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बंदे में है दम

500 बुज़ुर्गों का श्रवण कुमार

इंसान कैसे अपने कर्मों से मसीहा बन जाता है, कैसे लोग किसी इंसान को अवतार मानने लगते हैं और कैसे एक इंसान मानवीय मूल्यों को ज़िंदा रखने के लिए अपना सबकुछ न्योछावर करने के लिए तैयार हो जाता है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की आज की कहानी इन्हीं सब सवालों पर टिकी है। इसी कहानी में सवाल भी हैं और उसके जवाब भी। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की आज की कहानी कलियुग के उस श्रवण कुमार की है जिसके एक नहीं 500 से अधिक मां-बाप हैं।

इंसानियत की मिसाल हैं उदय

मुंबई के भायंदर में एक श्रवण कुमार रहते हैं। दरअसल उनका असल नाम तो उदय मोदी है, लेकिन उनके काम उन्हें श्रवण कुमार ही बनाते हैं। उदय मूल रूप से गुजरात के अमरेली के रहने वाले हैं लेकिन बचपन से ही वो मुंबई में रहते हैं। क़रीब 26 साल से उनका परिवार भायंदर में रह रहा है। वो अल्टरनेटिव मेडिसीन के डॉक्टर हैं। पिछले 22 साल से वो आर्युवेद के साथ-साथ एक्यूप्रेशर, एक्यूपंचर जैसी विधियों से वो इलाज करते हैं। अपनी प्रैक्टिस की शुरुआत के साथ ही वो बुज़ुर्गों के प्रति काफ़ी संवेदनशील थे। वो अक्सर ग़रीबों और बुज़ुर्गों का इलाज मुफ़्त में किया करते थे। इसी दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसने उदय की ज़िंदगी बदल दी।

बुज़ुर्ग की दास्तां सुन लिया फ़ैसला

साल 2007 की बात है। रोज़ाना की तरह उदय अपने क्लीनिक में मरीज़ों को देख रहे थे। इसी बीच एक बुज़ुर्ग उनके पास पहुंचे। उनका चेकअप करने के दौरान उदय उनसे बात करने लगे। उदय तो सामान्य रूप से उनसे तबीयत और घर-परिवार के बारे में बात कर रहे थे लेकिन वो बुज़ुर्ग बात करते-करते रो पड़े। बताया कि उनके तीन बेटे हैं। तीनों सुखी-संपन्न हैं लेकिन उन्हें और उनकी बुज़ुर्ग पत्नी को अपने साथ नहीं रखते। दवा और इलाज तो छोड़िए कोई खाना तक नहीं देता। बुज़ुर्ग की इन बातों ने उदय के दिल में गहरा घाव कर दिया। उन्होंने फ़ौरन बुज़ुर्ग से कहा कि आपका खाना मेरे घर से जाएगा।

श्रवण टिफ़िन सर्विस की शुरुआत

डॉक्टर उदय ने घर जाकर ये बात अपनी पत्नी कल्पना से बताई। बात चली तो फ़िर ये भी ख़्याल आया कि उन बुज़ुर्ग जैसे ना जाने कितने और भी लोग होंगे जिनके बच्चों ने उन्हें तंगहाली और मजबूरी के हालात में छोड़ दिया है। जो एक वक़्त की रोटी के लिए भी तरस रहे हैं। इसके बाद डॉ उदय मोदी ने श्रवण टिफ़िन सेंटर की शुरुआत कर डाली। उदय और उनकी पत्नी कल्पना ने ऐसे लोगों की तलाश के लिए दीवारों पर पम्फ्लेट चिपकाए, परिचितों को जानकारी देने के लिए कहा। धीरे-धीरे डॉ उदय के टिफ़िन सेंटर से लोग जुड़ते गए। शुरुआत में तो लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि कोई उन्हें मुफ़्त में रोज़ खाना भी खिला सकता है लेकिन डॉक्टर उदय की सेवा भावना ने उनके जीवन में नई रोशनी का संचार कर दिया।

