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बंदे में है दम

शिक्षा की अलख जगाने वाली

जैसे ही कोरोना आया और लॉकडाउन लगा लोगों को ऑनलाइन का मतलब समझ आया। ऑनलाइन शॉपिंग से लेकर ऑनलाइन पढ़ाई तक। लेकिन, सोचिए कि आप हरई जैसे एक सुदूर गांव में रहते हों जहां लोगों के पास स्मार्टफ़ोन थे ही नहीं वहां कैसी ऑनलाइन शिक्षा? ऐसे में काम आया उषा दुबे मैडम का जज़्बा। आज की कहानी उषा दुबे की जो कि मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं जिन्होंने हरई गांव के बच्चों का शिक्षा से नाता टूटने नहीं दिया।

पुस्तकालय को गांव-गांव तक पहुंचाया

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ज्य सरकार ने खूब पढ़ो अभियान की शुरुआत क्या की उषा दुबे को तो रास्ता ही मिल गया बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने का। उन्होंने एक क़दम और आगे बढ़ते हुए अपनी दुपहिया पर चलता-फिरता पुस्तकालय ही तैयार कर दिया। उषा दुबे ने इस मुश्किल वक़्त में जुगत लगायी और बच्चों के लिए शिक्षा को सुलभ कर दिया। दरअसल स्कूलों में पढ़ाई के लिए मोबाइल एप पर ग्रुप तो बना दिए गए थे लेकिन यहां बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन नहीं थे जिससे कि वो ऑनलाइन उपलब्ध करवा दी गयी सामग्री का उपयोग कर सकें। उससे पढ़ाई कर सकें। ऐसे में उषा मैडम ने बच्चों के लिए इस चलते-फिरते पुस्तकालय की नींव रखी।

उन्होंने एक ऐसा फ्रेम तैयार किया जिस पर क़िताबें रखी जा सकें। उस फ्रेम में कहानियों की कई क़िताबें सजा कर उषा अपनी स्कूटी से उसे लेकर गांव जाने लगीं। यानी अब बच्चे पुस्तकालय तक नहीं बल्कि पुस्तकालय बच्चों तक पहुंचने लगा। कहानियों की क़िताबों में बच्चों की दिलचस्पी ऐसी जगी कि धीरे-धीरे सारे बच्चे इससे जुड़ते चले गए।

अभिनव प्रयोग का मिला प्रतिफल

कोरोना और लॉकडाउन की वजह से बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा था। स्कूल बंद थे, परीक्षाएं नहीं हो रही थीं। ऐसे में बच्चों का पढ़ाई पर से मन हटता जा रहा था। जब ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हुई तो शिक्षकों के लिए बड़ी चुनौती थी कि बच्चों को फ़िर से पढ़ाई से साथ कैसे जोड़ा जाए। ऐसे में उषा दुबे के इस प्रयोग ने जैसे क्रांति ला दी। कहानियों से शुरू हुआ बच्चों का लगाव दूसरे विषयों तक पहुंचने लगा। बच्चों ने इस पुस्तकालय को हाथों-हाथ लिया और ना केवल वो इससे जुड़े बल्कि ख़ूब पढ़े भी। कोरोना काल में शुरू हुई उनकी मोबाइल लाइब्रेरी आज भी चल रही है। छुट्टियों के दिनों में उषा मैडम अपनी स्कूटी पर लाइब्रेरी लेकर बच्चों के बीच पहुंच जाती हैं।

शिक्षा को नवाचार से जोड़ा

उषा ऐसी शिक्षिका हैं जो जानती हैं कि पुराने ढर्रे पर चल कर बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखना संभव नहीं है। इसी वजह से वो शिक्षा में नवाचार पर भरोसा रखती हैं। गांवों में पढ़ाने के दौरान उन्होंने ऐसे कई प्रयोग किये जो पढ़ाई को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हुए।
नवाचार के कई प्रयोगों में उनका एक प्रयोग सोप बैंक भी है। इसमें स्कूल के बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों को भी जोड़ा गया। बच्चों में हाथ धोने की आदत डालने के लिए इसकी शुरुआत की गई। इसमें अपने जन्मदिन के मौक़े पर स्कूल में साबुन दान करने का नियम बनाया गया। बच्चों और शिक्षकों ने इसमें भी ख़ूब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। धीरे-धीरे ना केवल स्कूल में साबुन बैंक बन गया बल्कि बच्चों में साफ़-सफाई के प्रति जागरूकता भी आई।

उषा जी ने कोरोना से बचाव और स्वच्छता के संदेशों को लेकर स्कूल के हॉल की दीवारों पर बच्चों से पेंटिंग बनवाई। इससे पेंटिंग के साथ-साथ जागरूकता का काम एक साथ पूरा हुआ।

जो कुछ कर दिखाते हैं वही याद रखे जाते हैं

मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूल की शिक्षिका उषा दुबे को आज विभाग का हर अधिकारी-हर कर्मचारी जानता है, लेकिन उससे बड़ी बात ये है कि उन्हें हर वो बच्चा और हर वो मां-बाप जानते हैं जिनके बच्चों को उन्होंने पढ़ाया है, शिक्षा दी है। उषा दुबे की ये उपलब्धि कोई मामूली बात नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी ने की तारीफ़

उषा दुबे के इस अभिनव प्रयोगों की जानकारी दिल्ली तक पहुंची। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में उषा दुबे की तारीफ़ की। उषा दुबे उन सभी के लिए एक मिसाल हैं जो अपनी नौकरी को पैसा कमाने का ज़रिया भर मानते हैं। उषा मैडम का ये समर्पम, ये जज़्बा ये बताता है कि शिक्षा सिर्फ़ एक पेशा नहीं, एक मुहिम है।