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खेत-खलिहान

सहारनपुर का कर्मयोद्धा किसान

किसान खेतों में काम करते हैं तो अन्न उपजते हैं। देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं देश के किसान। समय के साथ खेती में भी बदलाव आ रहा है। ख़ास बात ये है कि इसमें कृषि वैज्ञानिकों के साथ-साथ किसानों की भी बड़ी भूमिका है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी एक ऐसे ही किसान की जिसने अपनी सोच और संकल्प से खेती को एक नया विस्तार दे दिया है। उनकी इस सोच और संकल्प ने ना केवल खेती में सकारात्मक बदलाव की शुरुआत की बल्कि सैकड़ों-हज़ारों किसानों को प्रेरित भी किया। हम जिनकी बात कर रहे हैं वो कर्मयोद्धा किसान हैं सेठ पाल सिंह।

खेती में नवाचार का विचार
‘जब तक खेती में रिस्क नहीं उठाएंगे तो नये प्रयोग कैसे करेंगे और जब तक खेती में नये प्रयोग नहीं करेंगे तो खेती की नई संभावनाओं की तलाश कैसे करेंगे’। सहारनपुर के नंदी फ़िरोज़पुर के रहने वाले किसान सेठ पाल सिंह ने अपनी इसी सोच के दम पर खेती में चमत्कार कर दिखाए हैं। पारंपरिक खेती से अलग कुछ करने की हिम्मत जुटा कर उन्होंने खेती में ऐसे आयाम रचे और गढ़े हैं जो मिसाल बन चुके हैं। सेठपाल सिंह किसान परिवार से ही आते हैं। खेती करना उन्हें पुरखों से विरासत में मिला है। पहले वो अपने दादा और पिता की तरह पारंपरिक खेती किया करते थे लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र से जब उनका जुड़ाव हुआ तब उन्हें ये समझ आया कि खेती के तरीके में बदलाव कितने ज़रूरी हैं। ये साल था 1995, जब सेठ पाल ने खेती में बदलाव पर काम शुरू किया। उन्होंने पारंपरिक फसलों के साथ ही फल-फूल और सब्ज़ियों की खेती करनी शुरू कर दी। बहुफसली पद्धति ने अपना कमाल दिखाया और एक मौसम में सेठ पाल ने एक ही खेत से कई तरह की सब्ज़ियां और फसल हासिल कर ली। उस समय ये बड़ी बात थी। इस कामयाबी से उत्साहित सेठ पाल ने खेती में नए-नए प्रयोग करने शुरू कर दिये। वो धान, गेहूं, दलहन-तिलहन और गन्ने के अलावा कई तरह के फल और सब्ज़ियों की खेती कर रहे हैं। इतना ही नहीं वो कमल की भी खेती करते हैं।

खेत में सिंघाड़े की खेती 

सिंघाड़े यानी पानीफल की खेती तालाब में की जाती है लेकिन खेती में नवाचार करने वाले सेठ पाल ने इस पुरानी विधि को भी बदल डाला। उन्होंने अपने खेत में सिंघाड़े की खेती की जो पूरी तरह समतल था। अपने इस खेत में उन्होंने एक फ़ीट तक पानी भरा और खेत की मेड़ को ऊंचा कर दिया ताकि पानी बाहर ना जाए। इसी खेत में उन्होंने सिंघाड़े लगा दिये। तब जिन किसानों को पता चलता कि सेठ पाल ने खेत में सिंघाड़े लगाये हैं सब उनका मज़ाक उड़ाते लेकिन सेठ पाल ने हिम्मत नहीं हारी। जून में रोपी गई फसल जब सितंबर के आख़िर में तैयार हुई तो देखने वाले देखते रह गये। सिंघाड़े की बंपर फसल ने लोगों को हैरान कर दिया। सेठ पाल को इस खेती से अच्छा फ़ायदा हुआ।

प्राकृतिक खेती पर ज़ोर
भले ही सेठ पाल खेती में नवाचार कर रहे हैं लेकिन वो रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। वो ख़ुद वर्मी कम्पोस्ट बनाते हैं। गोबर और वर्मी कंपोस्ट की खाद उनके खेत के लिए वरदान साबित हो रही है।

सेठ पाल को पद्म सम्मान
खेती में नवाचार के लिए यूं तो सेठ पाल सिंह को कई मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है लेकिन उनके लिए बड़ी उपलब्धि रही जब उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया। साल 2022 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्म श्री सम्मान दिया।
सेठ पाल सिंह ने ना सिर्फ़ किसानों को खेती का नया तरीका सिखाया बल्कि नए तरीके से सोचने की शक्ति भी दी। ऐसे किसानों के दम पर ही हमारा देश आज भी एक कृषि प्रधान देश कहलाने में गर्व महसूस करता है।