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धरती से बंदे में है दम

जलस्त्रोतों को जीवनदान देने वाली युवा

पहले गुजरात में एक नाले का कायाकल्प किया और अब तमिलनाडु की एक नदी को बचाने का अभियान, ये है धरती के प्रति एक युवा का स्नेह। इस युवती ने अपने हौसले, अपने जज़्बे से ये साबित कर दिया है कि उम्र भले ही छोटी हो लेकिन अगर सोच बड़ी हो तो इंसान अपने दम पर बड़े से बड़ा बदलाव ला सकता है। ये कहानी है गुजराती गर्ल की। ये कहानी है स्नेहा शाही की

वडोदरा के ‘भूखी नाले’ को गटर बनने से बचाया
छोटी-छोटी धाराएं नदी में मिल कर उसे वास्तविक तौर पर नदी बनाती हैं। ये नाले, गदेरे ना केवल नदियों को पानी पहुंचाते हैं बल्कि पर्यावरण के तंत्र को भी संतुलित बनाए रखने में मददगार होते हैं। बारिश का अतिरिक्त पानी नदियों तक ले जाते हैं, भूजल स्तर को सही बनाए रखते हैं, कई तरह के जलीय पौधों और जंतुओं को आश्रय देते हैं। लेकिन आज विकास की अंधी दौड़ में हम इंसान नदी-नालों, तालाबों और जंगलों को तबाह करते जा रहे हैं। ऐसी ही तबाही का शिकार हुआ गुजरात के वडोदरा का भूखी नाला। ये एक प्राकृतिक नाला था जिसका पानी विश्वामित्री नदी में मिलता था। ये सैकड़ों मगरमच्छों, कछुओं और मछलियों का आश्रय था लेकिन लोगों ने इसे कचरे से भर दिया। इसे एक सीवरेज बना दिया। नतीजा ये हुआ कि ये प्राकृतिक नाला मरने लगा। सारे जलीय जीव या तो इस नाले को छोड़ कर चले गये या मर गये। इस नाले को नई ज़िंदगी तब मिली जब इस पर स्नेहा की नज़र पड़ी। वडोदरा के महाराजा सयाजी यूनिवर्सिटी की छात्रा स्नेहा ने इस नाले से 700 किलो कचरा साफ कर इसे नई ज़िंदगी दे डाली।

धरती से प्यार करने वाली स्नेहा
स्नेहा एक सैन्य परिवार से जुड़ी हैं। उनके दादाजी भारतीय वायुसेना में काम करते थे। इसी वजह से वो देश के अलग-अलग हिस्सों में रह चुकी हैं। इस दौरान उन्होंने कई अभ्यारण्य भी देखे और जानवरों के बीच समय बिताया। ये समय उनकी ज़िंदगी के लिए बहुत ख़ास था। इससे उन्हें जंगल और जानवरों से लगाव होता गया। इसी दौरान वो वडोदरा भी आ गईं। ये शहर उनके परिवार को भा गया और वो यहीं बस गये। यहां रहते हुए वो पर्यावरण के और क़रीब आ गईं। स्नेहा बताती हैं कि उन्होंने टीनएज में ही ये तय कर लिया था कि वो पर्यावरण के क्षेत्र में ही कार्य करेंगी। जब कोई उनसे पूछता भविष्य में क्या करोगी तो वो झट से बोलती कि प्रकृति का संरक्षण। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विषय में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद वो पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने लगी। ये उनके जीवन का अहम मोड़ साबित हुआ।  

नाले के लिए समझ पैदा करने का सफ़र
साल 2018 में स्नेहा ने यूके वित्त पोषित टाइड टर्नर्स प्लास्टिक चैलेंज में हिस्सा लिया था। इस कार्यक्रम के दौरान उन्हें नदियों और नालों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। 25 देश के सवा लाख युवाओं ने समझा की एक नाला कैसे ईकोसिस्टम में काम करता है। कैसे एक छोटी जलधारा भी धरती के लिए अहम है। इसी दौरान स्नेहा ने प्रोजेक्ट के तौर पर वडोदरा के भूखी नाले को चुना जो गटर में तब्दील हो चुका था। स्नेहा ने तय किया कि वो इस नाले को फिर ज़िंदा करेंगी। ये नाला उनके कॉलेज परिसर से होकर गुजरता था। स्नेहा ने इसे साफ़ करने के लिए एक अभियान की शुरुआत की। उन्होंने कॉलेज के 300 छात्रों को अपने साथ जोड़ लिया।

