाल का आइडिया
मयंक जिस इलाक़े के रहने वाले हैं वहां केले की खेती बहुतायत में होती है। मयंक अक्सर देखा करते थे कि किसान केले का फल लेने के बाद उसके तने को काट कर फेंक देते हैं। उनके मन में इन तनों के इस्तेमाल की बात आई। काफी पड़ताल के बाद उन्हें केले के तने से रेशे निकालने की बात पता चली। बस फ़िर क्या था। मयंक अपनी सोच को साकार करने में जुट गए और नतीजा आज सबके सामने है।
मयंक फैशन डिज़ाइनिंग का कोर्स कर रहे हैं। केले के तने से रेशे निकालने के आइडिया को अंजाम तक पहुंचाने में उनकी ये पढ़ाई बहुत काम आई।
संघर्ष से भरा रहा जीवन एक ग़रीब किसान परिवार में जन्मे मयंक ने अपनी हिम्मत और लगन के दम पर पढ़ाई की। बचपन से ही कला के प्रति उनका रुझान उन्हें फ़ैशन डिज़ाइनिंग की तरफ़ ले गया और अब केले के तने के इस्तेमाल से वो एक से बढ़ कर एक कलाकृतियां तैयार कर रहे हैं। वो हुनर हाट, सरस हाट, सूरजकुंड मेले में प्रदर्शनी लगाकर वाहवाही बटोर चुके हैं। उनकी ये कला अब उनकी आजीविका का भी साधन बन गई है। केले के तने के रेशों से बनाई कलाकृतियां अच्छे दाम पर बिक रही हैं। उम्मीद है कि मयंक का काम उन्हें और नाम और पहचान दिलाएगा।
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