500 से अधिक बुज़ुर्गों के लिए टिफ़िन सेवा

2007 से शुरू हुआ डॉक्टर उदय का मिशन अब 500 बुज़ुर्गों तक पहुंच चुका है। इसके अलावा कई ऐसे बुज़ुर्ग भी हैं जिनके पास पैसे तो हैं लेकिन ना तो वो खाना बनाने की स्थिति में हैं और ना ही बाहर से सामान मंगवाने की। डॉक्टर उदय ऐसे लोगों की भी मदद करते हैं। उन्हें खाना बनाने का सामान और सुविधा दोनों मुहैया करवाते हैं। डॉक्टर उदय के दो किचन सेंटर हैं जहां सुबह 6 बजे से काम शुरू हो जाता है। उदय ख़ुद 7 बजे तक किचन पहुंच जाते हैं। किचन में 4-5 महिलाएं और 2-3 पुरुष खाना बनाते और पैक करते हैं जबकि डिलिवरी के लिए अलग लोग हैं। उदय किचन से लौट कर 11 बजे अपने क्लीनिक जाते हैं। दो बजे तक वो मरीज़ों को देखते हैं फ़िर लौट कर अगले दिन के खाने की तैयारी करते हैं। शाम में वो फ़िर क्लीनिक जाते हैं। वो बुज़ुर्गों को उनकी सेहत के हिसाब से खाना भिजवाते हैं। रोटी, दाल, सब्जी और चावल के साथ-साथ पर्व-त्योहारों पर मिठाइयां भी भेजी जाती है। इसके साथ ही दवा, साबुन और पेस्ट जैसी ज़रूरी चीज़ें भी बुज़ुर्गों को मुहैया करवाई जाती हैं। टिफ़िन के साथ-साथ वो इन बुज़ुर्गों का इलाज भी करते हैं। जिनका इलाज उनसे संभव है उन्हें वो ख़ुद देखते हैं, नहीं तो इलाक़े के दो अस्पतालों में उनके भेजे हुए बुज़ुर्गों का फ़्री इलाज किया जाता है।

कोशिश की थी बच्चों से बात करने की

शुरुआत में डॉक्टर उदित के लिए ये यकीन करना मुश्किल था कि कोई बच्चा अपने मां-बाप को ऐसे कैसे छोड़ सकता है। वो जेनेरेशन गैप समझते थे, छोटे घर में रहने की मुश्किल समझते थे, अलग रहना समझते थे लेकिन ये नहीं समझ पा रहे थे कि बच्चे मां-बाप को दो वक़्त की रोटी ना दे पाए। एक बार उन्होंने एक बुज़ुर्ग के बेटे को फ़ोन किया। उससे कहा कि अगर वो अपने मां-बाप के लिए कुछ पैसे भेज दे तो उनका जीवन कट जाएगा लेकिन जो जवाब मिला उससे उदय हैरान रह गए। उस शख़्स ने जवाब दिया कि ‘मैंने आपको फ़ोन कर या चिट्ठी लिखकर मेरे मां-बाप को खाना खिलाने नहीं बोला है। जब मैं अपने मां-बाप को खाना नहीं खिला रहा हूं तो आप क्यों खिला रहे हो ? आप भी मत खिलाओ। इस जवाब के बाद डॉ उदय ने तय कर लिया कि वो सिर्फ़ सेवा करेंगे, किसी को समझाएंगे नहीं।

लोगों का मिला साथ

इस नेक काम में डॉक्टर उदय को कई लोगों का साथ भी मिला। कई लोगों ने उन्हें आर्थिक मदद पहुंचाई तो कई किचन और डिलिवरी में मदद किया करते हैं। उदय एक वाकये का ज़िक्र करते हुए भावुक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार एक बुज़ुर्ग ग़रीब महिला उनके क्लीनिक में आई और उनकी टेबल पर एक पोटली रख दी। उस पोटली में कुछ पैसे थे। कुछ पुराने सिक्के, कुछ नोट। उस महिला ने अपनी पूरी बचत डॉक्टर उदय को दे दी। उसने कहा कि इसे वो श्रवण टिफ़िन सेंटर के काम में लगा दे। श्रवण ने आज तक वो पोटली संभाल कर रखी है। जब भी वो निराश या हताश होने लगते हैं वो उस पोटली को देखते हैं और फ़िर नई ऊर्जा के साथ अपने काम में जुट जाते हैं।

पिछले कुछ सालों से वो इन बुज़ुर्गों के लिए एक ऐसा आशियाना बनाना चाहते हैं जहां वो इन सबको एक साथ रख सकें ताकि उनकी सही देखभाल हो सके। उदय इसके लिए फंड जुटा रहे हैं।

इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट डॉ उदय को इस नेक काम के लिए बधाई और उनकी योजनाओं के लिए उन्हें शुभकामनाएं देता है।