जलधारा को मिला जीवन
स्नेहा की अगुवाई में छात्रों ने इस नाले को साफ़ करने के लिए दिन-रात काम किया। हालांकि ये नाला कचरे और गंदगी के ढेर से भरा हुआ था इसलिए  अभियान के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनके लिए सबसे बड़ा काम प्लास्टिक कचरे के बारे में आस-पास के इलाकों में जागरूकता पैदा करना था। उनमें से अधिकांश के लिए यह नाला वर्षों से डंपिंग प्लेस बना हुआ था। स्नेहा और उनकी टीम ने लोगों को समझाया कि ये नाला हमारे लिए कितना अहम है। कई बार लोगों ने उनका विरोध किया। कई बार तो पुलिस उनसे पूछताछ के लिए पहुंच जाती। लेकिन स्नेहा ने हार नहीं मानी। उन्होंने इलाके की महिलाओं से बात की। उन्हें अपने साथ जोड़ा। इसका बहुत असर हुआ। धीरे-धीरे उनकी ये कोशिशें रंग लाने लगी। लोगों में जागरूकता आई और वो नाले में कचरा नहीं फेंकने लगे। अब स्थिति ये हो गई है कि स्थानीय लोग नाले में कचरा फेंकने वालों को रोकते हैं। जिसे कुछ साल पहले कूड़ा फेंकने की जगह समझा जाता था अब उसे साफ़ रखने के लिए स्थानीय लोग मुस्तैद हो गये थे।

 मगरमच्छों की वापसी
स्नेहा और उनकी टीम ने एक तरफ़ तो स्थानीय लोगों को नाले में कचरा फेंकने से रोकने में कामयाबी हासिल की तो दूसरी तरफ़ नाले से 700 किलोग्राम कचरा बाहर निकाला। इसका जबरदस्त असर देखने को मिला। बाक़ी का काम मानसून ने कर दिया। बारिश की वजह से काफ़ी गंदगी बह गई और नाले में साफ़ पानी पहुंच गया। पानी जैसे ही साफ़ हुआ इस नाले में जलीय जंतुओं की आमद शुरू हो गई। जो मगरमच्छ और कछुए इसे छोड़ गये थे वो वापस आ गये। कई सारी वनस्पतियां और कीट-पतंगें भी पहुंचने लगे। यूं कहें कि इन भूखी नाले में जीवन लौट आया। स्नेहा नाले के साथ-साथ यहां वास करने वाले जंतुओं की सुरक्षा को लेकर भी सजग है।

वडोदरा के बाद तमिलनाडु में नदी की सफ़ाई
स्नेहा फिलहाल अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (एटीआरईई), बेंगलुरु से एक्सट्रीम हाइड्रोलॉजिकल इवेंट्स में पीएचडी कर रही हैं। यहां भी वो पढ़ाई के साथ-साथ नदी संरक्षण के लिए काम कर रही है। तमिलनाडु में बहने वाली एकमात्र बारहमासी नदी थमिराबरानी की सफ़ाई और संरक्षण के लिए उन्होंने काम की शुरुआत की है। अपने संस्थान के साथ वो इस नदी को सूखने से बचाने के अभियान में शिरकत कर रही है। इस नदी को बचाने के लिए तामीरासेस नाम के हाइपर लोकल विधि का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके ज़रिये ना केवल ये नदी बल्कि इलाक़े के तमाम जलस्त्रोतों को जीवंत किया जाएगा। थमिराबरानी तमिलनाडु में बहने वाली सबसे छोटी लेकिन बाहरमासी नदी है। ये अंबासमुद्रम तालुक में पोथिगई की पहाड़ियों से निकलकर तिरुनेलवेली और थूथुकुड़ी ज़िले से होती हुई कोरकाई में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।


काम से मिली पहचान
पर्यावरण और ख़ास तौर पर नदी संरक्षण के लिए किये जा रहे कामों ने स्नेहा को अलग पहचान दिलाई है। इतनी छोटी उम्र में उन्होंने इस क्षेत्र में बड़ा मक़ाम हासिल किया है। वो कई मंचों पर अपने अनुभवों को साझा कर चुकी हैं। हाल ही में उन्होंनेमहाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय वडोदरा में जी 20 प्रेसिडेन्सी यूथ इंडिया समिट 2023 में भी वक्ता के तौर हिस्सा लिया और अपने विचार प्रकट किये। उम्मीद है स्नेहा की ये कोशिशें बड़े बदलाव को जन्म देंगी।  

स्नेहा के इन प्रयासों को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट का सलाम।