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बंदे में है दम

शिक्षा का सिपाही

GRP में तैनात एक सिपाही का तबादला हो तो भला इलाक़े के बच्चों को उससे क्या परेशानी हो सकती है, आख़िर क्यों उसके ट्रांसफर पर बच्चे फूट-फूट कर रोने लगे, क्यों कोई भी बच्चा उन्हें जाने देने के लिए तैयार नहीं थे। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट आज एक ऐसी कहानी लेकर आया है जो समाज में बदलाव ही नहीं एक भावनात्मक रिश्तों की दास्तां भी सुनाएगी। लेकिन उससे पहले ये वीडियो देखिए।

ये प्यारी सी तस्वीर यूपी के उन्नाव की है। सिकंदरपुर कर्ण ब्लॉक के कोरारी कलां गांव की। GRP में तैनात सिपाही रोहित यादव का तबादला हो चुका है। वो यहां पिछले 5 साल से तैनात थे। अब उनका ट्रांसफ़र झांसी हो गया है। उनके ट्रांसफ़र की ख़बर ने यहां के बच्चों को बेचैन कर दिया। वो उनसे लिपट कर रो पड़े। उनसे ना जाने की फरियाद करने लगे। ख़ुद रोहित की आंखें भी छलक आई थीं।

5 साल पहले शुरू हुई कहानी

इस तस्वीर की कहानी शुरू होती है साल 2018 में। इटावा के रहने वाले रोहित यादव यूपी पुलिस में भर्ती हुए। पहली पोस्टिंग झांसी में हुई। इसके बाद उन्हें 2018 में GRP उन्नाव भेज दिया गया। यहां उनकी ड्यूटी कानपुर -रायबरेली पैसेंजर में थी। वो ट्रेन की सुरक्षा में तैनात रहा करते थे। ये ट्रेन उन्नाव के एक छोटे से हॉल्ट कोरारी कलां पर भी रूकती थी। रोहित अक्सर ये देखा करते कि जैसे ही ट्रेन वहां रुकती तो छोटे-छोटे बच्चे यात्रियों से भीख मांगने आ जाते। कुछ बच्चे छोटा-मोटा सामान बेचा करते थे। धीरे-धीरे ये स्थिति उन्हें कचोटने लगी। उन्होंने बच्चों से बात की तो उनके घर की माली हालत के बारे में पता चला। ये भी पता चला कि गांव के अधिकांश बच्चे स्कूल नहीं जाते। रोहित ने इस स्थिति को बदलने की ठान ली। उसी शाम वो अपनी ड्यूटी ख़त्म कर कोरारी गांव पहुंचे। यहां उन्होंने उन बच्चों के घरवालों को ढूंढा, उनसे बात की। शुरुआत में गांव का कोई भी शख़्स उनकी बात समझना तो छोड़िये सुनने के लिए तैयार नहीं था लेकिन रोहत ने हार नहीं मानी। वो कई बार गांव गए और लोगों को समझाने की कोशिश की। आख़िरकार कुछ लोग तैयार हुए और 5 बच्चों के साथ रोहित की पाठशाला शुरू हुई।

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5 से 125 बच्चों तक का सफ़र

अगले एक महीने तक रोहित इन्हीं 5 बच्चों के साथ अपनी पाठशाला चलाते रहे। गांव के बाहर एक पेड़ के नीचे उनकी क्लास लगती। वो इनके लिए अपने ख़र्च पर क़िताबें, पेंसिल, कॉपियां और पढ़ाई के दूसरे सामान लाते। ड्यूटी ख़त्म कर वो बाइक से दस किलोमीटर का सफ़र तय कर कोरारी गांव पहुंचते और फ़िर बच्चों को पढ़ाया करते। एक महीने बाद इसमें बदलाव नज़र आने लगे। बच्चों की संख्या 5 से बढ़ कर 15 हो गई। इससे रोहित का भी उत्साह बढ़ने लगा।

हर हाथ में कलम पाठशाला’ का नाम

रोहित ने अपने इस शिक्षा अभियान का नाम ‘हर हाथ में कलम पाठशाला’ रखा। वो खुले आसमान के नीचे ग़रीब बच्चों के बीच शिक्षा का उजियारा फ़ैलाते रहे। लेकिन एक बार बारिश की वजह से उनकी पाठशाला नहीं लग पाई। इसके बाद रोहित ने गांव में ही एक कमरा किराये पर ले लिया। अब वो उस कमरे में क्लास चलाने लगे। बच्चों की संख्या भी 50 के पार हो चुकी थी। इनमें से जो पढ़ाई में अच्छा करते थे, रोहित उनका दाखिला सरकारी स्कूल में करवा देते थे। स्कूल के बाद वो बच्चे भी रोहित की पाठशाला में पढ़ने आया करते थे। बच्चों की पढ़ाई और अपनी ड्यूटी, दोनों के प्रति ईमानदारी बरतने के लिए रोहित ने अपनी नाइट ड्यूटी लगवा ली।

युवाओं और प्रशासन का मिला साथ

रोहित की पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 80 पहुंच चुकी थी। इतनी बड़ी तादाद में बच्चों को पढ़ाना अकेले रोहित के लिए संभव नहीं था। तब उन्होंने गांव के ही दो शिक्षित युवाओं को अपने साथ जोड़ा। उन्हें अपनी तनख़्वाह से सैलरी देनी शुरू की। इसका असर ये हुआ कि गांव के कुछ ऐसे भी युवा साथ आ गए जो नि:शुल्क बच्चों को पढ़ाने लगे। इधर रोहित की पाठशाला की जानकारी जब ज़िले के DPRO को हुई तो उन्होंने रोहित को पंचायत भवन की चाबी थमा दी। कहा कि अपनी पाठशाला किराये के कमरे में नहीं पंचायत भवन में चलाइये। गांव के मुखिया, गांववालों और डीपीआरओ के मिले इस साथ ने ‘हर हाथ में कलम पाठशाला’ को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। रोहित ने अब तक अपनी पाठशाला के 115 बच्चों का दाख़िला सरकारी स्कूल में कराया है। रोहित को अपने पुलिस के फ़र्ज़ के साथ-साथ ग़रीब बच्चों को शिक्षा के सागर से जोड़ने के लिए तत्कालीन एसपी आनंद कुलकर्णी ने सम्मानित भी किया।

तबादले पर गांव में छाई मायूसी

हाल ही में रोहित का तबादला उन्नाव से फ़िर झांसी हो गया। जब वो झांसी जाने से पहले कोरारी में उन बच्चों से मिलने पहुंचे तो माहौल बहुत भावुक हो गया। सारे बच्चे उनसे लिपट गए। उनसे ना जाने की गुहार करने लगे। बच्चों के साथ-साथ गांव के हर शख़्स की आंखों में आंसू थे। ख़ुद रोहित की आंखें भी छलक रही थी। रोहित ने बच्चों को वादा किया कि उनकी पाठशाला चलती रहेगी और वो ख़ुद समय-समय पर यहां आते रहेंगे। गांववालों ने बैंड बाजे के साथ अपने सिपाही शिक्षक को विदाई दी।